“छोड.. छोड़… छोड़ दे ना प्लीज़, देख , किसी की डायरी पढ़ना अच्छी बात नहीं है, चल दे अब, मेरी डायरी” साधिका ने बेटे आराध्य से अपनी डायरी झपटने का प्रयास किया।
“वाह.. वाह… वाह हह, मॉम यू आर एन अमेजिंग राइटर, कितना सुंदर लिखतीं हैं आप, आपकी इन पोयम्स की तो बुक पब्लिश होना बनता ही है, मैं आज ही पापा से बात करता हूं” आराध्य ने डायरी को पढ़ते हुए कहा।
“अरे नहीं रे, ये तो… मैं बस यूं ही, जो दिल में आता है,लिख लेतीं हूं, प्लीज़ पापा को मत बताना” साधिका ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
“क्या नहीं बताना है भई पापा को” अचानक प्रथमेश ने कमरे में दाखिल होते हुए पूछा।
“क..क.. कुछ नहीं जी, ये तो..”साधिका ने कुछ कहना चाहा।
“पापा, मॉम तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली, इतना बढ़िया लिखतीं हैं कि जो पढ़े , वो इनका कायल हो जाए, एक एक शब्द जैसे दिल में उतर जाए, इन्होने आज तक हमसे यह राज़ छिपा कर रखा था, लेकिन अब तो इनकी किताब छप कर ही रहेगी, क्यों पापा,आप क्या कहते हैं” आराध्य ने प्रथमेश को डायरी देते हुए कहा।
“हां बेटा ज़रूर, तुम्हारी मॉम शुरू से ही अंतर्मुखी है, अपने दिल की बात किसी से नहीं बतातीं, वह तो खुशनसीब है यह डायरी, जिसमें इन्होंने अपने दिल के भावों को शब्दों में पिरोया है, वह भी इतनी सुंदर भाषा में, अब तो यह किताब ज़रूर छपेंगी, और इसके बाद भी छपती रहेगी, अभिनंदन लेखिका मोहतरमा,तो आराध्य हो जाए,इसी बात पर ताली”प्रथमेश ने अपना हाथ आगे किया,जिसपर आराध्य ने थपक दिया।
साधिका की अश्रुधार बह निकली,वह रुंधे गले से बोली-
” आज आपने और आराध्य ने हाथ बढ़ाकर, मुझे मेरा आसमान दे दिया”
*नम्रता सरन”सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश