मायका याद आता है मुझे – मुकेश पटेल

आज मेरी शादी के 14 साल बीत चुके हैं।  14 साल कैसे और कब बीत गए मुझे इस चीज का एहसास तक नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि मेरी शादी अभी पिछले साल ही तो हुई थी,लेकिन सचमुच में आज 14 साल हो गया था क्योंकि आज मेरी शादी का सालगिरह था।

बच्चों को स्कूल भेज दिया था  और साथ ही अपने पतिदेव को भी ऑफिस भेज दिया था।  सोच रही थी कि अपने सास-ससुर को भी जल्दी से नाश्ता और उनकी दवाई खिलाकर थोड़ी सी आराम करूंगी क्योंकि आज का पूरा दिन काम मे बितने वाला था।  क्योंकि आज शाम को हमारे शादी के सालगिरह की घर में छोटी सी पार्टी होने वाली थी जिसमें हमने अपने खास मेहमानों को भी इनवाइट किया था ।

अब मैं अपने कमरे में आकर बेड पर लेट गई थी सोची थोड़ी देर आराम कर लेती हूं फिर उसके बाद घर की सफाई करूंगी क्योंकि घर में मेहमान आने वाले हैं वैसे भी सच कंहु तो मुझे थोड़ा सा भी गंदगी पसंद नहीं है।

जैसे ही मैं बेड पर लेटी अचानक से ही पता नहीं कब नींद लग गई और मैं 20 साल फ्लैश बैक  में चली गई थी।



उस समय हम आठवीं में पढ़ा करते थे मैं अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी।   मेरे एक भाई और बहन थी दोनों मेरे से एक- एक साल ही छोटे थे।

रोजाना की तरह मां घर की साफ-सफाई कर किचन में नाश्ता बना रही थी हमारे स्कूल जाने की टिफिन तैयार करने के लिए। हम जैसे ही सुबह होता था जानबूझकर और सोने का नाटक करने लगते थे जैसे कि हमें इतनी गहरी नींद आई हो तभी मां की आवाज़ आती रेखा उठो जल्दी 6:00 बजने वाले हैं स्कूल के लिए लेट हो जाएगा लेकिन माँ की आवाज सुनते हुए भी अनसुना कर देते जैसे हमने सुना ही नहीं और चादर को और मुंह पर ढँक कर सो जाते थे।  वह दुबारा आवाज़ लगातीथी रेखा तुमने सुना नहीं क्या ? लेट हो रहा है स्कूल के लिए मां का यह रोज का कार्यक्रम था और हम भी रोज ऐसे ही नाटक करते थे। लेकिन हम भी सो कर नहीं उठते थे बस इंतजार करते थे तो पापा जी का पापा जी 6:30 बजे तक पार्क से टहलकरआते थे। और उनकी एक आवाज सुनते ही पापा जी घर पर आ गए हम सब ऐसे दिखते थे जैसे लगता है कि हम कब का उठा गए हों। जल्दी जल्दी हम स्कूल के लिए तैयार होते मां हमें सभी भाई बहन का  टिफिन पैक करती और हम स्कूल के लिए चले जाते।

मां को देखकर ऐसा लगता था कि मेरी मां कोई जापान की बुलेट ट्रेन हो कभी भी हमने अपनी मां को थकते हुए नहीं देखा था हमारे जाने के बाद मां दादा-दादी को नाश्ता कराती फिर उनको दवाइयां खिलाती।  पापा को नाश्ता पैक कर ऑफिस भेजती। पापा हमारे बैंक में कलर्क थे।



एक बजते ही हमारा स्कूल की छुट्टी हो जाती थी और हम तीनो भाई बहन घर वापस आते थे घर आते तो देखते मां वैसे ही भाग रही है जैसे सुबह हम छोड़ कर गए थे।  मां किचन में दोपहर का भोजन बनाते हुए मिलती और जैसे ही हम घर में प्रवेश करते तभी अचानक से मां की आवाज आती जल्दी से कपड़े खोलो और अपने जगह पर बैठ जाओ खाना लगाती हूं।  हमें भी जोरों से भूख लगी होती थी तो हम भी बिना देर किए टेबल पर बैठ जाते थे।

