मायके के लिए फ़र्ज़ कैसे भूल जाऊँ – रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

“ अरे बेटा तू अचानक यहाँ आ गई.. सब ख़ैरियत तो है?” दरवाज़े की घंटी बजते दरवाज़े पर राशि को यूँ अचानक आया देख सुमिता जी बोली

“हाँ माँ तुम तो जानती हो मैं बहुत जल्दी घबरा जाती हूँ दो तीन दिन से बड़े बुरे सपने देख रही थी तो सोचा आकर तुम सब से मिल लूँ ।” राशि ने कहा 

“ माँ घर में इतनी शांति क्यों है… और भाभी,कुहू , कुश कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहे?” राशि घर में घुसकर सब कमरों की जायज़ा ले बोली 

“ वोऽऽ अपने मायके गई है…कल आ जाएगी ।” सुमिता जी ने कहा 

“ऐसे अचानक बच्चों के स्कूल चल रहे ऐसे में..?” राशि आश्चर्य से पूछी 

“ हाँ उसकी माँ ने बुलाया था तो चली गई ।” सुमिता जी नज़रें चुराते हुए बोली 

राशि महसूस कर रही थी माँ बहुत परेशान है और वो भी तो किसी कारण से ही यहाँ आई थी पर माँ से कैसे झूठ बोल गई 

रात को रितेश घर आया और राशि को देख चकरा गया…

“ अरे राशि तुम … बता देती आ रही हो तो निशिता और बच्चों को रोक लेता।” 

राशि महसूस कर रही थी भाई के आवाज़ में वो पहले सी खनक नहीं है जो पहले उसके आने पर होती थी

सुमिता जी के साथ मिलकर राशि रात का खाना बना कर खाने के बाद सोने ही जा रही थी कि पति निकुंज का फ़ोन आ गया ।

“ हाँ बात हुई कुछ रितेश से…कब तक दे सकता है?” निकुंज ने पूछा 

“ अभी कोई बात नहीं कि निकुंज … समय देख कर करूँगी आई हूँ तब से महसूस कर रही हूँ घर में एक अलग सी चुप्पी है।” राशि धीरे से फुसफुसाई

“ देखो कहे दे रहा हूँ मेरे पैसे मुझे वापस चाहिए…अपने भाई से कह कर जल्दी बोलो और जो दे लेकर जल्दी आओ।” निकुंज ने सख़्त हो कर कहा

“ निकुंज बात को समझो.. सही समय देख कर करूँगी ना बात…आप अपना और बच्चों का ख़याल रखना ।” कह राशि ने फ़ोन रख दिया 

“ क्या कह रहे थे दामाद जी बेटा..?“ पीछे से सुमिता जी की आवाज़ सुन राशि घबरा गई 

“ कुछ नहीं माँ बस पूछ रहे थे सब ठीक है ना वहाँ?” राशि बात बदलते हुए बोली 

“ तू भी ना जरा जरा सी बात में घबरा जाती है…बच्चों को छोड़कर आई है …फ़ोन पर ही हाल पूछ लेती।” सुमिता जी ने कहा 

राशि कैसे कहे वो यहाँ क्यों आई है…

माँ बेटी साथ सो रहे थे… अचानक सुमिता जी के सुबकने की आवाज़ सुन राशि उठ बैठी…

“ क्या हुआ माँ… तुम रो रही हो… कुछ बात है तो कहो ना मुझसे ।” राशि माँ के आँसू पोंछ उनका हाथ पकड़ कर बोली 

“ बेटा मेरे दो ही बच्चे….सोचती हूँ कि मैं ना रही तो रितेश का क्या होगा… वो बेचारा कैसे सब सँभालेगा… उसकी बड़ी चिंता रहती है…. तू उसके साथ रिश्ता बना कर रखेंगी ना मेरी बच्ची… कभी उसे अकेला तो ना छोड़ देंगी ।” सुमिता जी राशि के हाथों को कस कर पकड़ कर बोली 

“ ऐसे क्यों कह रही हो माँ… सच सच बताओ क्या बात है।” राशि को लग तो रहा ही था माँ और भाई परेशान है 

“ बेटा रितेश का बिज़नेस अच्छा नहीं चल रहा…कमाई कम हो रही और ख़र्चा सुरसा की तरह मुँह बाए खड़ा है…कह रहा था निकुंज जी से पैसे भी लिए हुए वो कहाँ से दूँगा….कितनी बार कहता माँ मर जाऊँगा ऐसा रहा तो….कितनी मेहनत कर रहा है पर वही ढाक के तीन पात… बस रोटी के लिए जुटा पा रहा बच्चों की पढ़ाई कहाँ से हो… निशिता भी कुछ बच्चों को घर में ही ट्यूशन पढ़ा रही हैं… कुहू कुश की पढ़ाई ना रूके बस यही फ़िक्र… बेटा झूठ नहीं बोलूँगी निशिता मायके अपने पिता से पैसे लेने गई है।”सुमिता जी कहते कहते रो पड़ी 

