मायके का सफर – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

खूबसूरत फूलों से सजी डोली द्वार पर खड़ी। नये मिलन बिछोह की अनमोल अद्भुत घड़ी दिल में बसाये, अपने नये आशियाने की तरफ निकल पड़ी प्रिया.. खट्टी-मीठी अनुभवी यादें, बचपन की सहेलियां.. ढेरों बातों के सिलसिले, बारिश में भीगना सूने आँगन की छटपटाहट सभी को पीछे छोड़कर आई …

“ छुट गया बचपन बेफिक्र सा अहसास विदा होकर ससुराल की दहलीज पर पहुँच गई प्रिया “ ‌।

प्रिया बेहद गरीब परिवार में पली उसका एक बड़ा भाई प्रियांश, माँ शिक्षिका थी । पिता का साया तो बचपन में ही सर से उठ चुका था । मा़ँ ने ही दोनों की परवरिश की, भाई की शादी हो गई उसने अपनी पसंद से आॅफिस में साथ काम करती रेखा से विवाह कर लिया। और आज प्रिया का विवाह भी उसकी माँ की सहेली के इकलौते बेटे मनोहर (मनु) से हो गया। खुद ही माँ की सहेली ने प्रिया को अपनी बहु बनाने की मांग की थी। मनु भी दिल का नेक अच्छी कम्पनी में ब्रांच मैनेजर के पद पर कार्यरत। अच्छे पैसे वाले खाते पीते, प्रतिष्ठित लोग, माँ ने रिश्ता मंजूर कर लिया।

शुरू शुरू में यहां रईसी ठाट वाट प्रिया को एडजस्ट करने में परेशानी तो हुई पर उसने जल्दी ही माहौल अनुसार अपने को ढाल लिया। 

“ नई शुरुआत कितनी कठिन होती है। ये स्त्रियों के अतिरिक्त शायद ही कोई समझ पायेगा…जैसे ही वो नई जिंदगी में ढलने लगतीं उसके जीवन में अहम् बदलाव भी आने लगते “ ।

एक दिन सुबह तबीयत ठीक न होने के कारण प्रिया देर से सोकर उठती है। वो देखती है सासूमां ने सभी जरूरी काम खुद ही निपटा दिए हैं। जैसे ही सासूमां  उसको देखती है बड़े प्यार से बोलती हैं…

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 “बेटा प्रिया आज तबीयत ठीक नहीं है क्या” ..?

  प्रिया आश्चर्य से.. ‘माँ ‘आपको कैसे पता चला”..?

बेटा रोज सुबह जल्दी उठकर,नहा धोकर पूजा पाठ के बाद तुम ही हमको चाय देकर उठाती हो…आज देर से उठीं तो कहा …बेटा मैं तो तुमसे कहती हूँ आराम से उठा करो ,मनु भी देर से आॅफिस जाता है और हम दोनों तुम्हारे ससुर और मैं तो घर पर ही रहते ….बेटा जल्दी क्या है…?

प्रिया सासूमां के व्यवहार रहमदिली से काफी प्रभावित होती है।

प्रिया को तो लगता था शादी के बाद जिम्मेदारियों की सौगात सारी चंचलता गम्भीरता में तब्दील हो जायेगी । 

लेकिन उनके व्यवहार से प्रभावित हुए बिना नहीं रहती । वो उसको आराम करने का कह, बोलती है… बिल्कुल अपनी माँ पर गई है… उसे भी सुबह सुबह उठने की आदत थी …पहले स्कूल लाइफ़ में वो और मैं सुबह खूब घूमा करते थे…सासूमां पुरानी बातें याद करती है।

प्रिया को एक पल भी परायापन का अहसास नहीं होता ससुराल में, सासूमां और मनु ने उसे यहां कभी किसी चीज की कमी का बोध होने ही नहीं दिया, तमाम सुख सुविधाओं का ढेर लगा दिया था । खाने पीने की भी कोई टेंशन नहीं जब मन होता बहार से मंगवा लिया जाता। 

