*मीठा आग़ाज़* – *नम्रता सरन “सोना”

“राज, एक बात कहूँ” रश्मि ने कहा।

“हाँ बोलो, क्या बात है” राज ने लेपटॉप पर नज़रें गढाए हुए कहा।

“पापा के गुज़र जाने के बाद मम्मा बिल्कुल अकेली रह गई हैं, हर समय उनकी फिक्र लगी रहती है कि कहीं रात बिरात उन्हें कोई तकलीफ परेशानी हो गई तो वो कैसे मैनेज करेंगी, तो..मैं सोच रही थी कि मम्मा को अगर..हम..यहीं अपने साथ ही रखें तो.. उनका कोई खर्च हम पर नहीं आएगा, वे खुद अपना खर्च उठाएंगी, बस यहाँ रहने से वे हमारी आँखों के सामने रहेंगी, तो हम बेफ्रिक रहेंगे, और मम्मीजी को भी एक साथी मिल जाएगा, दोनों का दिल लगा रहेगा… क्या कहते हो आप?” रश्मि ने प्रश्नात्मक राज को देखते हुए कहा।

“ये इतना आसान नहीं है जितना तुम समझ रही हो, दोनों के ईगो टकराएंगे, कुछ ही समय के बाद सीन चेंज हो जाएगा माय डियर, दो दिन के प्यार के बाद शुरू हो जाएगा तनाव, जो हमें और ज़्यादा तकलीफ़ पहुंचाएगा, हम किसका फेवर करेंगे, जिसका न करेंगे, वही बुरा मान जाएगा, रश्मि मेरे हिसाब से ये प्रैक्टिकली सही नही होगा” राज ने गंभीरता से कहा।

“प्रोफेसर साहब, आप कुछ ज़्यादा ही मनन चिंतन कर लेते हैं, ऐसा कुछ नहीं होगा, मम्मीजी खुद मुझसे कितनी बार पूछ चुकी हैं कि तुम्हारी मम्मी को अकेलापन खलता होगा, कभी दो चार दिन के लिए तुम उनके पास चली जाया करो या उनको यहाँ बुला लो, थोड़ा मन ही बहल जाएगा उनका, अब तुम ही कहो, जब मम्मीजी खुद उनके लिए इतना सोचती हैं तो उनके यहाँ आने पर उन्हें क्या एतराज़ हो सकता है?” रश्मि ने प्रश्न किया।

“कोशिश करके देख लो, ये न हो कि रिश्तों में कड़वाहट आ जाए” राज कंधे उचकाकर बोला।

“कुछ नहीं होगा, सब कुछ बढिया ही रहेगा, मैं आज मम्मीजी से बात करती हूँ”रश्मि ने आँखों में चमक भर कर कहा और कमरे से निकल गई, राज कुछ सोच मे डूब गया।

“मम्मीजी, पूजा कर ली आपने?”रश्मि ने सासुमां से पूछा।

“हाँ, बेटा, जल्दी से नाश्ता लगा दे, पेट में चूहे कसरत कर रहें हैं” सासुमां ने पेट पर हाथ रखते हुए कहा।

“जी बिल्कुल, आप टेबल पर जाकर बैठिए, मैं दो मिनिट मे नाश्ता लगाती हूँ”रश्मि ने कहा और किचन की तरफ मुड़ गई।

“ये लीजिए मम्मीजी, गर्मागर्म कचौरियां, मूंग की दाल की, आपके पसंद की हरी चटनी के साथ”रश्मि ने प्लेट रखते हुए कहा।

“वाह, इतवार को तो मज़ा ही आ जाता है नाश्ते खाने का”सासुमां के मुँह मे पानी आ गया।

“क्या करुं मम्मीजी, रोज़ ऑफिस के कारण जल्दी में जो बन जाता है वो बना जाती हूँ, लेकिन संडे को यही कोशिश करती हूँ कि आप लोगों की पसंद का ही कुछ बनाऊं” रश्मि ने मुस्कुराते हुए कहा.