सच में मां के हाथों में जादू था और जो भी खाना बनाती थी हम सब उंगली चाट कर खा जाते हैं। जैसे ही हम खाना खाकर खत्म करते मां  की आवाज आती जल्दी से जाकर तुम से एक घंटे आराम कर लो 4:00 बजे ट्यूशन वाले सर आने वाले हैं हम भी सोचतेपढ़ाई किसने बनाया है । बच्चों को थोड़ा सा भी आराम नहीं मिलता स्कूल से आओ फिर से लग जाओ हमें पढ़ाई बहुत  बोरिंग लगती थी और सच कहे तो हर बच्चे को पढ़ाई बोरिंग लगता है।

अभी हमारी नींद ही पूरी नहीं होती तब तक  सर आ जाते थे और हम ट्यूशनके लिए बैठ जाते थे।

सर के जाने के बाद हम थोड़ी देर घर के बाहर मोहल्ले के सारे लड़के लड़कियां मिलकर कोई खेल खेला करते थे उसके बाद रात होते ही मां की आवाज़ आती रेखा जल्दी से लालटेन साफ करो और पढ़ने बैठ जाओ। होमवर्क करना है।

उस समय हम गांव में रहा करते थे और हमारे घर में बिजली नहीं थी इसलिए घर मे रोशनी किरोसीन वाले लालटेन से ही होता था।  हमारे घर खाना भी शाम को जल्दी ही बन जाता था क्योंकि गांव में जल्दी ही लोग खाना खा कर सो जाते थे। हम लालटेन लेकर पढ़ने बैठ जाते थे माँ भी वहीं पर आकर बैठ जाती थी ऐसा लगता था कि मां को सब कुछ पता है कि हम क्या पढ़ रहे हैं लेकिन वह अपने स्वेटर लेकर बुनने  बैठ जाती थी क्योंकि पूरे साल जो भी उसके पास पुराने ऊन बचा होता था, उसके स्वेटर बुनती थी ताकि हम अगले साल पहन सकें।



हम भी कई बार पढ़ाई  करने का सिर्फ नाटक ही करते पढ़ते नहीं थे क्योंकि मां को को क्या पता हम पढ़ भी रहे हैं या नहीं और कुछ देर के बाद मां से बोलते मां बहुत नींद आ रही है मां बोलती ठीक है जाओ सो जाओ।

यह कार्यक्रम हमारा रोज चला करता था पूरे दिन का हमारा यही रूटीन था।

फिर देखते ही देखते मैं कॉलेज में मे आ गई।  अब मुझे मां को जगाना नहीं पड़ता था क्योंकि मैं अब अपनी जिम्मेदारी समझ चुकी थी मुझे समझ आ चुका था कि जीवन में पढ़ाई कितना महत्वपूर्ण होता है हम खुद ही जग कर  अपने सारे होमवर्क और पढ़ाई करते थे/

उस वक्त तक हम गांव के बगल में ही एक छोटा सा शहर था वहां पर आकर रहने लगे थे क्योंकि गांव से रोजाना कॉलेज जाना मुमकिन नहीं था तो पापा ने वहां पर ही किराए पर घर ले लिया था और हम सभी भाई बहन पर पढ़ा करते थे।  

कॉलेज की पढ़ाई खत्म करते ही पापा ने मेरी शादी शांतनु से करा दी थी शांतनु स्कूल शिक्षक थे सब को यह रिश्ता पसंद आया क्योंकि हम मध्यमवर्ग लोगों में सरकारी नौकरी को तरजीह दिया जाता है।

मेरा ससुराल मायके से सिर्फ 10 किलोमीटर की दूरी पर था तो महीने में एक बार मायके आना हो ही जाता था।  लेकिन मां के दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं था जब भी मायके आती मां को वैसे ही बुलेट ट्रेन की तरफ भागते हुए देखा करती थी, सोचती थी की माँ कैसे कर लेती है यह सब।



मैं भी जब अपने ससुराल आई तो शुरू में तो बहुत तकलीफ हुआ इतना काम अकेले कैसे कर पाऊंगी लेकिन जब मैं अपनी मां को देखती थी तो मैं यह भूल जाती थी कि मां भी तो पूरा घर को संभालती है।  