“माँ घर की स्थिति इतनी ख़राब हो गई और तुमने मुझे बताया तक नहीं…. ।”राशि मायके की स्थिति जान व्याकुल हो गई  सोचने लगी धिक्कार है मुझ जैसी बेटी पर जो ना माँ के लिए कुछ कर सकी ना भाई के लिए ये लोग इतने परेशान है और मैं यहाँ क्या लेने आ गई…

वो तो यहाँ पति के कहने पर अपने भाई को दिए पैसे माँगने आई थी और यहाँ ये हाल हो रखा है कि भाभी अपने मायके से मदद  माँगने  गई हुई है।

“ माँ तुम चिंता मत करो.. सब ठीक हो जाएगा.. बचपन में तुम हमेशा कहती थी ना तुम दोनों भाई बहन मिलकर कोई काम करोगे तो देखना सफल होंगे… एक अकेले जब कुछ नहीं कर सकता तो एक और एक मिल जाए तो ग्यारह हो जाता बस मेल से हर काम आसान हो जाता है…अब तुम सो जाओ कल देखते हैं क्या होगा ।” राशि माँ को सांत्वना दे कर कुछ विचार करने लगी

दूसरे दिन सुबह उसने पति को फ़ोन किया  और बोली व”काम हो गया है मैं आ रही हूँ ।”

इधर माँ से कहा,“ तुम फ़िक्र मत करो मैं दो दिन में आ रही हूँ ।” 

राशि अपने घर पहुँची तो निकुंज पैसे के लिए राशि से पूछने लगा।

“ निकुंज मैं पैसे लेकर तो नहीं आई हूँ पर एक उम्मीद ,एक विश्वास ,एक भरोसा लेकर यहाँ आई हूँ कहिए आप मेरी इन सब बातों का मान रख पाएँगे या फिर मुझे खुद को धिक्कारना पड़ेगा कि मैं किसी लायक़ ही नहीं हूँ ?” राशि ने बहुत दुखी स्वर में कहा

निकुंज राशि की बात सुन कर आश्चर्य से उसे देखने लगा

“ बात क्या है खुल कर कहो।” निकुंज ने कहा 

राशि वहाँ की सारी परेशानी बताते हुए बोली,“ निकुंज हमें अभी कोई कमी नहीं है …ना ही हम भूखे मर रहे ना हमारे बच्चों की पढ़ाई छूट रही… मुझे ये भी पता है मैं नौकरी नहीं करती हूँ जो कमाई है वो बस अकेले आपकी है आपके मेहनत की है…क्या आपके पैसों पर मेरा कोई अधिकार है… ?”

“ ये कैसा सवाल है… बिल्कुल है तुम मेरी पत्नी हो।” निकुंज ने कहा 

“ फिर निकुंज जब आपके घरवालों को जरा भी ज़रूरत होती है आप उनकी मदद करने को उतावले हो जाते हैं उसमें मैं भी तो सहभागी होती हूँ… क्योंकि आपसे ही वो भी मेरा परिवार है…बस यही भाव एक बार आप सोच कर देखिए ना… मेरे दिल पर क्या बीत रही होगी जब मैं अपनी माँ को बिलखते देखी और भाई के चेहरे पर परेशानियों की गठरी… किस मुँह से कहती भाई मेरे पैसे दे दे… कल को कुछ भी हुआ तो मैं कभी खुद को माफ नहीं कर पाऊँगी…  सब मुझे धिक्कारेंगे कैसी बहन है कैसी बेटी है जो खुद मजे में रह रही और मायके की जरा भी सुध नहीं….मैं बस ये कहना चाहती हूँ कि कुछ दिनों की मोहलत उसे दे दीजिए और हाँ मैंने सोच लिया है जो गहने मुझे मेरे मायके से मिले है वो मैं उन्हें देना चाहती हूँ… वो उनके काम आ सकें बस मुझे यही चाहिए और उसके लिए आपकी इजाज़त भी… क्योंकि ब्याह बाद सब कुछ पूछ कर और मिल कर करने से ही रिश्ते की बुनियाद सही रहती है अगर हो सके तो आप भी उसकी जो मदद कर सके कर दे।” राशि कहते कहते रोने लगी 

“ राशि ये बहुत बड़ा फ़ैसला ले रही हो.. कोई लड़की मायके के लिए इतना नहीं करती है…शादी के बाद उसकी ज़िम्मेदारी पति की तरफ़ ज़्यादा रहती है ।” निकुंज राशि से बोला