“हाँ बेटा, मैं समझती हूँ, संडे को घर कितना अच्छा लगता है, तुम लोग घर में रहते हो, चहलपहल रहती है, रोज़ तो सुबह से शाम तक समय काटना मुश्किल हो जाता है” सासुमां कचौरियों का आनंद लेते हुए बोली।

“जी मम्मीजी, इसीलिए मैं एक बात सोच रही हूँ” रश्मि ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा।

“क्या बात बेटा?”सासुमां ने प्रश्न किया।

“मम्मीजी, वहाँ मेरी मम्मा भी अकेली हो गई हैं, तो क्यों न उन्हें यहाँ बुला लें..”रश्मि ने थोड़ा संभलकर बोला।

“हाँ-हाँ, बेटा, बुला लो, कुछ दिन यहाँ रहेंगी तो उन्हें भी अच्छा लगेगा, कुछ समय मेरा भी अच्छा निकल जाएगा, दोनों बतियाते रहेंगें, बुला लो..बुला लो” सासुमां खुश होते हुए बोलीं।

“मम्मीजी, मेरा मतलब ये था कि उन्हें यहीं बुला लेतें हैं, हमेशा के लिए, यही रहने के लिए, आपको भी साथ मिल जाएगा और उन्हें भी…”रश्मि ने धड़कते हुए दिल से कहा।

“ओह, ऐसा… पर बेटा मुझे नहीं लगता कि वो बेटी के घर आकर रहना पसंद करेगी, मेरा मतलब तुम समझ रही हो न बेटा.”सासुमां पानी का घूंट लेती हुई बोली।

“मम्मीजी, ये सब तो पुरानी बातें हो गई हैं कि बेटी के घर का पानी नहीं पीना, वहाँ रुकना नही, अब तो सुविधा के हिसाब से माता पिता बेटी के घर में भी बड़े आराम से रहते हैं और फिर मम्मीजी , मम्मा अपना खर्च खुद ही उठाएंगी, यहाँ रहने से बस उनकी देखभाल हो जाएगी, अपने को उनकी फ़िक्र नहीं रहेगी, आपको भी एक सहेली मिल जाएगी, कहिए मम्मीजी आपकी क्या राय है? आप जो कहेंगी, वही फ़ैसला किया जाएगा” रश्मि ने ज़रा भावुक होते हुए कहा।

“बेटा, वैसे तो मुझे क्या परेशानी हो सकती है लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये इतना आसान होगा, ख़ैर तुम उन्हें बुलाओ तो सही, आगे जो ईश्वर की मर्ज़ी” सासुमां ने नाश्ता खत्म करते हुए कहा।

“जी ठीक है मम्मीजी, मैं आज ही मम्मा से बात करती हूँ” रश्मि ने आशान्वित होते हुए कहा।

घर के काम से फ्री होते ही रश्मि ने अपनी मम्मा को फ़ोन मिलाया।

“हेलो, मम्मा”

“हाँ बेटा, कहो कैसी हो”

“मैं ठीक हूँ मम्मा, आप कैसी हैं”

“मैं भी ठीक हूँ बेटा “

“तबीयत कैसी है”

“अब इस उम्र में जैसी रहती है बेटा, वैसी ही है, चलता रहता है ये सब तो, तुम मेरी फ़िक्र मत किया करो”

“मम्मा, कैसे न करुं फ़िक्र, पापा थे तब तक कोई फ़िक्र नही थी, पर अब…अब बात अलग है, हर समय आपकी चिंता लगी रहती है, इसलिए मैंने और राज ने एक उपाय सोचा है और आपको वो मानना ही पड़ेगा”

“अच्छा!क्या उपाय है मेरे बेटा”

“आप यहाँ आकर रहेंगी, हमारे साथ, हमारी मम्मीजी भी सहर्ष तैयार हैं, आप दोनों को एक दूसरे का साथ भी मिल जाएगा और हमारी फ़िक्र भी ख़त्म हो जाएगी”


“अरे बेटा, कैसी बातें कर रही हो, दो-चार दिन आबोहवा बदलने के लिए आ जाऊंगी, पर हमेशा के लिए… नहीं.. नहीं.. बेटा, ये संभव नहीं है”

“क्यों संभव नहीं है, मम्मा अब आप बेकार की ज़िद नहीं करो, बस पैकिंग शुरू कर दो, हम परसों आपको लेने आ रहें हैं, परसों छुट्टी है ऑफिस की, आप तैयारी कर लीजिए, कोई बहाना नही चलेगा, समझीं न”

“अरे बेटा…”

“कुछ नहीं, बस अब आप कुछ भी नहीं बोलेंगी और न ही कुछ सोचेंगी, बस तैयारी शुरू कर दो” कहकर रश्मि ने फ़ोन रख दिया।

