मतलबी रिश्ते – डाॅ संजु झा: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सुबह-सुबह विपिन जी की मृत्यु का समाचार  मिला।विपिनजी की मृत्यु कोई आश्चर्यजनक बात नहीं थी।मृत्यु तो शाश्वत सत्य है,परन्तु जिन परिस्थितियों में उनकी मौत हुई, उसने सोचने पर मजबूर कर दिया कि अब माता-पिता के साथ बच्चों के भी रिश्ते मतलबी भर रह गए हैं!

विपिन जी को दो बेटियाँ और एक बेटा था।दो बेटियों के बाद  उन्हें बेटा आकाश पैदा हुआ था,इस कारण उनकी पत्नी नयना जी को बेटे से कुछ अत्यधिक ही मोह था।नयना जी को बेटियों की पढ़ाई में कोई  दिलचस्पी नहीं थी।उनकी धारणा थी कि  बेटियों की शादी में खर्च  करनी ही है,तो पढ़ाई में ज्यादा क्यों पैसा बर्बाद किया जाएँ! विपिन जी    पत्नी के सामने  बेबस नजर आते। सचमुच दसवीं पास करते ही उन्होंने दोनों बेटियों की शादी कर दी।बेटियों  ने भी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं होने के कारण अपनी ससुराल और परिस्थितियों के साथ जिन्दगी से समझौता कर ली  थी।उन्हें भी अपने माता-पिता से कोई खास मतलब नहीं था।

अब विपिनजी  को बेटे की चिन्ता थी।बेटे आकाश को पढ़ने-लिखने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी।पर उनकी पत्नी नयना जी बेटे को लेकर कभी  चिन्तित नहीं होती थीं।जब विपिन जी बेटे  की पढ़ाई लेकर गुस्सा करते तो उनकी पत्नी पलटकर जबाव देते हुए कहतीं -” बेटा और कितना पढ़ेगा?ग्रेजुएशन तो कर ही रहा है न!

विपिन जी पत्नी को समझाते हुए कहते -” नयना!तुम समझती नहीं हो कि किसी तरह ग्रेजुएशन करने से बेटे को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी।”

नयना जी भला पति से कहाँ दबनेवाली थीं!प्रत्युत्तर में उन्होंने कहा -” हमारा तो एक ही बेटा है।कोई भी काम कर लेगा।कुछ खेती-बाड़ी है और आपकी तो नौकरी भी है!”

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आखिर  हुआ भी वही जो नयना जी और आकाश चाहते थे।आकाश ने कहा -” पिताजी!मुझे दिल्ली जाकर बिजनेस करना है,कुछ पैसे चाहिए!”

माँ-बेटे के सामने विपिन जी की कुछ चलती नहीं थी।बेमन से उन्होंने गाँव के खेत बेचकर बेटे को पैसे दे दिएँ।

कुछ दिनों बाद  बेटे आकाश ने फिर कहा -” माँ!अभी बिजनेस जमने में समय लगेगा।मुझे दिल्ली में अपना घर चाहिए, जिससे मैं मकान-मालिक के पचड़ों से बचूँगा,तभी बिजनेस पर ध्यान दे सकूँगा।”

अभी-अभी विपिन जी नौकरी से रिटायर होकर अपने लिए एक छोटा-सा घर लेने की सोच रहे थे,परन्तु पत्नी की जिद्द के आगे बेबस होकर सारा पैसा बेटे को घर खरीदने के लिए दे दिया।

एक दिन पत्नी पर झल्लाते हुए  विपिन जी ने कहा -” सारे पैसे तो तुमने बेटे को दिलवा दी,अब छोटी-सी पेंशन में हमारा गुजारा कैसे होगा?”

नयना जी-” हमें ज्यादा चिन्ता करने की जरूरत नहीं है।हमलोग बेटे के पास दिल्ली चले जाऐंगे।सब मिलकर रहेंगे,तो अच्छे से गुजारा हो जाएगा।”

कुछ समय बाद विपिन जी पति-पत्नी को पता चला कि बेटे आकाश ने दिल्ली में चुपचाप शादी कर ली है।माता-पिता को इसकी भनक तक नहीं लगने दी।अब उसने माता-पिता पिता  से फोन पर भी बात करना  बन्द कर दिया था। विपिन जी तो इस बात को चुपचाप सहन कर गए,परन्तु  नयना जी को गहरा सदमा लगा।नयना जी मन-ही-मन सोचती -“जिस बेटे के कारण मैंने अपनी बेटियों की उपेक्षा की,आज वही बेटा मतलबी बनकर इतना बड़ा सदमा दे गया!”

नयना जी अब किसी से कुछ नहीं कहतीं,परन्तु मन-ही-मन घुलने लगीं।नयना जी बेटे की धूर्ततापूर्ण आचरण को बर्दाश्त नहीं कर पाईं और एक दिन चिर -निद्रा में  सदा के लिए लीन हो गईं।

अब विपिन जी के सामने  75 वर्ष की उम्र  में  अकेले रहने की समस्या आ खड़ी हुई। 

बेटे आकाश ने कहा -” पिताजी!आप  दिल्ली चलिए। वहाँ हमलोगों के साथ आराम से रहेंगे!”

