श्यामा के परिवार में दो बेटे और दो बेटियां थीं।पति बहुत पहले एक चाय का ठेला लगाते थे।बड़ा बेटा आलूबंडा,समोसा,जलेबी बनाया करता था।आफिस मुख्यालय के सामने सुबह छह बजे से ठेला ग्राहकों के लिए उपलब्ध रहता था।पास ही में अस्पताल था,सो मरीजों के रिश्तेदारों के लिए यह ठेला किसी रेस्टोरेंट से कम न था।श्यामा दो -तीन घरों में काम करती थी।
घर भी ऐसे -वैसे नहीं , डॉक्टर के घरों में।दवाई बड़ी आसानी से मिल जाती थी।बड़े बेटे के हांथ में अन्नपूर्णा देवी का वास था।बाप -बेटे मिलकर अच्छी कमाई कर लेते थे।
धीरे-धीरे श्यामा के पति की तबीयत खराब होने लगी।बड़े बेटे को भी दूसरे शहर जाकर नौकरी करनी थी।सो वह ठेला धर दिया गया घर के आंगन में।
जाते समय बड़े बेटे से कहा भी श्यामा ने”तेरे चले जाने से बाबू बहुत अकेले पड़ जाएंगे।हर जगह तेरे साथ ही जाते थे।अब बिजली का बिल,राशन,बाजार कैसे सब करेंगे अकेले?तू ठेला ही संभाल लेता।घर पर रहकर कमाने में बरकत है।बाहर तो बहुत मंहगाई है।”लल्लू जो अब इक्कीस बरस का हो चुका था,ताने मारते हुए बोला”हां,तुम लोग तो यही चाहते हो कि मैं यहीं सड़ता रहूं।चार पैसे बचा नहीं पाता।अपने शौक कब पूरे करूंगा?अभी नहीं निकला तो,फिर कभी निकल नहीं पाऊंगा।”
श्यामा क्या कहती भला,कमाई तो उसकी भी ज्यादा नहीं थी।बेटे के जाते ही बाबू बीमार ही रहने लगे।दोनों बेटियों की शादी भगवान की दया से हो गई थी।छोटा बेटा भी बिलासपुर में कपड़े की बड़ी दुकान में काम करता था।बड़ा वहीं चला गया।
रक्षाबंधन में दोनों बेटे घर आए।बेटियां भी आई हुई थी।राखी बंधवाने के पहले ही लल्लू(बड़े बेटे) ने सबके बीच मां से कहा”मां,अपना आंगन इतना बड़ा है।लंबाई में अगर बेच दें तो अच्छा दाम मिल जाएगा।बेकार पड़ी जमीन का क्या फायदा?आस -पास की भी थोड़ी सी जमीन अगर बेच दें हम तो ,पैसों से कुछ अपना निजी धंधा कर लेंगे।”
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श्यामा को अचरज नहीं हुआ।कई दिनों से लल्लू को ब्रजेश के साथ बहुत घूमते देखा था।वहीं ब्रजेश इस जमीन पर आंख गड़ाए बैठा है कबसे।मुझसे और बाबू से बोलने की हिम्मत नहीं हुई तभी लल्लू को बहका रहा है।फ़ौरन कहा श्यामा ने”देख लल्लू,हमारे जीते जी तो हम एक इंच जमीन नहीं बेचेंगे।तुम चारों भाई बहन आपस में बात कर लो।अगर एक इंच भी बिकेगा,तो चारों में बंटेगा।बड़ी मुश्किल से तेरी चचिया दादी की दया से यह घर और जमीन मिल पाया था हमें।”
जमीन ना बेचने की बात कहकर,श्यामा तो मानो दुश्मन बन बैठी लल्लू की।बाजार में फैली उधारी पटानी थी उसे।उसी दिन निकल गया मुंह फुलाकर।तीनों भाई -बहनों ने बहुत समझाया,पर उसका विवेक मर चुका था।अपनी पसंद की सजातीय लड़की से शादी करने को आतुर था लल्लू।फोटो मां और बाबू को दिखाई।उनकी राय पूछी नहीं।शादी उसी लड़की से करेगा,कह दिया।
अब श्यामा जहां-जहां काम करती थी,दस-बीस हज़ार उधार मांगी।दोनों बहनों ने भाई की पत्नी के कपड़ों की जिम्मेदारी लें ली।जैसे -तैसे करके शादी संपन्न हुई।दहेज में सामान अच्छा ही मिला था उसे।अगली सुबह ही पत्नी के दहेज की तारीफ करते हुए बोला”रोशनी,तुम्हारे घर वालों ने कितना कुछ दिया है।यहां तो मैं एक चड्डी के लिए तरस गया हूं।टठिया,लोटा में खाना खा – खाकर उकता गया था मन। अच्छा हुआ जो तू मेरे घर आई।इन जंगलियों को थोड़ा इंसान बना देना।”
बहू के सामने धड़ल्ले से अपने मां,बाबू और भाई-बहनों की बेइज्जती करें जा रहा था लल्लू,और रोशनी(बीबी) मुस्कुरा रही थी।उसे तो पति ने ही ससुराल की औकात समझा दी।शाम को अचानक लल्लू ने मां से पूछा”मेरा तिलक का पांच हजार रुपया दे दे।उधारी पटानी है।”श्यामा जड़ रह गई।वो पैसे तो पार्टी के खानसामा को दे दिए थे उसने।जो हंगामा किया लल्लू ने कि श्यामा को हांथ जोड़कर कहना पड़ा कि अगले महीने की तनख्वाह से दे दूंगी।
