मायके से पराई होकर भी ससुराल की कहांं हो पाती हैं बेटियां?? – सविता गोयल : Moral Stories in Hindi

“आज कितनी ठंडक है ना काकी ।,,

” हां बहुरानी, ठंड तो बहुत हो रही है आज .. अचानक से मौसम बदल गया । तूं रजाई अच्छे से ओढ़ ले और लल्ला को भी छिपा ले…. जापे के कच्चे शरीर में एक बार ठंडी हवा लग गई तो जिंदगी भर परेशान करेगी…. ,,

” हां काकी, लेकिन मुन्ने को पहनाने के लिए कोई मोटा कपड़ा तो यहां है ही नहीं। आज ही मां जी से कहती हूं कोई गर्म स्वेटर मंगवा दे लल्ला के लिए। ,, कजरी ने अपने दो दिन के बच्चे को कस कर अपनी छाती से चिपकाते हुए कहा।

जब कजरी की सास कमरे में आई तो कजरी बोल पड़ी,
” माँ जी, आज ठंड बहुत हो रही है… लल्ला को कोई गर्म कपड़ा पहनाना पड़ेगा । ,,

” ठंड तो है.. लेकिन सबसे पहले नया कपड़ा तो तेरे पीहर से आएगा तभी इसे पहनाईयो बहुरिया… अभी गर्म शाल में ही लपेट ले….. ।,,

” लेकिन मां जी, वो तो अभी पांच सात दिन बाद ही आएंगे ना.. तब तक?? ,, कजरी असमंजस से बोली।

” बहू, अब ये तो रीत है । बच्चे को सबसे पहले अपने घर का नया कपड़ा नहीं पहनाया जाता। …. इसकी कोई बुआ होती तो वो कोई स्वेटर ले आती लेकिन भगवान ने मुझे कोई बेटी भी नहीं दी ….. और ये ठहरा इस घर में पहला बच्चा तो कोई पुराना स्वेटर भी नहीं है। ,,

अपनी सास की बात सुनकर कजरी चुप रह गई… अपने दो दिन के बेटे को को शाॅल में लपेट कर कलेजे से चिपका लिया… । मन हीं मन सोच रही थी इस घर में पैदा हुए बच्चे को इस घर से पहली बार पहनने के लिए कपड़े भी नहीं दे सकती। ये कैसी रीत बनाई है समाज ने …. ।


अपने बिस्तर पर लेटी हुई कजरी को शादी के बाद का एक एक दिन याद आ रहा था

इस कहानी को भी पढ़ें: 

बंद मुट्ठी के रिश्ते – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi



कैसे हर त्यौहार पर मायके से आए शगुन और कपड़ों का इंतजार करना पड़ता है । चाहे पहला करवा चौथ का व्रत हो या होली, दीवाली , मायके से आए कपड़े, गहने ही पहनने होते हैं और बायना भी मायके से आई चीजों का ही निकलता है।

जब कजरी के ससुराल का पुराना घर तोड़ कर नया घर बनवाया गया तो उसके मुहर्त पर भी सासु माँ बोलीं, ” मुहर्त पर तो तेरे मायके से हीं तेरे और मोहित के कपड़े आएंगे.. वही कपड़े पहनकर तुम दोनों हवन पर बैठोगे…।,,


ये छोटे – बड़े सभी रीति रिवाज मायके से हीं तो जुड़े होते हैं
और कोई कमी रह जाए तो उलाहने बेटियाें को सुनने पड़ते हैं।

कहते तो सभी हैं कि ससुराल ही अब तेरा अपना घर है । सारे फर्ज सारी जिम्मेदारियां ससुराल के नाम और हक जता कर कुछ लेना हो तो मायका हीं याद आता है….। मायके से पराई होकर भी ससुराल की कहां हो पाती हैं बेटियां, हर छोटी-बड़ी रीति – रिवाज के लिए मायके पर ही तो निर्भर रहती हैं बेटियां।

कजरी की सास भी इन्हीं नियमों को तो निभा रही थी क्योंकि उसका जीवन भी तो इन रीति- रिवाजों की डगर पर चलते हुए गुजर रहा था..।

