“बस मां बहुत हो गया अब
मुझे नहीं करनी अपनी प्रदर्शनी बार बार।
हर बार कोई नया रिश्ता आता है और हमेशा की तरह मेरे आत्मसम्मान को चोट पहुंचा कर मना कर दिया जाता है।
माना कि मैं कद काठी में मोटी और छोटी ज़रूर हूं पर मेरा भी आत्मसम्मान है और अब मैने भी “एक फैसला अपने आत्मसम्मान के लिए, ले लिया है” कहती हुई पीहू अपने कमरे में चली गई।
मां, पापा आवाज़ लगाते रह गए पर उसने दरवाजा बंद किया और फूट फूट कर रोने लगी
“आखिर क्या कमी है मुझमें ?पढ़ने में होशियार, संस्कारी, गोरी चिट्ठी तो हूं बस मोटी और छोटी हूं इसलिए मैं किसी को पसंद नहीं आती?”
खुद से ही बतियाने लगी पीहू और न जाने कब उसकी आंख लग गई
एक मां का अपनी बेटी के लिए परेशान होना लाजिमी था इसलिए सुधा, पीहू की मां भी हर बार बेटी को नापसंद करने से बहुत दुखी थी और बेटी की चिंता में कई बीमारियों से दोस्ती कर बैठी।
रह रह कर सुधा अतीत की यादों में पहुंच जाती जब पीहू दस साल की रही होगी और डॉक्टर ने उसे अंडरवेट बताया था और इसी कारण उसकी इम्युनिटी वीक हो गई थी और वो महीने में बार बार बीमार रहने लगी। बदलता मौसम उसके लिए अस्थमा का अटैक लेकर लाता था। रात रात भर हो जाती थी उसे खांसते खांसते… साथ ही मम्मी भी परेशान रहती थी ।
पता नहीं किस चीज से उसे एलर्जी थी । बड़े ही जतन से पाला था उसे मम्मी पापा ने।
उसे आज भी याद है जब आइसक्रीम खाने से वो बीमार हो जाती थी इसलिए बेटी की खुशी के लिए सुधा और सुरेश दोनो माता पिता ने भी उसके लिए आइसक्रीम खाना छोड़ दिया ताकि वो जिद न करे।
बिल्कुल पतली दुबली , हल्की फूल जैसी थी उसकी काया
कितना ही इलाज़ करवाया पर फ़र्क ही नहीं पड़ता।
एक दिन सुधा की ननद जो दिल्ली रहती थी उसने एक वैध के बारे में बताया जो अस्थमा और एलर्जी का बहुत ही अच्छा इलाज़ करता था। सुधा ने पीहू का नया इलाज़ शुरू कर दिया और धीरे धीरे फर्क दिखने लगा और पीहू का वजन भी बढ़ने लगा।
अब पीहू कम बीमार रहने लगी और अपनी पढ़ाई पर अच्छे से ध्यान देने लगी।
पढ़ने में हमेशा से अव्वल आती ही थी और अब तो उसका स्वास्थ्य भी पहले से बेहतर हो गया । वो बहुत खुश रहने लगी।उसने स्कूल के साथ ग्रेजुएशन में भी पहला स्थान हासिल किया, उसके बाद एम. ए.बी .एड भी कर लिया और अब सरकारी नौकरी की तैयारी करना चाहती थी साथ ही उसकी नृत्य में भी रुचि थी तो डांस में डिप्लोमा करना चाहती थी ।
पर बढ़ता वजन शायद अब उसके लिए एक सजा बन गया था जिसके कारण वो उम्र से बड़ी दिखने लगी थी और चेहरे की रौनक भी जा रही थी। इसलिए घर वालों और नाते रिश्तेदारों ने सलाह दी कि बेटी शरीर में भारी और नाटी भी है तो कोई भी अच्छा रिश्ता मिलते ही चट मंगनी पट ब्याह कर देना ही उचित होगा । नौकरी तो होती रहेगी बाद में भी।पीहू के 24 साल के होते ही रिश्ते देखने शुरू कर दिए पर पांच साल बाद भी कहीं बात नहीं बनी । लड़का देखने ज़रूर आता पर नापसंद करके चला जाता।
आज भी ऐसा ही हुआ था जब पांचवीं बार लड़का उसे देखने आया और मना करके चला गया।
फोटो देखकर लड़का हां भर देता पर जब लड़की को आमने सामने देखता तो बात बनते बनते बिगड़ जाती।
इस तरह अपने आत्मसम्मान को बार बार चोट पहुंचते देख पीहू ने अपने आत्मसम्मान के लिए एक फैसला लिया
“वो अभी शादी नहीं करना चाहती बल्कि पहले अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मनिर्भर बनना चाहती है और आत्मसम्मान के साथ जीना चाहती है।”
जब ये बात पापा मम्मी को पता लगी तो दोनों ने उसका पूरा साथ देने का वादा किया ।
अब पीहू अपनी सरकारी नौकरी की तैयारी में लग गई और साथ ही अपने बचपन के शौक नृत्य को भी समय देने लगी।
उसने डांस में डिप्लोमा किया और एक अच्छे स्कूल में नृत्य शिक्षिका की नौकरी भी कर ली।
रोज़ नृत्य करने से उसका वजन कम होने लगा साथ ही एक्सरसाइज होने से चेहरे की चमक लौटने लगी।
पीहू बिल्कुल बदल गई । जो लोग कभी उसके कद काठी को लेकर बाते बनाते थे वो ही अब उसे कॉम्प्लीमेंट देने लगे
“अरे वाह पीहू तुम तो बड़ी स्लिम ट्रिम हो गई हो। बहुत सुंदर लगने लगी हो।”
पढ़ने में अव्वल, संस्कारी , समझदार तो थी ही अब आत्मनिर्भर भी बन चुकी थी ।अब उसके लिए रिश्ते आगे से आने लगे थे । पापा मम्मी के बहुत समझाने के बाद वो शादी के लिए राज़ी तो हो गई पर एक शर्त पर कि “लड़का अब उसको नहीं बल्कि वो लड़के को पसंद करेगी तो ही बात आगे बढ़ेगी “
पीहू की पसंद से वरुण के साथ उसकी चट मंगनी पट ब्याह हो गया और वरुण के रूप में उसे अपना मनचाहा हमसफर मिल गया।
दो साल की मेहनत भी रंग लाई और उसकी सरकारी नौकरी भी लग गई।
आत्मसम्मान के लिए आत्मनिर्भर होने के फैसले से उसका आत्मविश्वास भी अब कई गुना बढ़ चुका था जो पीहू के सपनों में रंग भर उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था।
दोस्तों आपको क्या लगता है?
पीहू का लिया गया फैसला सही था?
अपने विचारों से अवगत कराना न भूलें और हमेशा की तरह मेरा उत्साहवर्धन करते रहें
धन्यवाद
स्वरचित और मौलिक
निशा जैन
# एक फैसला आत्मसम्मान के लिए