” एक बार कह दिया न आपको कि मेरा कन्यादान वो नहीं करेंगे।मेरे साथ आप अकेली ही बैठेंगी।” दुल्हन बनी रीमा चीखते हुए अपनी माँ मालती से बोली तो मालती ने पीछे मुड़कर अपने पति यशवंत को देखा जो दरवाजे के बाहर ही खड़े होकर बेटी के जवाब का इंतज़ार कर रहें थें।
रीमा तब पाँचवीं कक्षा में रही होगी जब एक सड़क- दुर्घटना में उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।उस वक़्त उसका छोटा भाई पाँच-छह महीने का था, इसलिये माँ ने पिता के ही ऑफ़िस के एक सहकर्मी के साथ पुनर्विवाह कर लिया।
अपने पिता का स्थान दूसरे व्यक्ति को लेते देख वह मन ही मन बहुत क्रोधित थी।यद्यपि यशवंत उसके पिता होने के सभी फ़र्ज निभाते थें, फिर भी न जाने क्यूँ वह उन्हें अपने पिता के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रही थी।
अब आज जब रीमा का विवाह हो रहा था,वह विदा होकर अपने ससुराल चली जाएगी, यह सोचकर यशवंत उसका कन्यादान करना चाहते थें।इसीलिए मालती ने जब बेटी से कहा कि तेरे पिता कन्यादान की रस्म पूरी करना चाहते हैं तो वह गुस्से-से चीख पड़ी थी।
मालती ने अकेले ही रस्म को निभाया और बेटी को विदा किया। विवाह के बाद रीमा का मायके जाना बहुत कम हो गया था।फ़ोन पर ही बात करके अपनी माँ और भाई का हाल-समाचार पूछ लेती थी।
एक दिन उसे पता चला कि उसके पति की दोनों किडनियों में इंफेक्शन हो गया है और जल्द ही उनका किडनी ट्रांसप्लांट करना होगा।परिवार के कुछ सदस्य तो आना-कानी करने लगें और कुछ की किडनी मैच नहीं हो पा रही थी।
उधर उसके पति की हालत भी तेजी से बिगड़ती जा रही थी।वह बहुत परेशान थी कि तभी उसके छोटे भाई ने बताया कि दीदी, एक डोनर की किडनी मैच कर गई है।ऑपरेशन सफल रहा।उसने सोचा, चलकर डोनर को थैंक्स बोल आती हूँ और उसके हालचाल भी पूछ आऊँगी।
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जैसे ही वह डोनर के कमरे में जाने लगी तो उसने सुना कि माँ भाई से कह रही थी, “अपनी दीदी को मत बताना कि तेरे जीजाजी को किडनी तेरे पापा ने डोनेट की है।शायद उसे अच्छा न लगे।” माँ की बात सुनते ही वह जड़वत हो गई।
जिस इंसान को उसने कभी अपना पिता नहीं माना, हमेशा उनका अपमान ही किया ,उन्होंने ही आज अपना अंग दान कर उसके पति को जीवन दान दिया है।उन्होंने तो उसके पिता होने का फ़र्ज पूरा किया लेकिन वह….।
उस दिन उसने जाना कि पिता बनने के लिए जन्मदाता होना कोई जरूरी नहीं है।वह दौड़कर उनके कमरे में गयी और ‘ मेरे पापा ‘ कहकर उनके सीने से लग गई।दोनों के हृदय में एक-दूसरे के लिए बरसों से छिपा प्यार आँखों से आँसू बनकर बहने लगा।
पिता-पुत्री का मिलन देखकर रीमा की माँ और भाई की आँखें भी खुशी-से छलक उठी।
विभा गुप्ता
स्वरचित