खलबली तो मची थी,दोनों माँओं के मन मे, लेकिन बच्चों की ज़िद के सामने उनकी कुछ चल नहीं पाई और आखिरकार रश्मि की मम्मा ,उसके ससुराल आ गई।

“अच्छा किया बहनजी, जो आप यहाँ आ गईं , अकेले जी घबराता होगा ?” रश्मि की सासुमां ने बात छेड़ी।

“अब बहनजी, नियति को कौन बदल सकता है, वो तो ये रश्मि बहुत ज़िद कर रही थी तो मैंने सोचा दो-चार दिन हवापानी बदल आती हूँ, उसका भी मन रह जाएगा और हमारी भी मुलाकात हो जाएगी” रश्मि की मम्मा ने कहा।

“हाँ..सो तो है…”सासुमां एक गहरी साँस लेते हुए कहा।

“वाह, क्या बात है, दोनों सहेलियां क्या बातें कर रही हैं, भई हम भी है यहाँ पर…”रश्मि ने बैठक में आते ही कहा।

“हाँ-हाँ बेटा, तुम लोगों के कारण ही तो हम लोग हैं, हम दोनों यही बातें कर रहे थे” सासुमां ने मुस्कुराते हुए कहा।

“अरे नही मम्मीजी, आप लोगों की वज़ह से ही हमारा वज़ूद है, हम लोग तो बस यही चाहते हैं कि आप दोनों हमेशा स्वस्थ और प्रसन्नचित रहें, चलिए खाना लगा रही हूँ, आप दोनों आ जाईए टेबल पर” रश्मि ने चहकते हुए कहा।

रश्मि ने खाना लगा दिया , और बोली –

“कितना अच्छा लग रहा है न, अब घर मे चहलपहल रहेगी, सभी आँखों के सामने रहेंगे तो बेफ़िक्री रहेगी सो अलग, है न मम्मीजी” रश्मि ने सासुमां से फेवर लेना चाहा।

“हहहाँ बेटा, सो तो है” सासुमां ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

“चलो अब ये सब बातें तो होती रहेंगी, तुम भी अपना खाना लगा लो”रश्मि की मम्मा बोलीं।

“ये राज के साथ खाएगी बाद मे” रश्मि के कुछ कहने से पहले ही सासुमां बोल पड़ी।

“हाँ मम्मा.. बस अभी थोड़ी देर से खाते हैं हम दोनों भी, आप ये लीजिए, खसखस की खीर, खास आपके लिए ही बनाई है” रश्मि ने अपनी मम्मी को खीर देते हुए कहा।

“बेटा, बहनजी को भी दो” रश्मि की मम्मा ने कहा।

“नहीं-नहीं, बहनजी, आप ही खाईऐ, मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है, मेरे लिए कुछ और बनाया होगा रश्मि ने” सासुमां ने कनखियों से देखते हुए कहा।

“ओहsss,सॉरी मम्मीजी, आज मीठा यही बनाया है, मैं बिल्कुल भूल ही गई थी कि आपको खसखस अच्छा नहीं लगता”रश्मि ने माफ़ी मांगते हुए कहा।

“कोई बात नहीं, थोड़ा सा गुड़ दे दो “सासुमां ने थोड़ा बदले अंदाज़ में कहा।

“जी मम्मीजी” रश्मि ने कहा और गुड़ लेने किचन मे चली गई।

सासुमां के चेहरे के भाव कुछ बदल रहे थे हालांकि वे खुद को संयत रखें हुए थीं।

“सरप्राइज़…” अचानक रश्मि एक बाउल लेकर आई।

“मम्मीजी, आपकी फेवरिट सीताफल रबड़ी… फ्रीज मे ठंडी होने को रखी थी…ये लीजिए, ठंडी ठंडी रबड़ी” रश्मि ने कटोरी भरकर रबड़ी देते हुए कहा।

“वाह.. वो ही तो…मुझे पता था कि तुमने मेरे लिए कुछ बनाया ही होगा” सासुमां ने आँखें मटकाते हुए कहा।

रश्मि की मम्मा भी मुस्कुराने लगीं, माहौल अब हल्का हो गया।तीनो ही हँसने लगीं।

तीन चार दिन ऐसे ही हँसी खुशी में बीत गए, अब रश्मि की मम्मा ने अपने घर लौटने की इच्छा जताई, रश्मि उन्हें समझाने की कोशिश में लगी थी कि वे यहीं रुक जाएं सदा के लिए।