“ जानती हूँ निकुंज पर वो मेरा भाई है …मेरी माँ है कैसे भूल जाऊँ.. मेरे ब्याह पर पिता के नहीं रहने पर जितना हो सकता था उतना देकर उसने मेरा ब्याह किया ताकि मैं ख़ुशी से रह सकूँ … पर जब वो खुश नहीं है तो मैं कैसे ख़ुश रह सकती हूँ…मुझे इजाज़त दीजिए और मेरा साथ दीजिए मुझे मेरा मायका सलामत चाहिए निकुंज तकलीफ़ में भी जो मैं ना समझ सकी तो किस मुँह से बेटी और बहन कहला सकती हूँ… मैं आराम से रहूँ और वो तकलीफ़ में… लानत है फिर तो मुझपर।” राशि रोते हुए बोली 

निकुंज कुछ ना कह सका….जो हमेशा अपने परिवार के लिए जीना जानता था वो राशि के दर्द को नज़रअंदाज़ कैसे कर सकता था उसने राशि को सांत्वना देते हुए बस इतना कहा ,“ जैसा तुम्हें ठीक लगे ।”

राशि दो दिन बाद मायके पहुँच गई…भाभी भी आ चुकी थी थोड़ी बहुत मदद उन्हें भी मायके से मिली थी… राशि की मदद को रितेश जरा भी तैयार नहीं था… उसने क़सम देकर कहा,“ समझ ले उधार दे रही हूँ…कुछ और नया कर इसके साथ-साथ…सब ठीक हो जाएगा ।”

रितेश अब बहन का साथ मिल जाने से मज़बूत महसूस कर रहा था…दोगुने जोश में वो फिर से अपने बिज़नेस पर फ़ोकस करने लगा… समय पर तरक़्क़ी करते हुए निकुंज के पैसे भी चुका दिया ।

इस बार जब राखी पर राशि आई रितेश ने अपनी छोटी बहन के गले लग बोला,“ सही मायने में तुने मेरे अकेले को सहारा देकर फिर से खड़ा कर दिया नही तो मैं सोच रहा था कैसे क्या होगा उपर से निकुंज जी के पैसे का बोझ।” 

“ चलो भैया ज़्यादा भावुक ना करो… राखी पर तोहफ़ा तो लूँगी ही ये ध्यान रखो।” राशि ने माहौल को हल्का करते हुए कहा 

“ बोल ना क्या चाहिए?” रितेश ने पूछा 

“ एक वादा … हम हमेशा ग्यारह ही रहे भैया कभी एक ना हो…जब भी मुझे ज़रूरत हो तुम आ जाना जब तुम्हें ज़रूरत हो मुझे बुला लेना।” राशि ने कहा 

“ सच में दीदी… आपने मायके की इज़्ज़त रख ली … मैं भी अपने मायके से ज़्यादा मदद नहीं माँग सकती उनकी भी स्थिति कहाँ ही अच्छी रहती।“ भाई-बहन के भावुक मिलन पर निशिता ने कहा 

“ चलो मेरे बच्चों पहले भगवान का आशीर्वाद लो और राखी बाँध मिठाई खाओ।” सुमिता जी ने कहा 

सभी हँसी ख़ुशी मिठाई खाने में मग्न हो गए ।

दोस्तों परिवार में हम अगर बस अपना अपना सोचने लगे तो कई बार बहुत भयावह स्थिति भी आ जाती हैं…समझदारी इसी में है अगर आप सक्षम है तो मदद कर दे…. कल को ये पैसे लेकर किसी को नहीं जाना…परिवार पैसे से बिखर जाता है वही थोड़ी समझदारी से संवर भी जाता है..राशि आई तो भाई से पैसे लेने थी अगर वो उस वक्त पैसे माँग लेती तो सोच कर देखिए क्या स्थिति हो सकती थी…।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#धिक्कार

3 thoughts on “मायके के लिए फ़र्ज़ कैसे भूल जाऊँ – रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi”

  1. अत्यंत अद्भुत रचना,
    ऐसा लग रहा है कि ये हृदय स्पर्शी घटना क्रम हमारे सामने गठित हो रहा है, सभी पात्रों का चयन व प्रस्तुती करण अत्यंत सुघड़ता से किया गया है व जो संदेश देने का प्रयास किया गया है व सफलता पूर्वक संवेदित किया गया है,
    अनेक शुभ कामनाएँ व अनंत साधू वाद

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  2. नमस्ते जी 🙏
    बहुत ही सुन्दर सन्देश उत्तम विचार प्रस्तुति 🪔 एक और एक ग्यारह = ११

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