Moral stories in hindi : रिचा भोपाल में अपने परिवार के साथ खूब खुशी के साथ रहती है। उसके परिवार में उसके पति रितेश और उसकी दो प्यारी बेटियाँ वेदिका और सानवी हैं।
बड़ी बेटी बेटी ने इस बार पी.सी.एम.विषय के साथ इंटर की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण की है। उसने बीटेक में प्रवेश के लिए परीक्षा भी दी है। कुछ जगह के रिजल्ट आ गए हैं, कुछ के आने वाले हैं।
कई कॉलेजों में वेदिका का नंबर आता है लेकिन उसकी मम्मी दिल्ली में उसके एडमिशन पर ज्यादा जोर देती हैं।
उनका तर्क है कि दिल्ली में वेदिका की ननिहाल है, और वेदिका ननिहाल में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगी।
उसके पति रितेश ने उसे समझाया की रिश्तेदारी में ज्यादा दिन रहना उचित नहीं होता है। कभी-कभी जाओ तो मान सम्मान रहता है। लगातार रहने से संबंध खराब हो जाते हैं।
पर रिचा किसी की भी नहीं सुनती, उसे अपने मायके वालों पर बहुत विश्वास है। उसका सोचना है कि मायके में उसकी बेटी अधिक सुरक्षित रहेगी। और नाना मामा का घर होते हुए वेदिका किसी हॉस्टल में रहे तो यह तो उन की बेइज्जती होगी।
रिचा ने बंदे भारत एक्सप्रेस से दिल्ली की अपनी और वेदिका की टिकट बुक करा ली। वेदिका की काउंसलिंग होनी थी।
रिचा ने अपने मायके में पूछना भी जरूरी नहीं समझा।
रिचा और वेदिका सामान लेकर दिल्ली पहुंच जाते हैं। अचानक से रिचा और वेदिका को देखकर रिचा की भाभी तन्वी अवाक् रह जाती हैं।
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जब रिचा वेदिका के इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश की बात बताती है, तो उसके माता-पिता बहुत खुश होते हैं।
लेकिन रिचा की भाभी तन्वी का चेहरा बदल जाता है। वह सबके सामने तो कुछ नहीं कह पाती। रात को जब रिचा का भाई राहुल घर आता है तो उसकी पत्नी तन्वी कहती है,”इंजीनियरिंग की पढ़ाई 4 साल की होती है। और 4 साल तक किसी को घर पर रखना बहुत कठिन काम है। अपनी बहन से कहो कि बेदिका का प्रवेश किसी अच्छे हॉस्टल में करा दें। समय-समय पर हम मिलने चले जाया करेंगे।”
राहुल तन्वी को समझा कर कहता है,”कैसी बातें कर रही हो। बेदिका कोई मेहमान थोड़ी है। वह तो हमारी बेटी जैसी है। जितना मन चाहे रहे।”
तन्वी नहीं चाहती कि बेदिका की वजह से उसकी आजादी में कुछ खलल पड़े।
लेकिन घर वालों के दबाव के कारण वह कुछ नहीं कह पाती। ससुर जी का घर पर दबदबा था क्योंकि उनकी मोटी पेंशन आती थी। और जिसे वह पूरा घर पर खर्च करते थे।
रिचा बेदिका को छोड़कर भोपाल लौट गई। उसे पूरा विश्वास था कि उसकी बेटी सुरक्षित हाथों में है। लौटते वक्त उसकी आंखें कुछ नम थी क्योंकि बेटी को पहली बार अपने से दूर करा था।
समय बढ़ता गया फर्स्ट सेमेस्टर की परीक्षा देने के बाद वेदिका घर आई। वेदिका कुछ उखड़ी सी थी। शरीर भी कमजोर सा हो गया था। चेहरे पर भी रौनक नहीं थी।
उसके पापा ने बड़े प्यार से उससे पूछा भी था,”बेटा क्या बात है? इतनी कमजोर कैसे हो गई? क्या मन नहीं लगा, नानी के घर?”
वेदिका ने कुछ जवाब नहीं दिया। फर्स्ट सेमेस्टर का रिजल्ट आया तो उसकी मम्मी आश्चर्यचकित हो जाती हैं वेदिका के इतने कम नंबर। उनकी बेटी तो पढ़ने में बहुत होशियार है। इसके इतने कम नंबर कैसे आ सकते हैं?
उन्होंने बेदिका को बाहों में भर कर बड़े प्यार से पूछा, वेदा तुम्हारे इतने कम नंबर कैसे आए? कोई परेशानी है क्या? कोई बात है तो मुझे बताओ?”
वेदिका की रुलाई फूट जाती है। वह अपनी मम्मी को बताती है,”नानी के घर पर मुझे पढ़ने को टाइम ही नहीं मिलता। मामी मुझे हर वक्त कुछ ना कुछ काम बताती रहती हैं। कभी-कभी तो मैं कॉलेज भी नहीं जा पाती।
मामी क्लब की मीटिंग व किटी पार्टी में अधिक व्यस्त रहती हैं। मेरे आने के बाद अपने बच्चों की जिम्मेदारी उन्होंने मुझ पर ही छोड़ दी है। उनकी पढ़ाई लिखाई मेरे ही जिम्मे हैं।”
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रिचा चौंक जाती है यह सब बात सुनकर।”क्यों नानी नहीं थी वहाँ पर? उन्होंने कुछ नहीं कहा?”
“नानी तो थी। वह मेरा पक्ष भी लेती थी लेकिन नानी, मामी के सामने चुप ही हो जाती थी। नानी तो बहुत रोती हुई थी। नानी कहती,”हमारा तो बुढ़ापा है। हमें तो अब बस समय ही काटना है।”
मम्मी अब नानी की नहीं चलती। रिचा को यह सुनकर बहुत आश्चर्य होता है। उसकी आंखों से अश्रुजल बहने लगता है। वह सोचती है क्या विवाह बाद एक बेटी का मायके पर कुछ भी अधिकार नहीं रहता?
जिस दहलीज पर वह पली-बढ़ी। उसकी संतान के लिए इतना सौतेलापन। क्या सारे अधिकार बेटों के ही होते हैं विवाह कर कर बेटियां पराई हो जाती है।
रिचा अश्रु पूछती है। बंदे भारत एक्सप्रेस पकड़ कर दिल्ली को रवाना हो जाती है। अपनी बेटी वेदिका का प्रवेश एक अच्छे गर्ल्स हॉस्टल में करा देती है।
अब उसकी भाभी तन्वी कहती है,”दीदी क्या बात हो गई? यहांँ कोई परेशानी है क्या? यही रह लेगी ना वेदिका।”
रिचा कुछ जवाब नहीं देती और चुपचाप वेदिका का समान लेकर निकल जाती है।
तन्वी उसकी भाभी है। अगर वह उससे कुछ कहेगी तो उसके मायके में क्लेश उत्पन्न होगा।
और बेटियांँ तो हर वक्त मायके की भलाई ही चाहती हैं। वह नहीं चाहती अपने मायके से बिगाड़ना। और उसके माता-पिता का तो बुढ़ापा था, सही से कट जाए यही बहुत है।
अधिकार और कर्तव्य की लड़ाई में क्या बेटों के हिस्से ही सारे अधिकार आते हैं? क्या बेटे कर्तव्य निष्ठा में भी खरे उतरते हैं।
सर्वाधिकार सुरक्षित
स्वरचित मौलिक
प्राची लेखिका
खुर्जा उत्तर प्रदेश