“मम्मा आपको प्रॉब्लम क्या है? वहाँ कौन है, क्या करेंगी वहाँ जाकर, यहीं रहिए, हमारे साथ” रश्मि भुनभुनाते हुए बोली।

“बेटा प्रॉब्लम कुछ नहीं है, पर यह प्रैक्टिकली ठीक नहीं है, थोड़े दिन तो सब अच्छा लगता है फिर रिश्तों में खटास पड़ने लगती है” रश्मि की मम्मा ने कहा।

“ऐसा कुछ नहीं है, आप कुछ ज़्यादा ही सोच लेतीं हैं” रश्मि बोली।

“बेटा तुम समझो इस बात को, बहनजी भी क्या सोच रहीं होंगी कि मैं कैसी माँ हूँ जो अपनी बेटी के ससुराल में रहने चली आई, नही- नही बेटा, ये संभव नहीं है, तुम बेकार की ज़िद मत करो, मैं कल चली ही जाऊंगी, तुम रोकना मत, तुम मेरी बिल्कुल चिंता मत करना, मैं अपना ध्यान रखूंगी और फिर तुमसे रोज़ विडिओ कॉल पर बात भी करूंगी ताकि तुम्हें तसल्ली रहे, ठीक है न, अब रिलेक्स हो जाओ, ओके” रश्मि की मम्मा ने उसके गाल थपथपाते हुए कहा।

रात को खाने की टेबल पर दोनों समधन खाना खा रहीं थीं, रश्मि खाना खिला रही थी लेकिन आज वो गुमसुम सी थी।

“मम्मी कल आपको रूटीन चेकअप के लिए चलना है, याद है न आपको”तभी राज ने टेबल पर बैठते हुए कहा।

“हाँ बेटा याद है “

“मम्मीजी आपका भी चेकअप करवा लें क्या, सारे टेस्ट हो जाएंगे”राज ने रश्मि की मम्मा से पूछा।

“नही बेटा, मैं तो कल निकल रही हूँ” रश्मि की मम्मा बोलीं।

“तो मम्मी कल और रुक जाओ, चेकअप करवाकर चले जाना” रश्मि ने रुंआसी आवाज़ मे कहा।

“अरे नही बेटा, बाद मे कभी देखेंगे, अभी तो जाने दे” रश्मि की मम्मा ने कहा।

“रश्मि ठीक कह रही है मम्मीजी, वहाँ अकेले आप कहाँ परेशान होंगी, अभी मम्मी के साथ आपके भी सभी टेस्ट हो जाएंगे” राज ने कहा।

“राज बेटा , अभी तो जाने ही दो, अभी ऐसी कोई तबीयत भी खराब नहीं है कि चेकअप ज़रूरी हो” रश्मि की मम्मा ने बात टालने के हिसाब से कहा।

सासुमां जो अब तक खाने में तल्लीन थीं, अचानक बोलीं-

“राज, रश्मि ..अब तुम दोनों चुप हो जाओ, बहनजी अब आप मेरी बात सुनिए, आप कहीं नहीं जाएगी, जब मेरे बेटे को मेरी इतनी चिंता रहती है तो निश्चित ही आपकी बिटिया को भी आपकी उतनी ही फ़िक्र रहती होगी, आपका बेटा होता तो क्या आप उसके साथ नहीं रहती? रश्मि और राज आपके दो-दो बेटे हैं अब, आप यहीं रहेंगी, हमारे बच्चे बेफिक्र भी रहेंगे और खुश भी।राज, कल तेरी दोनों माँ चेकअप के लिए चल रहीं हैं, बेटा रश्मि जल्दी से कुछ मीठा तो खिला दे” सासुमां ने रश्मि को प्यार से देखते हुए कहा।

“थैंक्यू मम्मीजी, बस अभी लाई गुलाब जामुन”

“सुन कल मीठे मे खसखस की खीर ही बनाना, हम दोनों बहनें चेकअप के बाद खाएंगे, ये डायबिटीज, ब्लडप्रेशर तो अब लगा ही रहेगा, बस रिश्तों का नमक और मिठास बरकरार रहे, क्यों बहनजी” सासुमां हँसते हुए बोली।

रश्मि की मम्मा की आँखों मे खुशी के आँसू छलछला उठे।ये एक मीठे रिश्ते का आग़ाज़ था ।

रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है।

*नम्रता सरन “सोना”*

 भोपाल, 

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