मीठी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।।
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, कि प्रत्येक मनुष्य को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो श्रोता (सुनने वाले) के मन को आनंदित (अच्छी लगे) करे ऐसी भाषा सुनने वालो को तो सुख का अनुभव कराती ही है, इसके साथ स्वयं का मन भी आनंद का अनुभव करता है ऐसी ही मीठी वाणी के उपयोग से हम किसी भी व्यक्ति को उसके प्रति हमारे प्यार और आदर का एहसास करा सकते है।
आज अचानक ही यह दोहा पढ़कर मैं मेरे बचपन के गलियारों में सैर करने लगी थी वाणी हमारे जीवन में बहुत महत्व रखती हैं।
वाणी ऐसी होनी चाहिए जो दिल का रिश्ता जोड़ दे पर इस व्यावहारिक व आनलाईन जमाने में कहां ऐसे दिल के रिश्ते जुड़ पाते हैं, उसके लिए हमें भूतकाल में पुनः जाकर अपने मन में बसे अनगिनत दिल के रिश्ते फिर टटोलने पडेंगे।
मुझे सहसा याद आ गये केवल रामचंदानी जी जो मेरे शहर के सबसे बड़े साड़ी विक्रेता थे।
ऐसा नहीं हैं की शहर में और साड़ियों की दुकानें नहीं हैं पर केवल रामचंदानी जी की खासियत ना सिर्फ उनकी साड़ियां बल्कि उनकी मीठी वाणी व वाकचातुर्य भी था जो ग्राहक को साड़ियां खरीदने पर मजबूर कर देता था।
बचपन से ही अपनी माँ को उनकी दुकान से साड़ियां लेते हुए देखती थी उनकी लच्छेदार बातों के जाल में उलझकर माँ एक साड़ी खरीदने जाती और पाँच लेकर आती थी।
रामचंदानी अंकल सेल्समैन के होते हुए भी स्वयं तरह-तरह की भाव भंगिमा बनाकर साड़ी लपेटकर ग्राहकों को सम्पूर्ण संतुष्ट करते थे।
” अरे बैणसा( बहनजी)!! या साड़ी पैर कर थे स्वर्ग री अप्सरा लागोला(यह साड़ी पहनकर आप स्वर्ग की अप्सरा लगोगी) ” रामचंदानी अंकल एक साधारण शक्ल सूरत वाली महिला से कहते हुए नजर आए।
” भाईसा!!आप मजाक घणी करों हो “( भाई आप बहुत मजाक करते हैं) अमुक औरत शर्माकर बोली और चार साड़ियां खरीद कर ले गयी।
“मैं गरीब मिणक हूँ इत्तो मोल-भाव पोसावे कोणी बैणसा” (मैं गरीब आदमी हूँ इतना मोलभाव नहीं परवरेगा) किसी औरत को रामचंदानी अंकल समझाते नजर आए।
रामचंदानी अंकल और गरीब!! इतना बड़ा बंगला शहर के मध्य स्थित था मैंने सोचा।
रामचंदानी अंकल बड़े कठोर मिजाज व मितव्ययी स्वभाव के थे जो ग्राहकों को भगवान समझते थे पर अपने सेल्समैन व बेटो के साथ सख्त थे।
मैंने एक दिन बाल सुलभ जिज्ञासा में उनसे इसका कारण पूछा।
” देखो बाईसा !! गिराक भगवान होवे है और भगवान सू मीठो बोलनो पड़े हैं पिण फालतू का खर्चा व कामचोरी धंधे में बरकत कोणी करे ई वास्ते मैं सख्त रेऊ “( बिटिया ग्राहक भगवान होता हैं जिनसे हर हाल में मधुरता से बोला जाता हैं और फिजूल खर्ची व कामचोरी से व्यापार डूब जाता हैं इसलिए मैं सख्त रहता हूँ)।
मेरी शादी की खरीदारी सब जगह देखभाल कर रामचंदानी अंकल की दुकान से सम्पन्न हुई मम्मी और कही जाने को तैयार नहीं थी।
” बाईसा!!थारे ब्याव वास्ते एक सू बढकर एक साड़ी मंगाई हूँ अरे कंवर सा तो थने देखता रे जावे ला “(बिटिया तुम्हारी शादी के लिए एक से बढ़कर एक साड़ी मंगवाई हैं दामाद जी तुम्हें निहारते रह जाएंगे)मीठी वाणी में बोलते हुए रामचंदानी अंकल बेहद उत्साहित नजर आए ,दामाद जी ने तो मुझे नहीं निहारा पर रामचंदानी अंकल की दुकान वाली सारी साड़ियां मैं विवाह के इतने वर्षो पश्चात भी निहारती और सहेजती रहती हूँ ।