हमारी मां भले ही अनपढ़ थी लेकिन हममे संस्कार इतना  ज्यादा भर दिया था यह हमें बिल्कुल ही ससुराल में तकलीफ नहीं हुआ बस हमने यह मान लिया था एक लड़की को यह सब चीज तो करना ही होता है अब चाहे हंस के करो यार रो के करो।

मेरी शादी के 3 साल बाद ही अचानक पापा का दिल के दौरे के कारण मौत हो गया।   अब माँ बिल्कुल ही अकेले हो गई थी जब मैं मायके गई मां बिल्कुल ही टूट चुकी थी ऐसा लग रहा था मां मेरी मां ही नहीं है बिल्कुल शांत रहने लगी थी।  घर खाली सा लगने लगा था नहीं तो माँ दिन भर चलती तो चूड़ियों की खनक से पूरे घर में आवाज आती रहती थी।

अब यह घर सुना सुना लगने लगा था मां भी पापा के गम में बीमार रहने लगी थी फिर हम सब ने डिसाइड किया अपने भाई मोहित का शादी कर दिया जाए वो उम्र में छोटा ही था लेकिन घर मे कोई काम करने वाला नहीं था इस वजह से मोहित की शादी कर दिया गया।  लेकिन हम जो सोच के मोहित की शादी किए थे भाभी आएगी तो मां की सेवा करेगी।

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ शादी के बाद मोहित भी बदल चुका था मोहित ने  मेरी छोटी बहन और मां को ऐसे छोड़ दिया था जैसे लग रहा था इनसे उसका कोई रिश्ता ही नहीं हो।

मोहित और उसकी बीवी सिर्फ अपने आप में ही दोनों मस्त रहते थे।

मां का जीवन अब पहले से भी ज्यादा कष्टकारी हो गया था उसे अपना ही घर और पराया लगने लगा था अगर किचन में भी जाती थी तो मोहित की वाइफ उसे बोलती थी मां आप वही बैठो मैं आपको जो चाहिए दे दूंगी।

कुछ दिनों बाद छोटी बहन की भी जैसे-तैसे करके शादी हो गई थी।



अब तो माँ  बिल्कुल ही अकेली पड़ गई थी।  मां अब घर के एक कोने में पड़ी रहती थी जैसे वह इंसान नहीं बल्कि एक रदी का सामान हो इसे इस्तेमाल करके फेक दिया गया।

मैंने मां को एक सिंपल वाला फोन खरीद के दे दिया था कि जब चाहे कम से कम मां से बात तो कर सकती हूं।  एक दिन मैंने मां को फोन लगाया तो फोन रिंग तो हो रहा था पर फोन कोई रिसीव नहीं कर रहा था मैं बहुत घबरा गई मैंने फोन मोहित की वाइफ को लगाया,  उसके बाद पता चला कि माँ तो इस दुनिया से गुजर गई है।

यह खबर सुनने के बाद ऐसा लगा जैसे आज के बाद से मेरा मायका ही छुट गया।  मैंने अपने पति शांतनु को जल्दी से फोन लगाया और यह खबर दी की माँ गुजर गई है जल्दी से मुझे मायके ले चलो।   शांतनु बहुत अच्छे स्वभाव के

थे  बिना देर किए मुझे मायके ले कर चल दिए थे मैं मरी हुई  मां को देख कर खूब रोइ ऐसा लग रहा था कि मेरी एक दुनिया ही लुट गई ।

अचानक से मेरा नींद खुला और मेरी सास मेरे पास खड़ी थी और बोल रही थी क्या हो गया बहू।  देखा तुम कितनी ज़ोर से रो रही हो। मैंने भी देखा कि यह क्या हो गया है मेरा पूरा शरीर आँसुओ से भिंगा पड़ा था।