प्रिया को अपनी किस्मत पर ही यकीन नहीं होता और सासूमां उसे यही अहसास दिलाती बेटा ये तुम्हारा ही घर है जैसे मर्जी हो चलाओ हमने तो तुम्हारे हवाले कर दिया है।

अचानक एक दिन भाई का फोन आता है।माँ बीमार है 

 वो माँ को देखने जाती है,उसकी शादी के बाद वो बीमार भी खूब रहने लगीं थी ।घर पहुंच देखती है माँ का कमरा दवाई टानिक पंप मीटर से भरा सांस की तकलीफ़ से गुजर रही थी । जरा जरा देर में थक जाती थी वो …

वैसे भी बढती बीमारी से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और शरीर की ताकत भी । 

अब तो कभी कुछ कभी कुछ अमूमन ही लगा रहता।

गरीबी भी माँ को इतना तोड़ नहीं पाई जितना इस बीमारी ने तोड़ कर रग दिया। ये रोग तो होते ही ऐसे हैं जो अच्छे अच्छों को डूबा कर तोड़ कर रख देते हैं। प्रिया बड़बड़ाती है…

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आखिर मौत ने माँ की जिंदगी को मात दे ही दी….माँ क्या गई प्रिया को तो अपना मायका खत्म ही लगने लगा । भाभी का बेरूखा व्यवहार धीरे-धीरे प्रिया ने आना जाना कम कर दिया।तीज त्यौहार में पहले ही भाभी का फोन आ जाता वो बहार जा रहें हैं।

भाभी का टालना वो अच्छे से समझती उसका मन बहुत दुखी होता ।

मनु भी उसके भाई भाभी के बेरूखे व्यवहार से अप्रसन्न थे वो  न ही खुद जाते वो प्रिया को भी वहां जाने को मना कर देते कहते    “ जहां इज्जत नहीं वहां बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए,जब वो बुलाएं  तभी जाना “ । 

माँ को गये पांच वर्ष हो गये प्रिया के दो बच्चे दोनों बड़े होने लगे। हालांकि ससुराल में कोई नहीं कमी,सभी ऐशों आराम मनु भी उसे दिलोजान से चाहते लेकिन मन में सदा एक ही कसक एक ही चाह रहती कोई उसे उसके मायके बुला लेता,काश एक बार भाई भाभी आने को कह देते । 

“ कैसे भूला दे वो जहां उसका बचपन बीता.. ज़िन्दगी के अठाहरह वर्ष बिताये…

“ ससुराल में लाखों सुख सुविधाएं हो मगर एक महिला के लिए उसका मायका वहां बिताए पलों की यादें ऐसी यादें जिनको भुलाया भी नहीं जा सकता और दुबारा जिया भी नहीं जा सकता है “ ।

 “क्या कभी पेड़ को उसकी जड़ों से काटकर उसे जिंदा रखा जा सकता है “।

हर के भाई भाभी ऐसे नहीं होते वो सोचती है , पड़ोस की सहेली तो हर माह अपने मायके हो आती है । उसके मायके के हर तीज त्यौहार में उसे बुलाया जाता…वो ही बदनसीब है उसे ही मायके का सुख नसीब नही है। माँ ज़िन्दा होती तो एक बहाना तो था मिलने का वो माँ को याद कर पुकारती… माँ तुम क्यूं चली गई….प्रिया की आँखें आँसुओं से भीग जाती है।

सासूमां प्रिया को काफी दिनों से परेशान खोया खोया देख रहीं थी ।

पूछती हैं प्रिया क्या बात है कोई परेशानी है क्या ..?

 बेटा अब मैं ही तुम्हारी माँ हूँ । बताओ तो कुछ सहायता करूं।

सासूमां का प्यार ममता देख प्रिया की आँखे़ छलक जाती है।वो अपने आँसुओं को रोक नहीं पाती ।

सासूमां सर पर हाथ फेरती है तो वो फूट-फूट कर रोने लगती है। रूआंसी सी अपनी व्यथा का बखान कर देती है।

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“ ‘माँ उसका मायका खत्म हो गया। खत्म हो गया उसका मायका” ।

“माँ ऽऽ वह तय करना चाहती है अपने घर से मायके तक का सफर “!!