एक से बढकर एक सुन्दर साड़ियों के ढेर लगाकर रामचंदानी अंकल ने अपनी मीठी वाणी में उसी तरह साड़ियां लपेटकर बताई और मैं हंसी से लोटपोट हो रही थी,माँ अपने साड़ी चुनने के कौशल पर गर्वित नजर आयी पर असली कौशल तो रामचंदानी अंकल का था।
रामचंदानी अंकल से सिर्फ ग्राहकी का नहीं बल्कि एक निजी दिल का रिश्ता भी जुड़ जाता था जो आजकल संभव नहीं नजर आता हैं ( आनलाईन शापिंग का जो जमाना हैं)।
रामचंदानी अंकल नारियल की तरह थे जो अंदर से नरम व बाहर से सख्त होता हैं।
” छोरा!!और पीसा चाहिए तो मांग लीजे पिण टाबर को इलाज नहीं रूकणो चाहिए ” ( लड़के और पैसा चाहिए तो मांग लेना पर बच्चे का इलाज नहीं रूकना चाहिए) रामचंदानी अंकल अपने सेल्समैन से बोले।
मुझे पता चला की सेल्समैन के पाँच वर्षीय बच्चे की तबीयत खराब हैं और रामचंदानी अंकल ने उसके इलाज का खर्चा उठाया हैं,कठोर दिखने वाले रामचंदानी अंकल तो सच में सबसे दिल का रिश्ता जोड़ कर रखते थे।
” देखो बाईसा !! हर चीज धंधो कोणी होवे हैं मने भी उपर जा ने झूलेलाल को मुंडो दिखाणो हैं ” ( बिटिया हर चीज व्यापार नहीं होती हैं मुझे भी उपर जाकर झूलेलाल को मुँह दिखाना हैं) आज रामचंदानी अंकल के व्यक्तित्व का अलग पहलू नजर आया।
शादी के बाद में मुम्बई आ गयी और रामचंदानी अंकल व उनकी यादें पीछे छूट गयी।
आज जब वापिस अपने शहर जाना हुआ तो यकायक रामचंदानी अंकल की याद आयी।
रामचंदानी अंकल की छोटी सी दुकान अब शापिंग मॉल में बदल गयी थी, उनके बेटे सब कार्यभार संभालने लगे थे सेल्समैन की जगह सेल्सगर्ल थी अब रामचंदानी अंकल साड़ी लपेटकर मीठी वाणी में नहीं बोलते थे
सब आधुनिक हो गया था,दुकान प्रगति के आसमान पर थी पर दिल का रिश्ता नजर नहीं आया।
” अरे रीमा!!कहा मर गयी मैडम को साड़ी दिखाओ और ज्यादा वक्त मत खराब करना आज एक बड़ी पार्टी साड़ियां लेने आने वाली हैं ।”
रामचंदानी अंकल के बेटे की कर्कश आवाज गूँजी,मीठी वाणी खो गयी और ना जाने क्यों अब रिश्ते दिल के नहीं आनलाईन होने लगे जो बटन दबाने पर चालू होते और बटन दबाने पर मिट जाते हैं।
मुझे सिर्फ एक साड़ी लेनी हैं यह जानकर वह ज्यादा उत्सुक नहीं नजर आया और बड़ी पार्टी का स्वागत करने लगा।
ग्राहक भगवान होता हैं यह परंपरा आज टूट गयी मैंने बेमन से साड़ियां देखी पर कोई पसंद नहीं आयी कैसे पंसद आती दिल का रिश्ता साड़ियों से भी नहीं जुड़ पाया और जब में बाहर निकली तो रामचंदानी अंकल की हार चढ़ी तस्वीर दिखाई दी जो मुझसे मानो पूछ रही थी।
” बाईसा!!साड़ी कोणी ली कई ” (बिटिया साड़ी नहीं खरीदी क्या)? और मैंने बड़ी कठिनाई से अपने बहते हुए आँसू रोके।
अब वो मीठी वाणी, धैर्य, सहिष्णुता वाकचातुर्य व दिल का रिश्ता गायब हो गया था।
यह रचना समर्पित हैं अनगिनत शहरों के उन छोटे दुकानदारों को जो अब आनलाईन शापिंग के जमाने में कहीं खो गये हैं, पर सही मायने में यही दुकानदार अर्थव्यवस्था की मजबूत नींव हैं और आनलाईन शापिंग के जमाने में हम सैकडों ऐसे रिश्तों को भूल गये हैं,रामचंदानी अंकल जैसे बुजुर्ग आज भी यदाकदा अपनी वर्षो पुरानी परंपरा को संभाले हुए हैं जिसमें ग्राहक भगवान का रूप होता हैं,क्यों ना ऐसे बुजुर्ग दुकानदारों से फिर दिल का रिश्ता जोड़ा जाए?
कहानी का अर्थ समझाने के लिए कबीरदास जी का उपरोक्त दोहा प्रयोग किया हैं।
दोहा व अर्थ स्वरचित नहीं हैं पर सिर्फ कहानी को आगे बढ़ाने का व उसका उद्देश्य समझाने हेतु प्रयोग किया हैं किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में
#दिल_का_रिश्ता
पायल माहेश्वरी
यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं