मौसमी रिश्ते मौसम के जैसे होते हैं,, स्वार्थी, मतलबी,मजबूरी,या क्षणिक आवेश में,या किसी के प्रति आकर्षित होकर बनाये गये रिश्ते। ये खोखले होते हैं,, इनमें स्थायित्व नहीं होता,, जैसे,मौसम बदलते रहते हैं, वैसे ही ये रिश्ते भी बदलते रहते हैं,,
ये प्रेम में ही नहीं,वरन, किसी भी रिश्ते में हो सकते हैं, परिवार, रिश्तेदारी में, आपसी दोस्ती में, कहीं भी अपने स्वार्थ के अनुसार और कभी भी तोड़े जा सकते हैं।
मौसमी रिश्ते जो ठहरे,,
इसी से संबंधित एक कहानी,,
मधु नौकरी करती थी,पति राज भी दूसरे शहर में नौकरी करते थे,मधु की एक दो महीने की बेटी भी थी,वह अपने मायके में ही रहती थी। क्यों कि शादी के पहले से उसकी नौकरी लग चुकी थी। इसलिए पति-पत्नी अलग अलग शहरों में रहते थे। कभी मधु छुटि्टयों में चली जाती तो कभी उसके पति राज उसके पास आ जाते।सब कुछ बहुत ही बेहतरीन तरीके से चल रहा था।
कि अचानक उसके प्रिय भाई का देहांत हो जाने के कारण वह बहुत ही दुखी हो गई थी, जिंदगी से निराश हो गई थी,, कहीं भी मन नहीं लगता था,, उसके पति आये और कुछ दिन के लिए उसे अपने पास ले गए,,पर वह वहां भी अपने पति और बच्ची से एकदम उदासीन रही । हमेशा अपने भाई की यादों में खोई रहती। उसके साथ बिताए एक एक पल उसे याद आते।सूनी और पथराई आंखों से उसकी फोटो निहारती रहती। आंखों से गंगा-जमुना बहती रहती।मन को बहुत समझाती पर मन तो जैसे भाई के साथ ही चला गया था।
एक दिन पतिदेव ने कहा,,अब तीन महीने हो गए हैं तुम्हारे भाई को गये हुए,,अब तो अपने आप को संभालो,,पर मधु पर कोई असर नहीं हुआ। वह दिन भर रोती रहती,, और एक दिन वापस अपने नौकरी पर लौट आई, मायके आकर तो वह और भी दुःखी रहती क्यों कि उसके माता-पिता बेटे की याद में गमगीन रहते।
इसी माहौल में रहते हुए स्कूल की गर्मी की छुट्टियां शुरू हो गई थी, पर उसके पति उसे लेने नहीं आये। दो महीने ग्रीष्मावकाश रहता था।वो रोज अपने पति का रास्ता देखती, पत्र भी भेजा,पर ना वो आ रहे थे,ना ही पत्र का जबाव ही आ रहा था।उसे आश्चर्य हो रहा था कि क्या हो गया, कहीं बीमार तो नहीं या कोई अनहोनी तो नहीं हो गई।, उसने रोते हुए मां को बताया,कि उन्हें अपनी बेटी का भी ख्याल नहीं आया, दस दिन बीत गए हैं ,मैं भरी दुपहरिया बाहर खड़ी हो कर राह देखती हूं ।पर आने की कोई आशा नहीं दिखाई देती।
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मां ने समझाया, तुम इस तरह उनकी अवहेलना और अनदेखा करोगी तो आदमी है, कहीं भी भटक सकता है,, तुमको कितना समझाया था,पर तुम तो अपने भाई के ग़म मे दिन रात डूबी हुई हो, जो चला जाता है वह लौट कर नहीं आता। उनकी यादों के सहारे ही हम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ते हैं और फिर पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं। समय सबके घाव भर देता है।
यह सुनकर वह घबरा गई , उसने फौरन पत्र लिखा कि आप नहीं आते तो मैं चली आती हूं अकेले ही,, मैं आपका इंतजार करते करते थक गई हूं।
