मायके का मोह –  विभा गुप्ता   : Moral Stories in Hindi

    ” राजन..तुमने पापा से बात किया.. क्या कहा उन्होंने ..I know, मना नहीं करेंगे।” 

   ” रिया..माँ कह रहीं थी कि…।” 

  ” माँ को तो मैं मना लूँगी…अभी डैड को कह देती हूँ कि हम कल वहाँ शिफ़्ट कर रहें हैं..मैं सामान लेकर सुबह चली जाऊँगी और तुम ऑफ़िस से सीधे वहीं आ जाना।” कह कर रिया अपने डैड को फ़ोन करने लगी।

         राजन के पिता श्री विष्णु प्रसाद सरकारी स्कूल के अध्यापक थे। बड़ी बेटी प्रेमा को शिक्षित करके उन्होंने एक सुयोग्य वर देखकर उसका विवाह कर दिया था।प्रेमा से तीन साल छोटा था राजन।बारहवीं की परीक्षा के बाद उसने दिल्ली के एक इंजीनियरिंग काॅलेज़ में दाखिला ले लिया जहाँ उसकी दोस्ती राघव के साथ हुई।राघव उसी के ब्रांच का था, इसलिए दोनों अक्सर ही एक साथ समय बिताते थे।

    एक दिन राजन किसी काम से राघव के घर गया था जहाँ पर राघव की बहन की सहेली रिया भी आई हुई थी जो एक जाने-माने उद्योगपति की बेटी थी।पहले परिचय,फिर जान-पहचान हुआ और मुलाकातें कब प्यार में बदल गयी, उन्हें पता ही नहीं चला।

        इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद राजन एक प्राइवेट कंपनी में ज़ाॅब करने लगा।तब रिया ने उससे शादी करने की बात कही।राजन बोला,” रिया..प्यार तो ठीक है लेकिन शादी…।तुम्हारा लाइफ़ स्टाइल अलग है..मेरे साथ तुम कैसे एडजेस्ट करोगी…कभी-कभी मिलने और एक साथ ज़िंदगी बिताने में बहुत फ़र्क है।”

   ” कुछ फ़र्क नहीं राजन…विश्वास करो..मैं तुमसे कोई डिमांड नहीं करूँगी..।” मुस्कुराते हुए रिया ने राजन के गले में अपनी बाँहें डाल दी।

       राजन ने अपने माता-पिता को रिया के बारे में बताया..वे लोग दिल्ली आये तो रिया से मिले।माँ ने उससे कहा कि रिया बहुत अच्छी है लेकिन बेटा वो बड़े घर की बेटी…।तब राजन ने कहा कि माँ..सब ठीक हो जायेगा।उधर रिया ने जब अपने घर में राजन के बारे में बताया तो उसके पिता तो शांत रहे लेकिन माताजी ने तांडव मचाया।उन्होंने कहा कि तेरा दिमाग खराब हो गया है..एक से एक करोड़पति लड़के को ठुकराकर तूने इस दो टके के इंजीनियर में क्या देखा..।उसकी बड़ी बहन और भाभी ने भी यही बात कही कि प्यार के जोश में गलत फ़ैसला मत कर लेकिन रिया ने अपना मन नहीं बदला।तब उसके पिता ने सबको समझाया और दोनों परिवारों की उपस्थिति में राजन और रिया परिणय-सूत्र में बंध गये।

     विवाह के एक महीने बाद ही राजन समझ गया कि रिया का अपने खर्चों पर ज़रा भी नियंत्रण नहीं है।एक दिन उसने टोक दिया तो रिया बोली,” टेंशन नहीं ।” और फिर रिया की मम्मी बेटी की ज़रूरतों को पूरा करने लगी जिसे राजन चाहकर भी मना नहीं कर सका।फिर एक दिन रिया की मम्मी ने कहा कि क्यों नहीं तुम दोनों यहाँ आकर शिफ़्ट हो जाते हो।राजन नहीं चाहता था…उसकी माँ ने भी कहा कि बेटे..ससुराल में रहना उचित नहीं है लेकिन रिया की ज़िद के आगे राजन की एक न चली। अपने डैड को फ़ोन पर अपने आने की सूचना देकर अगले ही दिन रिया राजन के साथ अपने मायके में रहने आ गई।

       रिया को देखकर उसकी मम्मी तो बहुत खुश…मायके में आकर उसे घूमने-फिरने और खर्च करने की पूरी आज़ादी मिल रही थी।रोज पार्टी..कभी रीना तो कभी अंकिता के घर।ससुराल में अपनी आवभगत होते देख राजन का मन भी वहाँ रमने लगा था।

