मेरे गुरूर – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

“क्या बात है… रोज तो सुबह अलार्म की भी तुझे जरूरत नहीं पड़ती… आज इतनी देर तक कैसे पड़ी है… वंदना उठ… उठ बेटा…!”

 मां ने हिलाया तो वंदना चादर को और कसकर पकड़ते हुए जैसे रुंधे गले से बोली…” नहीं मां… नहीं जाना…!”

” नहीं जाना… पर बेटा आज तो तनख्वाह मिलने वाली है ना… कितने काम आज के भरोसे डाल रखे हैं… नहीं जाएगी यह क्या बोल रही है… वंदना… अरे कुछ तो बोल…!”

 वंदना ने चादर में मुंह छुपा लिया… वह सुबक रही थी…” बेटा रो रही है क्या… क्या हुआ…? कल जब से आई है देख रही हूं… उदास पड़ी है… कुछ तो बता… मुझे नहीं बताएगी…!”

 वंदना उठकर मां के सीने से लग गई और जोर-जोर से रोने लगी… बगल के कमरे से वंदना के पिताजी सौरभ जी भी भागे आए…” अरे क्या हो गया… क्यों रो रही है मेरी बेटी…?”

 वंदना मां को छोड़ पापा से जा लगी…” क्या हो गया बिटिया रानी…!”

” पापा आप कहते हैं ना कि मैं आपका गुरुर हूं…!”

” हां बेटा… तो इसमें गलत क्या है… वह तो तू है…!”

” नहीं पापा मैंने नौकरी छोड़ दी…!”

” यह क्या किया तूने… बंदना बेटा इतनी मेहनत और कोशिश के बाद तो यह काम मिला था… सब कितने अच्छे से चल रहा था फिर नौकरी छोड़ने की क्या जरूरत आ पड़ी…!”

 मां सरला जी बोल पड़ीं…” बेटा अब कहां मिलेगी इतनी जल्दी नौकरी… क्या किया तूने… कल तक तो कितनी खुश थी… तेरी तो पगार भी बढ़ने वाली थी… तूने ही तो कहा था कि इस महीने स्पेशल इंक्रीमेंट मिलेगा… फिर क्या हुआ…?”

“मां… पापा… मैं उस इंक्रीमेंट की कीमत अदा नहीं कर पाई…!”

 सौरभ जी अवाक रह गए… सरला जी वंदना का हाथ थाम कर बोलीं…” क्या मतलब बेटा…?’

 वंदना बिस्तर पर बैठ गई…” वहां मेरा मैनेजर मुझसे ही क्या हर लड़की से गलत नियत के साथ काम करवाता है… इसलिए उसने मेरे पैसे बढ़ाने की बात पहले कही… मुझे लगा वह मेरे काम से खुश है पर ऐसा नहीं था… कल मुझे उसकी असलियत पता चली… अब मैं काम पर नहीं जाऊंगी…!”

 घर में थोड़ी देर चुप्पी रही फिर सौरभ जी बोले… “नहीं बेटा… काम पर तो तुझे जाना होगा… ऐसे आदमी को हम यूं ही नहीं छोड़ सकते… चल तैयार हो…!”

” पर पापा…!”

” चल ना…!”

 वंदना बुझे मन से तैयार हुई… सरला जी भी बोल पड़ीं…” छोड़ दीजिए ऐसी जगह बेटी को भेजने से अच्छा है हम भूखे ही रह लें…!”

 घर में दो छोटे भाई बहन की जिम्मेदारी… घर का खर्च… सभी कुछ वंदना की नौकरी पड़ टिका था… सौरभ जी की प्राइवेट नौकरी थी जो 2 साल पहले छूट गई… तब से ट्यूशन पढ़ाकर किसी तरह गुजारा चला रहे थे… सौरभ जी ने वंदना का हाथ पकड़ उसको साथ लिया और घर से निकल पड़े…

थोड़ी दूर पर एक बड़ी सी आधुनिक साजो सामान की दुकान थी… वहां से कैमरा लगा पेन बेटी की कुर्ती में खोंसते हुए बोले…” अब जा मेरी बेटी… बहादुरी से आज उस मैनेजर की जितनी करतूतें कैद कर सके इसमें कैद कर… शाम को हम पुलिस स्टेशन जाएंगे…!”

 वंदना सहम गई…” नहीं पापा… मुझसे नहीं होगा…!”

