छोटी बहू की डोली आंगन में आ चुकी थी।नलिनी जी बाकी औरतों के साथ घर के द्वार पर बहू के स्वागत के लिए आ गई थी।प्यार से बहू को घर के अंदर लेकर आई और बाकी सारी रस्में निभाकर वह अब मन ही मन बहुत खुशी और संतोष अनुभव कर रही थी।उन्हें लग रहा था कि उनकी बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी पूरी हो गई थी।
नलिनी जी और मनोहर जी के दो बेटे थे।मनोहर जी का अच्छा खासा व्यापार था और दोनों बेटे आदित्य और अखिल व्यापार में उनके साथ थे।नलिनी जी वैसे तो गृहिणी थी पर सामाजिक गतिविधियों में बढ़ चढ़कर भाग लेती थी।कई सारी संस्थाओं से जुड़े होने की वजह से उनकी काफी पहचान थी और वैसे भी वह एक बड़े व्यापारी घराने से थी।उनके परिवार को शहर के नामी गिरामी परिवारों में माना जाता था।
नलिनी जी के बड़े बेटे आदित्य की शादी शहर के एक दूसरे व्यापारी खानदान की बेटी शिल्पा से 4 वर्ष पहले हुई थी।शिल्पा और आदित्य का एक दो वर्षीय बेटा था जो घर में सबका लाड़ला था। शिल्पा भी अब घर के व्यापार में साथ देने लगी थी।उसने बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी और उसके साथ से आदित्य को भी काफी राहत रहती थी।साधारण शब्दों में उनका छोटा और खुशहाल परिवार था।
नलिनी जी की छोटी बहू मंजरी उन्हीं की ही पसंद थी।मंजरी एक मध्यवर्गीय परिवार की बेटी थी।उसके पिता एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे और उसकी मां स्कूल में अध्यापिका थी।मंजरी का छोटा भाई इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में था और मंजरी ने खुद एम.ए बी.एड किया था और अब वह भी एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी। मंजरी अध्यापन के साथ-साथ एक एनजीओ में भी जाकर वहां के बच्चों को पढ़ाती थी।वहीं पर उसकी मुलाकात नलिनी जी से हुई थी।
नलिनी जी को मंजरी बहुत अच्छी लगी थी इसलिए उन्होंने अपने घर पर सब की सहमति से मंजरी और अखिल की शादी की बात मंजरी के घर वालों से की थी।इतने बड़े घर से रिश्ता आने पर मंजरी के पिताजी खुश तो थे पर साथ ही चिंतित भी की इतने बड़े लोगों से वह लेनदेन कैसे कर पाएंगे। उनकी चिंता भांप कर मनोहर जी ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा,” हमारे खानदान में लेने देने की जगह रिश्तों में प्यार और अपनापन हो इसी बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है”।
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खैर,शादी तो अच्छे से निपट गई थी।मंजरी भी अब धीरे-धीरे घर में रमने लगी थी।उसके अध्यापन जारी रखने पर किसी को कोई एतराज़ नहीं था तो उसने अपनी नौकरी जारी रखी थी।ज़िंदगी सुचारू रूप से चल रही थी।छोटे बड़े अवसरों पर सभी परिवारों का मिलन होता रहता था।अब सारे तीज त्यौहार भी आ रहे थे।नलिनी जी को मंजरी पिछले कुछ समय से कभी-कभी परेशान सी लगती.. कुछ उलझी उलझी सी।
उन्होंने दो-तीन बार प्यार से उसे पूछने की कोशिश भी की परंतु वह टाल गई थी पर कुछ तो था जो उसके चेहरे पर परेशानी बयां कर रहा था और नलिनी जी इस बात की जड़ तक जाना चाहती थी।उन्होंने अलग से शिल्पा और अखिल से भी इस बारे में बात की पर उन लोगों को भी सब कुछ सामान्य ही लग रहा था पर नलिनी जी का अनुभव उन्हें कुछ और ही कह रहा था।
उन्होंने मंजरी पर ध्यान देना शुरू किया क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उनकी छोटी बहू को किसी प्रकार की परेशानी रहे और बहुत जल्दी उन्हें इस बात का पता चल गया जब उन्होंने देखा कि जब भी उनके यहां पर शिल्पा के मायके वाले आते हैं तो मंजरी के चेहरे के हाव-भाव बदल जाते थे।
वह प्रत्यक्ष रूप से तो सबके साथ अच्छे से बात करती पर उनके जाते ही अगले कुछ दिनों तक परेशान सी रहती।नलिनी जी को इस परेशानी का कोई कारण समझ नहीं आ रहा था क्योंकि उनकी तरफ से दोनों समाधियों की आव भगत में कभी कोई कमी नहीं रही।
नलिनी जी ने इस परेशानी को जड़ से खत्म करने के लिए मंजरी को एक दिन अपने कमरे में बुलवाया और उससे प्यार से फिर से पूछा। उनका प्यार देखकर मंजरी का डर जाता रहा और वह बोली,” कुछ नहीं मम्मी जी, बस..जब भी शिल्पा भाभी के मायके वाले आते हैं तो मैं उनके द्वारा लाए तोहफों से अपने मायके से आए तोहफ़ों की तुलना करने लगती हूं
और पाती हूं कि उनके तोहफ़ों के आगे मेरे मायके के सामान की क्या कीमत है और बस..मैं इस उधेड़बुन में खुद को घिरा हुआ पाती हूं।मुझे लगता है जैसे बड़ी भाभी के सामने मैं कुछ भी नहीं पर..मैं अपने मायके वालों की माली हालत जानती हूं और उनसे महंगे तोहफ़ों के लिए कह भी नहीं सकती और बस यही सब में उलझी रहती हूं कि आप लोग क्या सोचेंगे”.
“मायके की तुलना”? नलिनी जी जो उसकी बात ध्यान से सुन रही थी बोली,” क्या तुमने कभी हमारी तरफ से तुम दोनों में कोई तुलना महसूस की है..और हमने तुम्हारे पापा से पहले ही कह दिया था कि हमारे खानदान में लेनदेन की जगह रिश्तो में प्यार और अपनापन हो इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है और पगली लड़की, अगर तुमने ध्यान दिया होगा तो देखा होगा
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कि शिल्पा और तुम्हारे मायके वालों से हमने अपने लिए कभी कोई तोहफा नहीं लिया। वह जो भी अपनी बेटियों को खुशी से देना चाहें दे जाते हैं और हम उनके इस प्यार पर तो रोक नहीं लगा सकते ना..पर.. तुम बताओ कि कभी तुमने हम सबके या शिल्पा के ही व्यवहार में कभी कोई तुलना जैसी बात महसूस की है या कोई ऐसी बात जो तुम्हें कभी चुभ गई हो वह की है”?
यह सब सुनते ही मंजरी का मन बहुत हल्का हो गया और उसे लगा जैसे उसकी आंखों के आगे जो गलतफहमी के जो बादल थे वे छंट गए थे..और यह सब सुनकर वह अपनी सास के गले लग गई।
दोस्तो, यह बात सच है कि आज भी कुछ परिवारों में बहुओं के बीच उनके मायके से आए सामान को लेकर तुलना की जाती है बिना कुछ सोचे कि उनके मन पर क्या बीत रही होगी..पर.. अगर समझदारी से पूरे परिवार के बीच सामंजस्य बिठाया जाए तो एक सुखी परिवार बनने में देर नहीं लगती।
#स्वरचित
#अप्रकाशित
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।
#हमारे खानदान में लेने देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है