       एक दिन रिया की भाभी का भाई कनाडा से आया हुआ था।डिनर के समय भाभी ने उसका परिचय राजन से करवाया।टेबल पर रखी मिठाई की प्लेट राजन ने लेनी चाही तो भाभी ने तुरंत यह कहकर प्लेट लिया कि मेरा भाई तो कल चला जायेगा.. आप तो राजन यहीं रहते हैं,  कल खा लीजिएगा।

       राजन को अपना अपमान महसूस हुआ।रिया से वापस चलने को कहा तो वो बोली,” तुम भी ना राजन…छोटी-छोटी बातों को बहुत तूल देते हो।” अगले दिन वो ऑफ़िस के लिये निकल रहा था तो उसने सुना कि भाभी अपने भाई से कह रही थी,” दिल्ली में किराया बहुत है और राजन की फ़ाइनेशियल कंडिशन भी अभी ठीक नहीं है तो…दो-तीन महीने में वो दोनों…।” राजन आगे सुन न सका।शाम को ऑफ़िस से आकर रिया से बोला कि मैंने अपना घर देख लिया है..मैं जा रहा हूँ और तुम भी चलो।रिया सुख-सुविधाओं की आदी हो चुकी थी, उसने साथ चलने से मना कर दिया तब राजन अकेला ही चला गया।

       दो दिन बाद रिया की सास ने उसे फ़ोन करके समझाया,” बेटी…घर कितना भी बड़ा क्यों न हो लेकिन वो मायका ही कहलाता है और घर छोटा ही सही लेकिन अपना घर अपना घर ही होता है।तुम आकर अपना घर संभाल लो।” रिया हाँ- हूँ कहकर रह गई।तब माँ ने राजन को कहा,” थोड़ा धैर्य रख बेटा..रिया को अभी मायके का मोह है…मोह-भंग होते ही वो अपने आशियाने में लौट आयेगी।”

       एक दिन रिया की सहेली रीना ने कहा,” रिया..आज मैं नहीं आ सकूँगी..मेरे घर का गृह-प्रवेश है…मेरे और आनंद के प्यार का घर…।” उस दिन उसके मन में कुछ हलचल-सी उठी थी लेकिन फिर…।

         रिया की बड़ी बहन अपने बेटे अमन के साथ आई हुईं थीं।अमन और भाभी का बेटा यश खेल रहें थें।रिया अमन से कुछ कहने आ रही थी कि उसने सुना-

 अमन – ये मेरा घर है।

 यश – नहीं..ये मेरा घर है..मेरे पापा का घर है।

 अमन – जब रिया मासी का यह घर है तो मेरा क्यों नहीं..।

 यश -(हँसते हुए) अरे बुद्धु…बुआ की तो अभी कट्टी चल रही है।मेरी मम्मा कहती हैं कि बुआ का पैचअप होते हो वो अपने घर चली जायेगी।

       सुनकर रिया सन्न रह गई।जो बात राजन और उसकी सास नहीं समझा पाये , उसे यश ने समझा दिया था।उसे एहसास दिला दिया था कि वो यहाँ एक मेहमान है।अब उसने तनिक भी देर नहीं की।अपना सामान तैयार कर लिया और अगली सुबह ही निकलने से पहले अपनी मम्मी को मैसेज़ कर दिया,” मम्मी..अपने घर जा रही हूँ।” मम्मी ने रोकना चाहा लेकिन पिता ने रोक दिया जैसे कह रहें हों,” शुभ कार्य में बाधा न बनो।

        सुबह-सुबह काॅलबेल की आवाज़ सुनकर राजन ने दरवाज़ा खोला, सामने रिया को देखकर चौंक गया,” इतनी सुबह!” 

  ” ये मेरा घर है..मैं जब चाहूँ तब आ सकती हूँ।” राजन को पीछे धकेलते हुई रिया बोली और सामान रखकर घर को व्यवस्थित करने में जुट गई।आज उसके शरीर में गज़ब की फ़ुर्ती और मन में एक नया उत्साह था।

      खाना खाकर रिया बिस्तर पर लेट गयी और अपने दोनों हाथ फैलाकर बोली,” सच है राजन..अपना घर अपना ही होता है।” राजन बोला,” अभी कहाँ…अभी तो..।” कहते हुए उसने लाइट ऑफ़ कर दी। 

                          विभा गुप्ता 

                      स्वरचित,बैंगलुरु 

#अपना घर अपना घर ही होता है

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