कुछ दिनों में ही बहू भी पति के रंग में पूरी रंग गई।श्यामा के घर पहुंचने में तीन बज जाते थे दोपहर के।नहाकर आती तो देखती,सब अपने कमरे में सो रहें हैं। धीरे-धीरे बहू भी अब जमीन बेचने की बात करने लगी।बाबू अपनी तरफ से बहू के लिए दूध, बिस्कुट,अच्छा साबुन लाते रहते,पर उसका यहां मन ही नहीं लग रहा था।चार महीने बाद ही अपने मायके जाकर रहने की बात कही श्यामा से उसने।बीमार मौसी की देखभाल करनी होगी।लंबा रुकना पड़ेगा।
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श्यामा ने बस इतना पूछा”लल्लू से पूछ लिया है ना,वह तो बिलासपुर में ही रहता है।उससे पूछ ले।क्या बोलता है।”अगले ही दिन लल्लू घर पर उपस्थित हो गया।बीबी ने भी रात को ही तैयारी कर ली।दोनों ने अम्मा -बाबू के पैर भी नहीं छूए और चले गए। देखते -देखते एक साल होने को आया।अब तो बहू मां भी बन चुकी थी।यहां बाबू को अटैक आया तो रायपुर भेजा डॉक्टर ने। लल्लू को छोटे भाई ने खबर दी,तब वह बिलासपुर में ही था।उसने सपाट शब्दों में कह दिया”दो जन जाकर क्या करेंगे। बार-बार छुट्टी भी नहीं मिलेगी।
तू जा अभी,मैं बाद में आ जाऊंगा। जैसे-तैसे करके मरीज को अस्पताल पहुंचाया गया।पंद्रह दिनों के बाद मरणासन्न स्थिति में घर लाया गया बाबू को।आते ही पूछा उन्होंने “लल्लू कहां है?”अब श्यामा का पारा चढ़ गया।बोली”जिसने एक बार भी अपने मरते हुए बाप की खबर भी नहीं ली, तुम्हें उसी को देखना है।शरम नहीं आती तुम्हें।सब खर्च विमलेश (छोटा बेटा)किया है।दोनों दामाद लड़कियों को लेकर आ गएं हैं।बस एक तुम्हारे बड़े बेटे और बहू को ही टाइम नहीं मिला।
“बाबू भी दुखी थे बेटे को सामने ना पाकर।साल भर बाद थोड़ी तबीयत सुधरी तो बेटे को बोलकर बहू को ससुराल बुलवा लिया ससुर ने।नाती के मोह में।उसका जन्म दिन आ रहा था। लल्लू ने आते ही पूछा “पहला जन्मदिन है तुम लोगों के नाती का।कितना पैसा दे पाओगे,अभी बता दो।मैं उसी हिसाब से व्यवस्था बनाऊंगा।”
श्यामा ने खुश होकर कहा “दस किलो चांवल,दस किलो आटा,मसाला ,तेल,छोले पापड़ मोटा-मोटी सारा सामान जुगाड़़ कर के रखी हूं।बुआ लोग आएंगी तो केक और मिठाई भी ले आएंगी।”
लल्लू बोला”अच्छा!!!!तो टैंट,बाजा,डेक ये कहां से आएगा?ससुराल वालों के सामने नाक कटवाओगे तुम लोग मेरा।इतनी कम व्यवस्था में तो हो चुकी पार्टी।मैं रोशनी और बच्चे को लेकर ससुराल (कटनी)ही चला जाता हूं।वहां रोशनी के कज्ञ से कम सारे अरमान तो पूरे होंगे।यहां तो हम भिखारियों की जिंदगी जीते आए हैं,और आगे भी वैसे ही जिएंगे।”,
सचमुच ही पत्नी और बेटे को लेकर लल्लू सुबह की ट्रेन से निकल गया।बहुत रोई थी श्यामा।पति को भी कसम दी थी कि अब अपने से कभी ना बुलाए।
श्यामा के पति अब और लाचार -कमजोर हो चले थे। श्यामा के काम पर निकलते ही बेटे-बहू के पास छिपकर फोन लगाते। गिड़गिड़ाते हुए अनिकेत (नाती)से बात करवाने को कहते।पर बहू को टाइम ही नहीं मिल रहा था।एक दिन काम से लौटकर पति को फोन पर गिड़गिड़ाते हुए सुना श्यामा ने।
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अगले दिन बहू को कहा”एक अधमरा बाप अपने बड़े बेटे के लिए तो तरस ही रहा है,अब नाती के लिए बौराया है।तुम लोगों में इंसानियत बची नहीं इतनी भी।कहीं कल को कुछ हो जाएगा तो फिर ना देख पाओगे मुंह अपने बाबू का।”
बहू की चुप्पी मानो आग डाल दी श्यामा के दुख में।अंदर जाकर सीधे पति से पूछा”कसम दी थी ना तुमको।फोन नहीं लगाओगे।बड़े बेशरम बाप हो।नाती से बिना बात किए खाना हजम नहीं होता क्या।मेरे सामने तो बड़ा मुंह ऊंचा करके कह रहे थे,नाराज हो लल्लू से।अब मेरे पीठ पीछे नाराजी गायब हो गई।”
श्यामा की सच और कड़वी बातें सुनकर बोले उनके पति”आजकल जी घबराता है बहुत।लगता है ज्यादा दिन नहीं बेचूंगा।सपने में अनिकेत को देखता हूं।तभी उसकी आवाज सुनने का मन किया।अनिकेत आएगा तो अकेले नहीं ना आएगा, लल्लू ही लेकर आएगा।उसे भी देख लूंगा।हमारा पहला बच्चा है,नाराज तो हूं,पर बाप भी तो हूं।”
श्यामा इस बाप की नाराज़गी पर फूट-फूटकर रोने लगी।
शुभ्रा बैनर्जी
#नाराज़