“राशि बेटा देख ये साड़ियां कैसी है? ”कहती हुई मॉं ने चार पाँच साड़ियाँ उसके सामने फैला दी
“बेटा तुम्हारी शादी है और तुम ही मुंह फुलाकर बैठी हो? घर में सबकुछ मुझे ही देखना है ना बेटा तेरे भाई भी अभी छोटे हैं …..तुम मदद नहीं करोगी तो मैं अकेले कैसे संभालूं? तुम्हारे पापा होते तो ये सब नहीं होता क्यों नहीं समझ रही हो..?” माँ ने कहा
“क्या समझूं माँ आप ही बताओ ना? सब के मुंह से बस यही सुन रही हूं मेरा कन्यादान कौन करेगा? माँ जब पापा हमें छोड़कर गये …हम चारों कितने छोटे थे…..मुझे आज भी याद है जब मैं छोटी थी हास्टल में पढ़ती थी छुट्टियों में जब घर आई तब पता चला पापा का एक्सिडेंट हुआ और वो हमारे बीच नहीं रहे….
हमारा ये दुःख कम नहीं था फिर भी लोगों के मुँह से दबी जुबान से सुनाई दिया अब राशि का क्या होगा ?….कहाँ पढ़ेंगी ?” राशि एक साँस में ग़ुस्से में बोल गई
“माँ तब तुमने और छोटे चाचा ने बोला जहां पढ़ती है वहीं पढ़ेंगी….ये उसके पापा का सपना है….फिर मां आज जब मेरी शादी होने वाली तुमने खुद खोज कर लड़का पसन्द किया सब कुछ तुम ही कर रही हो तो ये कन्यादान में क्या दिक़्क़त? …..मैंने सुना दादा जी ..
नाना जी से बात कर रहे थे आप ही बताइए समधी जी राशि का कन्यादान कौन करेगा? …घर में इतने सारे लोग हैं माँ फिर भी सब चुप थे…दादा जी बोले बड़े चाचा से करवा दिया जाये? ….माँ नाना जी पता क्या बोले आप जैसा उचित समझे करे समधी जी अब हम भी क्या बोले।” राशि ने जो सुना वो माँ को सुना दी
शादी की तैयारी पूरे जोर शोर से चल रही थी। राशि के पापा का सपना था इकलौती बेटी की शादी जब भी करूँगा धूमधाम से करूँगा….बस माँ ने ये बात गांठ बाँध ली और जितना कर सकती थी ….कर रही थी। तीन छोटे भाई भी बस ये सोच रहे थे कि पापा नहीं है तो लोग कोई बात न बनाएं शादी अच्छी तरह से हो जाए।
पर पेंच तो कन्यादान को लेकर अब भी अटका हुआ था।
राशि सोच रही थी जिन लोगों ने आज तक हम भाई बहनों के लिए कुछ किया नहीं उनके आशीर्वाद के साथ शादी कैसे कर ले….वो दादा जी के पास गई ….शादी के घर में भीड़ तो हो चुकी थी ऐसे में बात करना मुश्किल तो था पर ज़रूरी भी था ।
दादा जी ने पूछा “क्या बात है राशि कुछ बोलना है? ”
“जी दादा जी मुझे आप से और नाना जी से बात करनी है। ”राशि ने कहा
दादा जी ने बोला ,“अच्छा चलो दूसरे कमरे में चलकर बात करते।”
वो तीनों दूसरे कमरे में आ गये तो दादा जी ,“बोले हां बेटा बोलो क्या बात है?”
“दादा जी आपलोग मेरे कन्यादान की बात कर रहे हैं क्या आपने एक बार भी मुझसे पूछा मैं क्या चाहती हूँ ? मेरी मॉं कन्यादान क्यों नहीं कर सकती मुझे बतायेगे? मैंने मां से पूछा पर वो चुप रह जाती है….।
दादा जी बोले ,“बेटा हमलोगों में कन्यादान पति-पत्नी साथ मिलकर करते हैं ऐसे में आपकी मम्मी कैसे कर सकती? जब आपकी दादी गुजर गई तो आपकी बुआ की शादी उनके चाचा ने करी। फिर आपको आपत्ति किस बात पर हो रही?”