सासूमां उसके भाई भाभी के व्यवहार से अच्छे से परीचित,उसको समझाती है बेटा- ये घर ही अब तुम्हारा मायका, ये घर ही तुम्हारा ससुराल है।

तुमको कुछ समय इन्तजार करना होगा…. जब तक की खुद तुम्हारे भाई भाभी की बेटी की शादी नहीं हो जाती । उसके बाद उनको खुद इस बात का अहसास हो जायेगा।

और हाँ खबरदार जो आगे से कहा मेरा मायका खत्म हो गया।

वो प्रिया को गले लगा लेती है।

प्रिया सासूमां से पहले ही काफी प्रभावित उनकी बात मान अपने घर गृहस्थी में व्यस्त हो जाती है।

कुछ दिनों बाद उसके भाई की बेटी का विवाह तय हो जाता है। भाभी फोन में ही आमन्त्रित कर देती हैं सो प्रिया और मनु शगुन दे आते हैं। भाभी उन्हें एक बार भी वहां रूकने को भी नहीं कहतीं… प्रिया  कुछ पल उस आँगन को निहारती जहां उसका बचपन बीता, डबडबाई आँखों को पोंछती माँ की यादें आँचल में समेट घर वापस आ जाती है !!

समय बीतता गया भाई की बेटी जब ससुराल से मायके आती जाती भाई भाभी को जो बिछुडने मिलने अपनेपन का अहसास होता..और  बेटी जब वापस ससुराल जाने लगती तो बार बार यही कहती माँ पापा जल्दी ही बुला लेना मुझे, अपने घर की बहुत याद आती है । मेरे बचपन के यादगार पल, खेल खिलौने सभी यही मौजूद हैं.. देखती हूँ तो सुखद अनुभूति होती है।

भाई को तब बहन  प्रिया की याद भी आने लगी… वो अपनी पत्नी से कहते प्रिया भी तो इस घर की बेटी ही है जैसे अपनी बेटी को आते जाते दर्द का बिछोह का अहसास होता है यहां आने का मन करता है….वैसे उसको भी तो होता होगा। कहीं हमने उसके साथ अन्याय तो नहीं कर दिया।

एक दिन अचानक सुबह सुबह प्रिया के घर दरवाजे पर दस्तक होती है। प्रिया दरवाजा खोलती है तो सामने भाई भाभी को हाथ में फलों की टोकरी, मिठाई लिए खड़ा देखती है। उसकी खुशी की सीमा नहीं रहती भाई आगे बढ़कर उसे गले लगा लेते हैं। कहते हैं प्रिया… हम तुमको लेने आयें है । हम तो भूल ही गये थे वो तुम्हारा भी घर है । तुम्हारी यादों का घर, हमने तुमको बहुत दुख पहुँचाया हमको माफ करना बहन …

प्रिया चलों तुम्हारा मायका तुम्हारा इन्तज़ार कर रहा है।

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प्रिया सासूमां की तरफ देखती है। उनके चेहरे पर विजय मुस्कान नजर आ रही थी ।

वो कहती हैं.. हाँ,, “प्रिया जाओ तुम्हारा मायका इन्तजार कर रहा है “ ।

तुम यहां की बच्चों की बिल्कुल चिंता मत करना …

कुछ दिन आराम से रहना। मायके जाकर अपने खट्टे-मीठे अनुभवों को महसूस कर, खुशियों के संसार, पुरानी यादों में जीकर ही आना ।

 प्रिया भाई के साथ मायके चली जाती है। उसका वो  मायका जो खुशियों को लौटाने का द्वार, शब्दों की स्वतंत्रता, अधिकारों का घर । उसकी दिले तमन्ना आज पूरी हो गई… तय करने की, घर से मायके का सफर ..

   लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

  1. 4. 25

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