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विपिन जी के पास  बेटे के पास आने के सिवा दूसरा कोई  और विकल्प भी नहीं था।वे बेटा-बहू के पास दिल्ली आ गए। 

कुछ दिन तो उनका समय पोते के साथ  अच्छा बीतने लगा,परन्तु समय के साथ  पोता भी स्कूल जाने लगा।बहू भी प्राइवेट स्कूल जाने लगी।बेटा-बहू ,पोते के जाने के बाद  उनका समय काटे नहीं कटता था।उसपर से बहू का उपेक्षित व्यवहार  उनके मर्मस्थल को बेध जाता। सभी के चले जाने के बाद  विपिन जी रसोई  में कभी ब्रेड सेंककर खाते,कभी मैगी बनाकर खाते।वैसे उन्हें ये चीजें खाने की आदत नहीं थी,फिर भी मन को दिलासा देते हुए सोचते -” सुबह-सुबह बहू क्या सब कर पाएगी?”

बस अपने मुँह पर ताला लगाकर परिस्थितियों से समझौता करने की कोशिश करते।पेंशन आने पर  कोई-न-कोई बहाना बनाकर बेटे-बहू ले लेते।फिर भी विपिन जी खुद को तसल्ली देते -” मुझे पैसों की जरूरत ही क्या है?बस दो टाइम दाल रोटी मिल जाती है!और मुझे क्या चाहिए?”

बहू न तो  विपिन जी का ख्याल रखती ,न ही उनका आदर करती।फिर भी विपिन जी बेटा और पोते से बातचीत कर  अपना दिल बहला लेते।धीरे-धीरे बहू ने अपने बेटे को उनके पास जाने से मना कर दिया।अब काम से लौटने पर केवल उनका बेटा आकाश ही उनके कमरे में उनसे हाल-चाल पूछने आता।कुछ दिनों बाद  जैसे ही उनका बेटा  घर आने के बाद  उनके पास जाता,वैसे ही बहू जोर से चिल्लाकर कहती-” आते के साथ  ही पिता के साथ  उनकी रामायण सुनने बैठ जाते हो,आकर बेटे का होमवर्क देखा करो।”

पत्नी से डरकर अब बेटा आकाश भी बाहर से ही हाल-चाल पूछकर निकल जाता।कमरे में अकेले बैठे-बैठे विपिन जी अपने भाग्य पर आँसू बहाते।एक दिन तो उनकी बहू ने हद पार कर दी।उनके दो दोस्त  उनसे मिलने दूर से आएँ थे।उन्होंने बहू से चाय-नाश्ते के लिए कहा।बहू ने उनलोगों के सामने ही जोर से चिल्लाकर  कहा -“पिताजी!मजलिस  लगाने का इतना ही शौक है,तो पार्क में जाकर बैठा कीजिए। आपके पोते की परीक्षा है।मैंआपके  दोस्तों के लिए चाय-नाश्ता बनाने के लिए  नहीं बैठी हूँ।”

उनके दोस्त  उनकी मजबूरी समझकर चुपचाप उठकर चले गए। विपिन जी को आज दोस्तों के सामने अपमान  के जहर के घूंट पीने पड़े।आज उनका अन्तर्मन बार-बार व्यथित होकर कराह उठता।बेटा के आने पर उन्होंने उसे अपने मन की व्यथा कह सुनाई। बेटा आकाश पत्नी को कुछ कहने के बजाय   उल्टे उन्हें ही सुनाते हुए कहा -“सही तो कहा है।पार्क में ही बैठकर दोस्तों से मिल लिया कीजिए। दिनभर घर में क्या बैठे रहते हैं!”

बेटे की बातों से आहत विपिन जी मन-ही-मन सोच रहे हैं -“मैंने घर खरीदने के लिए पैसे दिए, रजिस्ट्री बेटे ने अपने नाम करा लिया।अब मेरे एक रुम में रहने से भी इन्हें दिक्कत हो रही है!”

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आज उनका मन अपमान से बार-बार  अशांत और व्यथित हो रहा था।औरतें तो अपने दिल की व्यथा किसी से  बाँटकर शांत हो जाती हैं,परन्तु पुरुष अपने दिल का दर्द, दिल में ही रखकर घुटते

 रहते हैं।आज विपिन जी की घुटन की पराकाष्ठा चरम सीमा पर थी।बदहवासी की हालत में उन्होंने अपना फोन घर में ही छोड़ दिया और बाहर निकल गए। 

रात में विपिन जी के घर न लौटने पर बेटे आकाश ने पुलिस में रिपोर्ट  लिखवाई। पन्द्रह दिनों बाद  बगल के शहर के पुलिस स्टेशन से उनकी  ट्रेन से कटी लाश ,कपड़े और चश्मे से उनकी शिनाख्त हुई। विपिन जी जिस दिन घर से निकले थे ,उसी दिन बेटे-बहू के मतलबी रिश्तों से आहत होकर ट्रेन के नीचे आकर अपनी जान दे दी थी।

अब दिखावे के लिए बेटे-बहू क्रिया-कर्म कर रहे थे।गाँव में तो लोग बोल भी देते -” आकाश!जिन्दा में तो तुमने खूब पिता की आत्मा को शांति दी,अब झूठ-मूठ क्रिया-कर्म का दिखावा क्यों कर रहे हो?”

परन्तु सोसायटी में उनके दोस्त  उनके बेटे की मतलबी रिश्ते को अच्छे से समझ रहें थे,पर खामोशी से सोच रहें हैं कि क्या पता कल मेरे घर की भी यही कहानी हो!नम आँखों से उन्हें श्रद्धांजलि देकर सभी बुजुर्ग अपने-अपने फ्लैट में चले जाते हैं।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

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