“बेटा, आज तुम्हें चौका छुलाई की रस्म करनी है, मैंने और महाराज ने बाकी सब खाना बना लिया है बस तुम्हें मीठे केसरिया चावल बनाने है ,शगुन के तौर पर” नवेली बहू से रागिनी ने कहा।
“जी मम्मीजी” सलोनी धीमे से बोली।
“आते हैं न बेटा” होस्टल मे पढ़ी सलोनी से रागिनी ने संशयपूर्ण स्वर में पूछा।
“ज..जी मम्मीजी” सलोनी ने संकोचवश हामी भर दी।
“चलो तुम बनाना शुरू करो, मैं पंडितजी को एक बार फिर याद दिलाकर आती हूँ कि वे समय से आ जाऐं, पास ही है मंदिर, बस अभी आती हूँ, और सुनो बेटा, पहली रसोई है,ज़रा अच्छे से बनाना, अम्माजी सबसे पहले चखेंगीं” रागिनी ने थोड़े चिंतित स्वर में कहा।
“जी मम्मीजी, मैं कर लूंगी” सलोनी धड़कते दिल से बोली।
“ठीक है बेटा”कहकर रागिनी किचन से निकल गई।सलोनी ने गहरी साँस भरी।
“का हुआ मोड़ी” अचानक अम्माजी की आवाज़ से सलोनी सिहर गई।
” चल जल्दी से चावल धोकर उबाल ले, मैं तुझे बहुत सरल तरीका बताती हूँ, मीठे स्वादिष्ट चावल बनाने का, इन धुले हुए चावलों को सादा उबाल लेना, उसके बाद कड़ाही मे घी तड़काकर लौंग, इलायची और केसरिया रंग का छौंक लगा देना, उसके बाद उबले चावल डालकर ,ऊपर से चीनी मिला देना, अच्छे से हिलाकर ,सूखे मेवों से सजा देना, समझ गई न, अब मैं चलती हूँ, पंडितजी आते ही होंगे” कहकर अम्माजी झट किचन से निकल गईं, सलोनी के चेहरे पर खुशी की लहर छा गई, अम्माजी कितने तरीके से उसे चावल बनाने की विधि बता गई थीं।
“वाह, खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है, अम्माजी तुझे पास कर ही देंगी, वाह, देखने में भी सुंदर लग रहे हैं” रागिनी संतुष्ट भाव से बोली।
“अम्माजी, ये लीजिए, बहू की पहली रसोई, मीठे चावल, खाकर बताईए कैसे बने हैं” रागिनी का दिल धकधक कर रहा था कि अम्माजी कोई कमी न निकाल दें।
“वाह, एक नंबर, मोड़ी ये ले नेग, बहुत ही स्वादिष्ट बनें हैं तेरे हाथ के मीठे चावल, खाओ..खाओ…सब खाओ भई, और बहुरिया को नेग देते जाओ”अम्माजी झूमती हुई बोलीं।
“शुक्र है अम्माजी को चावल पसंद आए” रागिनी मन ही मन सोचते हुए मुस्कुराई।सलोनी ने कृतज्ञ भाव और भरी आँखों से अम्माजी और रागिनी के पैर छुए।
“जीती रहो” दोनों के आशीर्वाद मे मीठे चावलों की मिठास घुल रही थी।
*नम्रता सरन “सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश