आज शकुंतला के सामने पिछली कई तीजों के दृश्य घूम गये।
छोटी बहू श्यामली सबके हाथों में मेहंदी लगा कर अपने बाईं हथेली को सुंदर तरीके से मेहंदी से अलंकृत करती तथा पति तुषार से दाईं हथेली पर एक गोल टिक्की बनवा कर अपना और तुषार का नाम लिखवाती थी।
तीज के दिन उठ कर दोनों बहूएं सबसे पहले सास के चरण स्पर्श करके उनकी मेहंदी देखती; फिर अपनी दिखाती ।शकुंतला खूब खुश हो कर दोनों को झोली भर कर आशीर्वाद देतीं।
लेकिन पिछले वर्ष दिवाली से चार दिन पहले तुषार की एक दुर्घटना में हुई मृत्यु ने सब बदल गया; श्यामली की मेहंदी का रंग उड़ गया।
कितना समझाया सबने श्यामली को .” आजकल कौन ऐसे रहता है? जमाना बदल गया है ।”
शंकुतला का मन बहू का यह रूप देख टूट जाता। उन्होंने भी पति के जीवित होते हुए खुद को विधवा का जामा पहना दिया ।
छोटी बहन ने समझाने की कोशिश की तो उसे भी एक डाँट लगा दी ” मेरे सामने जवान बहू का सिंगार चला गया और मैं सिंगार करूँ; मेरे दिल पर हथौड़े चलते है श्यामली का यह रूप देख कर।”
श्यामली ने अपने सिलाई के डिप्लोमा का उपयोग किया।कोने के घर में एक तरफ निकली हुई ससुर की बनाई हुई दो दुकानों में से एक दुकान में अपनी सिलाई की दुकान खोल दी।
” श्यामली इधर आ “शकुंतला की बड़ी बहू सुषमा बोली
सुषमा ने श्यामली की हथेली पर जैसे ही मेहंदी का कोन छुआया ;श्यामली ने अपना हाथ ऐसे खींचा जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया।
” तो सुन ले अगर आज तूने मेहंदी नही लगाई तो मैं कभी मेहंदी नही लगाउंगी ; चल लगा मेहंदी । अपने लिए नही तो दोनों बच्चों के लिए सज लिया कर ” सुषमा ने बोलते हुए हाथ खींच कर श्यामली की हथेली पर मेहंदी लगा दी।
नव्या भी माँ को खुश देख कर अपने आप छोटी सी हथेली पर मेहंदी लगाने लगी ।श्यामली ने देखा उसके दोनों बच्चे आज कितने महीने बाद खुल कर हँसे है।नव्या तो आठ साल की है दस साल के आरव ने भी दादी की हथेली पर गोल टिक्की बना दी।
” सुषमा! आज तूने जो किया है उससे मेरे दिल को बहुत सुकून मिला है ;आ मेरे गले लग जा ।” शकुंतला स्नेह सिक्त स्वर में बोली।
“मम्मी जी !औरत को औरत बन कर ही समझना होगा ना कि सास और जेठानी-देवरानी बन कर ; तब ही मेहंदी रंग लायेगी ” सुषमा मुस्करा कर बोली।
दीप्ति सिंह (स्वरचित)