मेरा नाम भी तो है – पुष्पा पाण्डेय

जब भी डाॅक्टर साहब के घर ज्यादा काम होता है तो  कस्तुरी अपनी बेटी को भी बुला लेती थी। उसको भी आराम होता था और मेमसाहब भी कहती हैं कि बुला लो। रविवार होने से वह घर पर ही रहती थी। बाकी दिन तो स्कूल जाना होता था। कस्तुरी की बेटी अंजलि पढ़ने में होशियार है।

उसकी रुचि और लगन देख कस्तुरी मेहनत मजदूरी कर उसे पढ़ा रही थी। दसवीं में पहुँच गयी थी। अंजलि भी स्कूल जाने से पहले माँ के साथ एक-दो घर जाकर काम करती थी फिर स्कूल जाती थी, लेकिन उसे डाॅक्टर साहब के घर जाना पसंद नहीं था। अंजलि वहाँ के माहौल में अहंकार भाव को महसूस करती थी।

डाॅक्टर साहब का बेटा जो अभी नौवीं कक्षा में था, अपने दोस्तों से अंजलि का परिचय नौकरानी की बेटी कह कराता था। ये अंजलि को पसंद नहीं था। अकेले में अपनी माँ से शिकायत भी कर चुकी थी, लेकिन कस्तुरी यही कहती रही-

” अरे हम नौकरानी हैं तो कह दिया तो क्या गलत किया?”

” हमारा नाम भी तो है माँ? “

“अरे बेटी दो-चार कड़वी बातें सुनना तो हम गरीबों की तकदीर है और फिर उनके घर से पैसा भी तो ज्यादा मिलता है।”

“पर माँ…”

“पर-वर नहीं आ जाना।मैं चलती हूँ।”

कस्तुरी चली गयी और अंजलि सोचती रही-

क्या गरीबों की इज्जत नहीं है। कुछ लोग ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे हम इंसान न होकर पालतू कुत्ते हैं। पर माँ के लिए तो जाना ही पड़ेगा।



अंजलि गयी, लेकिन मन में कुछ सोचकर गयी।——–

काम निपटाकर माँ का इंतजार कर रही थी और उसी समय  दूरदर्शन पर ‘मन की बात’ का प्रसारण होने लगा। अंजलि भी खड़ी हो देखने लगी। तभी डाॅक्टर साहब का दूसरा बेटा बोल पड़ा-

” तुम क्या खड़ी होकर देखने लगी? कहीं नौकरानी भी टेलिविजन देखती है?”

और दोनों भाई ठहाका लगा हँसने लगे। वहीं खड़ी उनकी माँ भी मुस्कुरा कर रह गयी। कहने को तो पढ़ा- लिखा सभ्य परिवार था, पर ये बातें अंजलि को मर्माहत कर गयी।

” काम छोटा-बड़ा नहीं होता है भइया। हम बैठे- बैठे नहीं खाते, मेहनत करते हैं। टेलिविजन देखने का हक तो हमें ही है।”

इसके बदले अंजलि को ये सुनने को मिला कि-

“तो जाओ न अपने से ऐश करो।मेरे घर आकर काम क्यों करती हो?”

नम आँखों से अंजलि उसी समय अपनी माँ का हाथ पकड़ घर से निकल गयी। रास्ते भर माँ को समझाती रही-

“मेरी पढ़ाई भले ही आगे न हो पाए, लेकिन तुम अब ऐसे अहंकारी घर में नौकरी नहीं करोगी। हम नौकरानियों का भी स्वाभिमान होता है।”

“अरे, बच्चे थे। मेमसाहब ने थोड़े ही कुछ कहा है?”

“माँ! ये संस्कार तो बच्चों में मेमसाहब ने ही तो दिया है। कल से तुम वहाँ नहीं जाओगी।”

कस्तुरी मन- ही-मन परेशान हो उठी। घर में  अपाहिज पति और बेटी की पढ़ाई के खर्च के लिए तो कुछ-न-कुछ करना पड़ेगा, लेकिन बेटी की पढ़ाई नहीं रुकनी चाहिए।

#आत्मसम्मान

पुष्पा पाण्डेय

राँची,झारखंड।

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