“दादा जी मुझे सब समझ आ रहा है….पर मुझे आप ही बताइए जो बड़े चाचा ने कभी हमारा हाल न जाना उनसे मैं कैसे उम्मीद करूं कि वो मुझे आशीर्वाद और प्यार से विदा करेंगे? मुझे ये भी पता है माँ को आपलोग किसी भी रस्मों रिवाज में शामिल नहीं होने देंगे जबकि उससे ज्यादा प्यार कौन दे सकता है? बस आप दोनों से विनती करतीं हूँ
मेरी माँ को मेरे आस पास ही रहने दे …..पापा नहीं है इसकी सजा वो काट रही है ….मैं अपनी शादी में उसको दूर करके और दुःख नहीं देना चाहती…..
रही बात कन्यादान की तो आप बस इतना कर दे छोटे चाचा ने हमेशा हमारा साथ दिया है अगर वो कन्यादान कर सकते है तो मुझे खुशी होगी….मुझे पता है छोटे चाचा से बड़े और एक और चाचा है पर बात अगर कन्यादान की है तो मेरा कन्यादान छोटे चाचा से करवा दीजिए।”
दादा जी और नाना जी ने विचार किया और बोले ,“ठीक है बेटा जिसमें तुम्हारी खुशी। ”
राशि भी अब खुश हो गई थी….पूरी शादी में उसकी माँ उसके साथ रही जब कन्यादान का वक्त आया तो दादा जी ने छोटे चाचा और चाची से बोले,“छोटे तुम दोनों राशि का कन्यादान करो । ”
छोटे चाचा और चाची ने बहुत प्यार से मुझे देखा और मुझे ऐसा लगा उनके आशीर्वाद के बिना मेरी विदाई शायद अधूरी रह जाती।
जब पंडित जी ने मेरा हाथ निकुंज के हाथ में चाचा चाची से रखने को कहा तो चाचा जी ने माँ से बोला ,“भाभी आप भी आइए ये हक तो आपका है। ”
मुझे ऐसा लगा जो बात मैं कब से चाहती थी चाचा जी ने मेरी ये इच्छा भी पूरी कर दी। दिल ही दिल में चाचा का धन्यवाद करती मेरी आँखों ने बहना चालू कर दिया। मैं खुश थी जैसे भी हुआ मेरा कन्यादान मेरी मां के हाथों भी सम्पन्न हुआ।
एक लड़की का कन्यादान माता-पिता से बढ़कर कोई और कैसे प्यार और आशीर्वाद से कर सकता है… अगर माता-पिता में से कोई एक साथी ना रहे तो लड़की का कन्या कैसे हो… किसी और से करवाने की प्रथा कहाँ तक सही है जब उसको उस बच्चे से कोई लगाव ही ना हो….
एक लड़की भी चाहती है उसके नए जीवन की शुरुआत ख़ुशी के साथ हो… किसी ऐसे अपने के साथ नहीं जो बस ज़िम्मेदारी समझ काम ख़त्म करें बल्कि उसके आशीर्वाद , प्यार और स्नेह के साथ शुरुआत करना चाहती है जो उसे अपना सा मान देता हो।
राशि की ज़िन्दगी में उसके चाचा चाची ने ये भूमिका निभाई… और उनके आशीर्वाद से वो आज बहुत ख़ुशी ख़ुशी अपनी ज़िन्दगी जी रही है ।
मेरी रचना पसंद आये तो कृपया उसे लाइक करे कमेंट्स करे और मेरी अन्य रचनाएँ पढ़ने के लिए मुझे फ़ॉलो करें ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश