माधवी ऑफिस जा रही थी। उसी समय देवरानी ने फ़ोन किया था कि दीदी आज आप ऑफिस मत जाइए शायद मुझे अस्पताल जाना पड़ेगा।उसका नवाँ महीना चल रहा था इसलिए वह माधवी को अपने साथ अस्पताल चलने को कह रही थी । उधर से देवरानी की आवाज़ सुनाई दी आप मेरे साथ चल रही हैं ना । वैसे आपके देवर आ रहे हैं परंतु आप होंगी तो मुझे अच्छा लगेगा । माधवी देवरानी के साथ अस्पताल जाने के लिए तैयार हो जाती है ।
माधवी ने ऑफिस में फ़ोन करके दो दिन की छुट्टी ले ली । माधवी की शादी को हुए दस साल हो गए थे परंतु उनके बच्चे नहीं हुए थे । उन्होंने बहुत सारे डॉक्टरों के चक्कर काटे दवाइयाँ भी खाईं पर कुछ फ़ायदा नहीं हुआ था । माधवी के पति चक्री घर में बड़े थे । चक्री के परिवारमें एक भाई रमन और एक बहन सुजाता थी। पिता की मौत के बाद माँ इनके साथ ही रहती थी ।
वह अपना ज़्यादा वक़्त रमन के यहाँ बिताती थी क्योंकि रमन का एक छोटा बेटा था । रमन बैंक में नौकरी करता था । इनके ही फ़्लैट में ऊपर किराए पर रहता था और बहन सुजाता चेन्नई में रहती थी ।
माधवी की सास ने उसे बाँझ का ख़िताब देकर उसकी तरफ़ ध्यान देना छोड़ दिया था । रमन की शादी होते ही उसकी पत्नी पल्लवी कनसिव हो गई थी सास खुश हो गई थी और नवें महीने में ही उसने एक लड़के को जन्म दिया था जिसका नाम सास ने बड़े ही प्यार से कृष्णा रखा था ।अब पल्लवी सास की चहेती बन गई थी । वह उनके घर में ही कृष्णा की देखभाल करते हुए रह गई थी ।
माधवी कभी कृष्णा को गोद में लेने के लिए जाती भी थी तो वे उन्हें उसे गोद में लेने नहीं देती थी ।
कृष्णा अभी एक साल का भी नहीं हुआ था कि पल्लवी फिर से प्रेगनेंट हो गई थी । उसके पति और सास ने कहा अभी बहुत जल्दी है बच्चा पैदा करना जाकर अबार्शन करा ले । पल्लवी को माधवी बहुत अच्छी लगती थी इसलिए उसने अपने पति और सास से कहा कि इस बच्चे को मैं जन्म देते ही माधवी दीदी को दे देती हूँ। सास ने सोचा था कि यह भी अच्छा है क्योंकि दो दिन पहले ही उसने चक्री और माधवी की बातें सुनी थी
कि वे बच्चे को गोद लेने की सोच रहे हैं । उन्होंने सोचा था कि घर की बच्ची को ही गोद लेंगे तो घर का पैसा घर में ही रहेगा अन्यथा बाहर वालों के पास चला जाएगा ।सास यह सोचकर भी खुश हो गई थी कि बड़े बेटे को भी एक बच्चा मिल जाएगा । उन्होंने चक्री और माधवी को जब यह बात बताई तो दोनों भी बहुत खुश हो गए थे ।
माधवी तो आने वाले बच्चे की कल्पना करने लगी सपनों में खोई रहती थी। उसका नाम क्या रखेगी और उसे किस नाम से बुलाएगी । एक दिन माधवी ने अपने पति से कहा कि वह नौकरी छोड़ देना चाहती है क्योंकि बच्चे को देखने के लिए उसे घर में ही रहना है । वह अपने आने वाले बच्चे को पूरा प्यार देना चाहती थी उसकी हर हरकत का आनंद लेना चाहती थी।
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पति ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की थी कि माधवी मेरे ख़याल से तुम कुछ ज़्यादा ही उन पर भरोसा कर रही हो कहीं उन्होंने अपने बच्चे को देखने के बाद इरादा बदल लिया तो निराश हो जाओगी रोते बैठी रहोगी तब तुम्हें अपने आप को सँभालने के लिए मुश्किल हो जाएगी ।
माधवी सोचती है कि चक्री ऐसे ही डर रहे हैं। उसने कहा शुभ शुभ बोलिए आप ख़ामख़ाह डर रहे हैं मुझे पल्लवी और रमन पर बहुत भरोसा है। वे हमारा भरोसा नहीं तोड़ेंगे फिर भी उसने सास से पूछा कि माँ सचमुच पल्लवी रमन हमें बच्चा दे देंगे ना । सास ने कहा है अरे माधवी उनकी ज़ुबान पक्की है वे लोग तुम्हें बच्चा जरूर दे ही देंगे फ़िक्र मत कर । सास की बात सुनकर माधवी बेफिक्र हो गई थी और पल्लवी को बच्चा होने का इंतज़ार करने लगी ।
उसने पूरे घर को बच्चे के हिसाब से सजाया था । उसके कमरे को भी उसने सजाया था। वह दिन रात बच्चे के ही सपने देखने लगी थी। वह दिन भी आ गया जब पल्लवी को अस्पताल में भर्ती कराया जाना था । जैसे ही पल्लवी ने कहा दीदी साथ चलेंगी वह उसके साथ अस्पताल चली गई थी ।
वहाँ पल्लवी ने बहुत ही सुंदर बच्ची को जन्म दिया था । माधवी उसे देखते ही फूली न समा रही थी । चक्री भी ऑफिस से आते समय बच्ची को देख कर घर पहुँच गया था । पल्लवी को डिस्चार्ज किया गया था तो वह बच्ची को लेकर सीधे अपने घर गई । सास भी बच्ची को देख कर खुश हो गई थी कि गोरी सी सुंदर गोल मटोल सी बच्ची थी ।
माधवी रोज़ उनके घर के चक्कर लगा रही थी और यह सुनने के लिए बेताब थी कि वे कहेंगे कि ले माधवी बच्ची को अब तू ही सँभाल ले परंतु ना उन्होंने कुछ कहा नहीं था तो उसने सास के सामने बात छेड़ी तो उन्होंने कहा कि दस दिन बाद ले जाना अभी छोटी है । इस तरह से तीन महीने हो गए पर उन्होंने बच्ची को नहीं दिया था ।
एक दिन माधवी शाम को ऑफिस से घर आई और हाथ मुँह धोकर ऊपर गई थी तो देखा घर पर ताला लगा हुआ है । उसने पति को फ़ोन किया था तो उन्होंने कहा कि भाई ने घर बदल दिया है अपने ससुराल वालों के पास पहुँच गया है । माँ भी उनके साथ चली गई है ।
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माधवी के आँखों से आँसू बहने लगे थे। वह वहीं पर सीढ़ियों पर हताश होकर बैठ गई थी । चक्री ने आते ही उसे सँभाल लिया था। उसे घर के अंदर ले जाकर सोफे पर बिठाया पानी पिलाया और उससे कहा कि माधवी मैंने कितनी बार तुमसे कहा था कि उन पर ज़्यादा भरोसा मत करो क्योंकि कहना अलग होता है और करना अलग हो जाता है । तुम भी सोचो नौ महीने कोख में रख कर बाहर आते ही अपने जिगर के टुकड़े को किसी और के हाथों में सौंप देना आसान काम नहीं है । तुम अगर उस परिस्थिति में रहती तो शायद हम भी यही करते थे । पर तुमने मेरी बात नहीं सुनी देखो अब क्या हुआ है ।
माधवी डिप्रेशन में चली गई थी । उसे ठीक होने में पाँच छह महीने लग गए थे। उसने फिर से ऑफिस जॉइन कर लिया था । वह बार बार सोचती थी कि मैंने तो अपने जीवन से समझौता कर लिया था पर उन्होंने ही मेरे दिल में उम्मीद जगाई थी और आज मुझे धोखा देकर चले गए हैं ।
माधवी की हालत सुधरने के बाद चक्री ने उससे कहा कि माधवी तुम्हें सचमुच बच्चे चाहिए हैं तो चलो हम एक अनाथ बच्ची को गोद ले लेते हैं । माधवी भी सोचने लगी थी कि चक्री सही कह रहे हैं एक बच्ची को गोद लेकर हम अपने अकेले पन को दूर कर सकते हैं । एक दिन चक्री अपनी पत्नी को साथ लेकर एक अनाथ आश्रम में जाता है और वहाँ से एक सुंदर सी लड़की को गोद ले लेता है ऑफिस के सारी फारमालटीस पूरी करने के बाद माधवी और चक्री ने एक लड़की को गोद ले लिया था । माधवी बच्ची को घर लाकर बहुत खुश हो जाती है । चक्री और माधवी ने अपनी बच्ची का परिचय सबसे कराना चाहते थे इसलिए उन्होंने एक छोटी सी पार्टी रखी सबको उस पार्टी में बुलाया था । पल्लवी रमन और सास भी बच्चों को लेकर आए थे । पल्लवी ने माधवी के हाथों को पकड़ा और माफी माँगते हुए उसे बताने की कोशिश की थी कि माधवी बच्ची के पैदा होते ही रमन ने बच्ची से बहुत सी उम्मीदों को पाल ली थी इसलिए मैं भी कमज़ोर पड़ गई थी और उनका साथ दिया है । माधवी मुझे माफ़ करना । माधवी ने कहा कोई बात नहीं है पल्लवी मैंने ही ज़्यादा भरोसा कर लिया था पर कोई बात नहीं है। ऐसा हुआ तब ही तो हमें फूल सी कोमल सी गुड़िया मिली है।रमन ने भी चक्री से माफी माँगी थी । दोनों परिवार के लोगों के मन में जो मनमुटाव था वह मिट गया था । दोनों परिवार में फिर से आना जाना शुरू हो गया था । अब चक्री की माँ भी आकर उनके घर में रहने लगी थी । आज माधवी अपने छोटे से परिवार के साथ खुश है ।
दोस्तों बच्चे न होने की स्थिति में पति पत्नी बच्चों के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं । इस तरह लोगों को भरोसा देकर उनके भरोसे को तोड़ना भी बहुत ही ग़लत बात है । अपने बच्चे को दूसरों के हाथों सौंपना मुश्किल है इसलिए वादा करने के पहले ही सोच लेना चाहिए हम अपने वादे को पूरा कर सकते हैं क्या?क्योंकि कभी-कभी भरोसा टूट जाता है तो व्यक्ति अपनी ज़िंदगी में सब कुछ खो देता है ।
#भरोसा
के कामेश्वरी