” बेटा हिम्मत तो तुझे करना ही पड़ेगा… इस तरह सभी लोग चुप्पी साधे रहते हैं या नौकरी छोड़ देते हैं… तभी तो ऐसे लोगों का मनोबल बढ़ता जाता है… जा तू… तेरी रक्षा भगवान करेंगे… जा…!”

 वंदना ने पापा के कहे अनुसार अपने पेन कैमरे में दिन भर की रिकॉर्डिंग की… और अपने आप को किसी तरह बचाकर शाम होते ऑफिस से निकल गई… पापा दरवाजे पर ही खड़े थे…” चलो बेटा… लाओ पेन… वहां से निकलकर सौरभ जी ने पहले उस कैमरे की रिकॉर्डिंग जांच की… फिर उसको एक पेन ड्राइव में डालकर उसे लेकर पुलिस स्टेशन जाने से पहले… अपनी बेटी के मैनेजर के ऊपर सबसे सीनियर अधिकारी के घर दफ्तर… साथ ही साथ जितने सीनियर जूनियर…वंदना के साथ काम करने वालों का नंबर मिल सका…सबको सारे साक्ष्य भेज कर…तुरंत पुलिस स्टेशन पहुंचे…

 वहां सारी स्थिति जानने समझने के बाद पुलिस ने मैनेजर को धर दबोचा… रात तक मैनेजर पुलिस की गिरफ्त में था…

रात जब वंदना अपने पिता सौरभ जी के साथ घर पहुंची तब तक तो मां का परेशानी से बुरा हाल हो चुका था… पर दोनों को सकुशल घर आया देख कर उनके जान में जान आई… जब से वंदना काम पर गई थी… तब से सौरभ जी भी वहीं आसपास मंडरा रहे थे… तभी तो उन्होंने उसके बड़े अधिकारी और दूसरे कर्मचारियों के घर दफ्तर का जितना मिल सका नंबर पता लगा लिया…बाकी कुछ नंबर तो वंदना के पास भी था…

 मैनेजर को तो पुलिस ले गई थी और उसके बाहर आने का अभी कोई चांस भी नहीं था… अधिकारी ने खुद उसके खिलाफ साक्ष्य देखकर उसे नौकरी से निकाल दिया…वंदना के साथ काम करने वालों ने भी उसका पूरा साथ दिया…

 वंदना फिर से जोर-शोर से दूसरी नौकरी की तलाश में लगी हुई थी… सौरभ जी और सरला जी उसका पूरा सहयोग करते थे… सौरभ जी ने तो उस दिन वंदना के सर पर हाथ रखकर यह तक कह दिया था कि…” बेटा अगर जॉब नहीं मिले तो भी कोई बात नहीं… तू मेरा गुरूर कल भी थी और आज भी है… घर जैसे इतने दिन चला… वैसे फिर चलेगा… मैं करूंगा कुछ ना कुछ…!”

दस दिन हो चुके थे… सुबह-सुबह अचानक बेल बजी तो वंदना ने ही दरवाजा खोला… बाहर उसके सीनियर अधिकारी खड़े थे… ” सर आप… प्लीज आइए… आप यहां कैसे…!”

 सर ने उसके घर में कदम रखा और उसके कंधे पर हाथ रख उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा…” बेटा वापस अपनी ड्यूटी ज्वाइन करो… तुम्हारे जैसी बहादुर और निडर लड़कियों की देश को जरूरत है… तुमने मेरी कंपनी को इतने बड़े हैवान से मुक्ति दिला दी… मैं तुम्हारा आभारी हूं… यदि तुम हिम्मत नहीं दिखाती तो शायद मुझे कुछ पता भी नहीं चलता… चलो अब तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं… तुम्हारी नौकरी प्रमोशन के साथ तुम्हारा इंतजार कर रही है…!”

 वंदना ने हाथ जोड़ लिए…” थैंक यू सर… पर यह हिम्मत मुझे मिली है मेरे पापा से… भले पापा अपनी जिंदगी में कुछ अधिक हासिल नहीं कर पाए… पर इज्जत और हिम्मत के साथ जीने का हौसला उन्होंने ही दिया है मुझे… वरना मैं तो हार मान चुकी थी…!”

 तब तक सौरभ जी भी आ गए… अधिकारी ने सौरभ जी को गले लगा कर उनका शुक्रिया अदा किया… और वंदना को कल से ज्वाइन करने की बोल वहां से चल दिए…

 वंदना भाग कर पापा के गले लग गई…” पापा मैं आपकी और आप मेरे गुरूर हैं…!

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा 

#गरूर

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