पति राज आये ।उनका रवैया बिल्कुल बदला हुआ था, एकदम नीरस और उदासीन।ना तो मधु से ठीक से बात किया और ना ही बच्ची से । पूछने पर बताया कि काम बहुत ज्यादा था , अवकाश नहीं मिल रहा था।दो दिन रहकर वो उसे लेकर गये,,पर अब वो उससे नजरें चुरा रहे थे। मधु भी अब मां की चेतावनी के बाद संभल गई थी और खुश रहने की कोशिश करती। परंतु वह देख रही थी कि ज्यों ज्यों वह राज के करीब जाने की कोशिश करती त्यों त्यों राज उससे दूरी बनाए रखता और उसके प्रति उदासीन रवैया अपनाता। हमेशा खोया खोया सा रहता। मधु को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि उसे बेहद प्यार करने वाला उसका पति उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है जबकि वह उसका कितना ख्याल रखती है हां माना कि उससे गलती हो गई थी,पर कुछ समय के लिए तो सबके साथ ऐसा हो जाता है। वो उसके साथ हमदर्दी और प्यार से पेश आते उसके गम में शरीक रहते तो वह भी जल्दी संभल जाती।
एक दिन जब पति आफिस गए थे तो पोस्टमैन आया और उसे एक लेटर पकड़ा दिया, उसने उलट पुलट कर देखा और खोल कर पढ़ा तो धम से नीचे बैठ गई,,,, पत्र में लिखा था,,हमारा ट्रेन का सफर बहुत ही खूबसूरत था, बातों में पूरा सफर कैसे कट गया, पता ही नहीं चला,,आप की हंसी बहुत प्यारी है, मैं आपको भुला नहीं पा रही हूं,।। मैं कल आपके शहर से होकर वापस अपने शहर जा रही हूं,आप मुझसे स्टेशन पर मिलने जरूर आना, आपने मुझसे वादा किया था,आप के इंतजार में,
आपकी ही शीना,
ओह, तो यह बात है,जब वो उसे छोड़कर वापस आ रहे थे तो ट्रेन में किसी लड़की से मुलाकात हुई और उस लंबे सफर में वो यहां तक पहुंच गए थे। मां सही कह रही थी।हे राम।अब मेरा और मेरी बच्ची का क्या होगा ? वह बिलख बिलख कर रोने लगी।
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शाम को जब पतिदेव आफिस से आये तो उसने रोते हुए पत्र थमा दिया,ये कहते हुए कि आपकी बेरूखी की वजह ये आपकी हसीन हमसफ़र है। आप मेरे साथ ऐसा कर सकते हैं वो भी ऐसी हालत में। मैं सोच भी नहीं सकती थी। आपने अपनी बच्ची के बारे में भी नहीं सोचा। इतने निष्ठुर और संवेदनहीन कैसे हो गए आप?
पतिदेव हड़बड़ा गये ,सन्न रह गए उन्होंने सोचा भी नहीं था कि समय काटने के लिए थोड़ी सी मौज-मस्ती, हंसी मजाक इतना भारी पड़ जाएगा। हां,उस लड़की के कहने पर जरूर अपना पता उसकी डायरी में लिख दिया था।पर मैंने इतनी गंभीरता से उसे नहीं लिया।
राज ने मधु के आंसू पोंछते हुए कहा,, अरे पगली,,ये तो एक संयोग था, मुझसे उसका कोई लेना देना नहीं है,, उसने ज़रूरत से ज़्यादा नजदीकियां बढ़ा ली है। फिर केवल स्टेशन पर मिलने को ही तो लिखा है। मैं कौन वहां चला जा रहा हूं।बस सफ़र में थोड़ा समय पास किया था।मेरा उसके साथ कोई रिश्ता नहीं है। हां, मैं थोड़ा बहक जरूर गया था,पर समय पर आकर तुमने मुझे बहकने से बचा लिया।
ऐसे रिश्ते तो महज़ एक बदलते मौसम की तरह होते हैं।
इसे ही शायद मौसमी रिश्ते कहा जाता है,, तुम्हें छोड़कर मैं कहीं और जाने की सोच भी नहीं सकता, और प्यार से मधु को गले लगा लिया । मधु को अपनी ग़लती का अहसास हो गया था इसलिए वह खामोश रही।
मधु को एक नसीहत मिल चुकी थी,आपसी रिश्तों को इतना भी नहीं खींचना चाहिए, इतनी भी दूरी और अनदेखा नहीं करना चाहिए कि दूरी इतनी बढ़ जाए कि रिश्तों को समेटना भी मुश्किल हो जाए। जिंदगी में सुख दुःख तो आते-जाते रहते हैं। उनका सामना करने की हिम्मत और हौसला भी रखना चाहिए। उसकी जिंदगी जल्दी संभल गई वरना तबाह होते देर ना लगती।
सुषमा यादव, प्रतापगढ़
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
छठवां बेटियां जन्मोत्सव।