मैंने बोला कुछ नहीं मां आज मां की बहुत याद आ रही थी तो आंखों में आंसू आ गया।



किस्मत से मेरी सास बहुत अच्छी थी उन्होंने मेरी मां की कमी को कभी महसूस नहीं होने दिया था हमेशा मुझे अपनी बेटी जैसे प्यार करती थी उन्होने  मुझे गोद में बैठाकर बोला क्या हो गया बेटी अगर एक मां चली गई तो दूसरी मां तो है। उन्होंने बोला मैं अभी चाय बना कर लाती हूं कुछ देर बाद माँ ने चाहे पकड़ाते हुए यह लो चाय पियो। कभी मेरे हाथ का भी पी लिया करो।

मैं तो भगवान से दुआ करती हूं कि भगवान अगर सास  दे तो सबको मेरी सासू मां की तरह। चाय बहुत टेस्टी बनाती थी अगर आपका मूड बिल्कुल भी खराब हो तो  एक मिनट में आपका मूड ठीक हो जाएगा।

पता नहीं क्यों  आज मुझे अपने मायके जाने का मन कर रहा था शांतनु शाम को जैसे ही वापस आए मैंने उनसे बोला कि संडे हम भाई के घर चलेंगे।  शांतनु इतने अच्छे थे कि वह कभी भी मुझे किसी भी चीज के लिए मना नहीं करते थे उन्होंने बोला ठीक है

संडे के दिन अपने मायके पहुंचे। हम जैसे ही मायके पहुंचे मोहित और उसकी वाइफ कहीं जाने की तैयारी में थे  मुझे देखकर मोहित की वाइफ बोली अरे दीदी अचानक कैसे आप एक फोन तो कर दिया होता।

हम अभी कहीं जा रहे हैं मोहित के दोस्त की घर एक छोटी सी पार्टी है आप तब तक बैठे हम एक-दो घंटे में आ रहे हैं, मैंने बोला ठीक है भाभी आप जाओ आराम से आओ, हम यहीं पर हैं  माँ के बिना घर सुना सुना लग रहा था ऐसा लग रहा था यह घर नहीं कोई खंडहर हो चारों तरफ सामान बिखरे हुए थे घर में बिल्कुल भी साफ-सफाई नहीं थी। किचन में भी सामान जैसे के तैसे फेंके हुए थे।  मैंने सोचा पता नहीं मोहित की वाइफ क्या करती है दिन भर घर में और एक मां होती थी यह घर घर नहीं स्वर्ग जैसा लगता था।



हर चीज़ अपनी जगह पर सजा हुआ मिलता था आज घर की हालत क्या हो गई थी।  मैं मां के कमरे में चली गई थी मां का ड्रेसिंग टेबल वैसे ही पड़ा हुआ था लेकिन लग रहा था कि महीनों से साफ नहीं किए हो।  पता नहीं क्यों आज ड्रेसिंग टेबल के सामने मां जैसी सजती थी वैसे ही मुझे सजने का मन कर रहा था।

कुछ देर बाद मोहित और उसकी वाइफ वापस आए उसके बाद बोले आपको कुछ काम था क्या दीदी।

यह शब्द यह सुनकर तो मेरे होश उड़ गए मैंने बोला मोहित क्या कोई लड़की अपने मायके सिर्फ काम के लिए ही आती है क्या क्या मैं तुमसे मिलने नहीं आ सकती हूँ ।  मोहित बोला दीदी क्यों नहीं आ सकती हो। मुझे लगा अचानक से आए हो तो कुछ काम होगा।

उस दिन के बाद मुझे वापस फिर कभी भी मायके जाने का मन नहीं करता था।  उस दिन के बाद से मुझे अपना मायका अधूरा सा लगने लगा था सच में कहा गया है जिस मायके में माँ न हो वह मायका नहीं होता है सिर्फ एक घर रह जाता है।  

– लेखक : मुकेश पटेल

1 thought on “मायका याद आता है मुझे – मुकेश पटेल”

  1. ma ke bina to jeevan hi adhura sa lagne lagta hai, maayka to rehta hi nahi. Bhai bhi sirf apni patni ka pati ban jata hai, usko apni behen ka apmaan bura nahi lagta lekin patni ko devi ka darja dilane me laga rehta hai.
    ma hi hoti hai jo betiyon ko unke hisse ka pyaar jeevan bhar deti hai itna ki uske jaane ke baad bhi wahi yaad aati hai sirf.

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