मेट्रीमोनियल वाली शादी – डॉ उर्मिला शर्मा

कोर्ट के कॉरिडोर में खड़ा नवीन रुचि को चार साल की गोल- मटोल नन्ही टियारा को सीढ़ियों से उतारकर ले जाते हुए प्यार भरी निगाहों से देख रहा था। उसका मन कर रहा था कि लपककर टियारा को बाहों में भरकर खूब प्यार करे। लेकिन यह आसान न था। न ही रुचि टियारा को उसके पास आने देती और न ही टियारा नवीन के पास आती। कहने को तो वह पापा था लेकिन वह अपनी बेटी को पिछले चार साल से कोर्ट की पेशियों में ही गिनती मात्र को देखता रहा है। बेबसी से उसकी आंखें नम हो गईं।

             लगभग छह साल की शादी में नवीन को केवल पीड़ा और मानसिक यंत्रणा ही तो मिली थी। विवाह के दो साल में ही रुचि ने उसके और उसके माता-पिता को त्राहि माम् करा दिया था। एकलौते बेटे की बहू को लेकर उसके पेरेंट्स ने कई सपने देखे थे,लेकिन उनके सारे सपने रुचि जैसी बहू पाकर चूर हो गए। बड़े लाड़-प्यार में पला सौम्य स्वभाव के नवीन को जब नेवी में नौकरी मिली तो उसके पेरेंट्स खुशी से झूम उठे। मानो उनके जीवन का बड़ा मकसद पूरा हो गया हो। अब बस नवीन की शादी कर घर में बहु लाने की जल्दी थी। कहीं मनमुताबिक लड़की न मिली तो उन्होंने अंततः मैट्रिमोनियल में रेजिस्टर कर शादी का विज्ञापन दिया।

   अंततः रुचि पसंद आई जो एम.बी.ए थी तथा देखने में बड़ी ही संस्कारी लगी। जब रुचि को पहली बार देखने नवीन व उसके पेरेंट्स गए तब वह फूल स्लीव की हाई नेक वाली ब्लाउज और साड़ी पहने सौम्यता की छवि लग रही थी। उस्की मां व भाई बड़ी विनम्रता से पेश आ रहे थे। फिर क्या था- चट मंगनी हो गयी और तीन महीने बाद शादी की तारीख रखी गई। इसी बीच किसी विश्वसनीय सूत्र से पता चला कि रुचि की गर्दन और पीठ में जलने का दाग है जिसके कारण वह हाई नेक और फूल स्लीव पहनी हुई थी। ये विचारणीय बात थी। नवीन के घरवालों ने सोच-विचार के बाद रुचि के घरवालों से इस बात के बाबत पूछने की सोची। पूछने पर उसकी मां ने बड़े सहजता से जो कारण बताया उसमें बचपन में रुचि का जाड़े के दिनों में आग सेंकते हुए अंगीठी पर गिर जाना था। रुचि के पिताजी नहीं थे एक छोटा भाई था। उसकी मां एक ब्यूटी पार्लर चलाती थीं। नवीन के घरवालों द्वारा रुचि का पसंद होना तथा उसकी पारिवारिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने बड़ी उदारता से रुचि को अपनाया और नियत तारीख पर शादी हो गयी। शादी के लगभग तीन माह बाद नवीन नौकरी पर शिप पर चल गया। इधर रुचि अपना असली रंग-ढंग धीरे-धीरे दिखाने लगी। नवीन जब था तभी रुचि ने उसे अपने नाम से एक फ्लैट दिलाने की बात कही थी तब नवीन ने यह कहकर मना कर दिया था कि कैपिटल सिटी में अपना इतना बढ़िया बंगला है तो फ्लैट की क्या जरूरत है? तभी रुचि सप्ताह भर मुंह फुलाए रही थी।

             रुचि आये दिन अपने सास से उटपटांग फरमाईशें करते रहती। कुछ पूरी होतीं और जो न होती उसकी प्रतिक्रिया में उन्हें खूब तंग करती। वह निहायत ही लालची और सनकी सा व्यवहार करती। एक रोज इसने अपनी सास से कहा -“मम्मी! आप न अपने गहने मुझे रखने को दे दीजिये। मुझे कहीं आना जाना रहता है तो बदल-बदलकर पहनूँगी।”

“लेकिन मैं अपने गहने तुम्हें क्यों रखने को दूँ,जब जरूरत होगी ले लेना हमसे।”- सास ने साफ मना कर दिया।

इस बात पर रुचि बिदक कर बोली -“उमर हो गयी लेकिन मोह नहीं छूट रहा इनका। देखती हूँ….।”