वो समय जैसे- तैसे निकला। जब कजरी के मायके से उसका भाई छूछक लेकर आया तभी कजरी ने अपने बच्चे को नया स्वेटर पहनाया।

कुछ दिनों बाद कजरी की सास की तबियत अचानक से खराब हो गई … रात के समय सीने में अचानक से दर्द उठ गया.. अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में ही उनका शरीर ठंडा पड़ गया ।

उनके निर्जीव शरीर को लेकर जब ससुर जी और कजरी के पति वापस आए तो घर में कोहराम मच गया… । बहुत मुश्किल से वो रात गुजरी … सुबह के भी बारह बज चुके थे जो भी नाते – रिश्तेदार आस- पास थे वो सब पहूंच चुके थे। लेकिन उनका पार्थव शरीर अभी तक घर में हीं था… सभी लोग पूछ रहे थे दाह – संस्कार का समय कब है…. कितने समय तक ये पार्थव शरीर घर में पड़ा रहेगा.. ??

कजरी की बुआ सास बोलीं, ” जब तक भाभी के मायके से कोई कफ़न लेकर नहीं आ जाता तब तक लाश को लेकर नहीं जा सकते। अब भाभी के मायके से उनके भाई को आने में चार- पांच घंटे और लगेंगे तभी दाह संस्कार की रस्म हो पाएगी । ,,

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 बेड टी – नेहा शर्मा ‘नेह’

कजरी स्तब्ध थी.. जिस ससुराल में सास ने अपना पूरा जीवन गुजार दिया क्या उस ससुराल से आज उन्हें अंतिम समय के लिए एक कफ़न भी नसीब नहीं हो सकता !!

तभी कहीं से खबर आई की सास के भाई जिस ट्रेन से आ रहे थे वो तीन घंटे और लेट हो गई है….।

सभी लोग यही जिक्र कर रहे थे कि अब क्या करें.. कैसे करें !!यदि दिन ढल गया तो मुखाग्नि नहीं दे पाएंगे….।

कजरी के सब्र का बांध टूट रहा था। वो फफकते हुए बोल पड़ी, ” बस बाऊ जी बहुत हो गया ..। जिस सासु माँ ने अपना सारा जीवन इस घर परिवार को समर्पित कर दिया क्या उन्हें एक कफ़न भी सम्मान से नसीब नहीं हो सकता … क्या इस घर पर उनका इतना भी हक नहीं है … धिक्कार है ऐसे रीति- रिवाजों पर जो औरतों की आत्मा को भी छलनी कर देते हैं … ,,

कजरी की बुआ सास ने उसे चुप कराते हुए कहा,
” बहुरिया , अब यही रिवाज है तो हम क्या करें?? भाभी के मायके से कोई कफ़न लेकर नहीं पहुंचा तो लोग क्या कहेंगे ?? ,,

” बुआ जी, बाऊ जी , लोग तो तब भी कुछ कहेंगे ही जब मां जी का शरीर यहां इस तरह मुखाग्नि का इंतजार करता रहेगा। यदि आपके हाथ इतने हीं बंधे हुए हैं तो सासु माँ के लिए कफ़न मेरे पिता जी ला देंगे । मायका इनका हो या मेरा क्या फर्क पड़ता है आखिर हम दोनों ही तो इस घर के लिए पराई हीं हैं ना… ।,,

कजरी की इस बात पर कजरी के पति ने भी कहा ” हां बाऊ जी, कजरी सही कह रही है … आखिर मां की आत्मा को इस तरह तरसाना सही नहीं है। ,,

कजरी के पिता ने उसी वक्त बाजार जाकर कफ़न ले आए.. …।

वो कफन पहनकर ही इस घर से अपनी अंतिम यात्रा पर कजरी की सास विदा हुई। कजरी की सास का दाह- संस्कार तो हो गया लेकिन वहाँ खड़ी सभी औरतो के मन में बस यही सवाल उठ रहा था,
” हम नारियों का जीवन भी अजीब है। सारा जीवन ससुराल की सेवा में बिताकर भी वो कहां अपने ससुराल की हो पाती है?? कहते हैं शादी के बाद बेटी पराई हो गई लेकिन पराई होकर भी मायके से कहांं पराई हो पाती हैं बेटियां!!!

लेखिका : सविता गोयल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!