कुछ महीनों बाद नवीन घर आया। रुचि आये दिन शॉपिंग को निकलती और ढेर सारी महंगी-महंगी चीजें खरीद लाती। पैसा पानी की तरह खर्च करती। एक रोज वह नवीन के साथ ज्वेलरी शॉप पर जा पहुंची और बेवजह ही साढ़े तीन लाख का एक गले का सेट खरीदने को जिद करने लगी। नवीन किसी तरह से उसे वहाँ से निकलकर ले आया। घर आकर रुचि खूब झगड़ी। अगले दिन मौका लगते ही उसने नवीन की मां की अलमीरा खोल उनके सारे गहने निकाल लायी। दो -चार दिन बाद जब नवीन की माँ को पता चला तब घर में हंगामा हुआ। रुचि से पूछा गया तो उसने लेने की बात स्वीकार ली। और यह भी कहा कि वह इसे वापस नहीं करेगी। नवीन ने जब उसे डांटते हुए लौटने को कहा तब वह तेजी से किचेन से चाकू लेकर नवीन के हाथ में घोंप दी। उसकी आक्रामकता को देखते हुए नवीन ने मां को पुलिस को फोन लगाने को कहा। यह सुनकर रुचि ने चीखते हुए कहा -“पुलिस बुलाओगे…अभी बताती हूँ तुमलोग को। तुम सब जाओगे हरासमेंट के केस में अंदर।” और उसने चाकू से अपने हाथ को जख्मी कर लिया।

यह देखकर नवीन और उसके पेरेंट्स डर गए। तब इस घटना को घर के भीतर ही रहने दिया गया। रुचि ससुराल में आतंक का पर्याय बन गयी थी। कुछ महीने के लिए घर आये बेटे की दशा देखकर मां रोती रहतीं। दूसरी तरफ नवीन अपने सामने मां की दुर्दशा देख तथा अपने पीछे माता-पिता की स्थिति की कल्पना कर दुखी हो उठता था। ये शादी गले की फांस बन गयी थी। तभी एक दिन रुचि ने अपने गर्भवती होने की बात बताई। सबको लगा कि शायद बच्चे के आने से उसके व्यवहार में परिवर्तन आए। समय पर उसने एक बिटिया को जन्म दिया। हॉस्पिटल से घर आते ही उसने सास से कहा-“मम्मी! आप पोती के आने की खुशी में यह बंगला मेरे नाम कर दीजिये।”




“बहू ये तो बहुत खुशी की बात है…हम तुम्हें जरूर कुछ गिफ्ट देंगे।”

“हमें तो ये बंगला ही चाहिये। देखती हूँ कैसे नहीं मिलता।”-बड़बड़ाते हुए अपने कमरे में चली गई।

कुछ दिनों बाद नवीन वापस अपनी नौकरी पर चला गया। रुचि और भी निडर हो गयी। एक रोज वह सास- ससुर के जरूरी सामान सुटकेस में भर- भरकर घर से बाहर रखने लगी। उस समय उसके ससुर जो दूसरे शहर में नौकरी करते थे, घर पर आये हुए थे। दोनों पति-पत्नी हक्के-बक्के से एक -दूसरे का मुंह देखने लगें। फिर रुचि ने उनदोनों को लगभग धकियाते हुए घर से बाहर निकाल दिया। उसके आक्रामक रवैया देखते हुए उन्होंने विरोध करना उचित नहीं समझा और वो मन मारकर अपना समान लादकर अपने एक सम्बन्धी के घर उसी शहर में पहुंचे। फिर बाद में उन्होंने एक फ्लैट रेंट पर लेकर वहां शिफ्ट हो गए। इस बीच रुचि ने नवीन और उसके घरवालों पर डाउरी और हरासमेंट का केस कर दिया। विडंबना ही थी कि सबको प्रताड़ित करने वाली रुचि ने खुद पर हरासमेंट का केस किया था। नवीन के लिए नौकरी और कोर्ट की हियरिंग पर उपस्थित होने में काफी मुश्किल होती। अपनी सुविधानुसार डेट आगे बढ़ाने के लिए उसे हजारों हजार खर्च करना पड़ता। नवीन को अबतक पता चल चुका था कि रुचि की पूर्व में भी कहीं शादी हो चुकी थी और वहीं उसके द्वारा ही रचे किसी हादसे की निशानी के तौर पर उसके बदन पर जलने के निशान थे।

     इस बीच सेटलमेंट के नाम पर रुचि नवीन से एक फ्लैट खरीदवा चुकी थी। उसकी मांग बढ़ती जा रही थी। कुछ महीनों बाद उसने 40 लाख रुपये बेटी के नाम से फिक्स डिपॉजिट कराने को कहा। तब जाकर वह सेटलमेंट को राजी होती। लेकिन यह कहना मुश्किल था कि यह उसकी अंतिम मांग होती। वह बड़ी मक्कारी से अपनी कही हुई बात से पलट जाती थी। नवीन किसी भी कीमत पर उससे छुटकारा पाना चाहता था। आज केस चलते चार साल हो गए लेकिन न जाने नवीन को कब मुक्ति मिलेगी?

#5वां_जन्मोत्सव 

–डॉ उर्मिला शर्मा

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