Moral Stories in Hindi : बचपन की दोस्ती ताउम्र के लिए होती हैं ऐसा मैंने बहुत सुना था । कर्ण और मैं रमन हम दोनों बचपन से एक साथ पढ़े और बड़े हुए । कहने को करण अमीर ख़ानदान का बेटा था और मैं एक मामूली से टैक्सी ड्राइवर का बेटा था । लेकिन मैं हमेशा से गरीब नहीं था । पहले मेरे पापा एक छोटे से व्यापारी थे ।
लेकिन व्यवसाय में नुक्सान होने के कारण आज हम गरीबी में जी रहें है । लेकिन आज भी हम लोग खुश है क्योंकि कम है पर सुकून है । आज चाहें हम दोनों के स्टेट्स में कितना ही फ़र्क हो , पर हमारी दोस्ती में आज भी कोई फर्क नहीं हैं । जब हम कॉलेज में पहुँचे तो कर्ण ने मेरी बहुत मदद की ना सिर्फ पैसों से बल्कि अपने कपड़े भी मुझें दिए । ताकि मैं अपने आप को असहाय महसूस ना करूँ ।
कॉलेज में हमारे बहुत से दोस्त बने जिनमे लड़कियाँ भी थी । मैं हमेशा लड़कियों से बात करने में हिचकिचाता था , इसी बात पे सब मेरा मज़ाक़ बनाते थे । पढ़ाई के साथ-साथ हमारी दोस्ती को भी नए आयाम मिलें । हमारे ही ग्रुप में एक लड़की प्रतीक्षा थी जो मुझें कब पसंद आने लगी पता ही नहीं चला । प्रतीक्षा भी मुझ से घुल मिल गई ।
जब भी उसे कोई काम होता तो वो मुझे बोल देती । मैं भी प्यार का मारा फट से सब कर देता । एक दिन कर्ण ने मुझें समझाया कि अच्छा है तुम उसे पसंद करते हो पर इतने भी अंधे ना बनों कि कोई तुम्हारा फायदा उठा जाए । कर्ण का इशारा प्रतीक्षा की तरफ था । कोई बात नहीं अपने दोस्तों के काम करने में कैसी शर्म ।
कॉलेज में सब को लगता था कि मैं एक अमीर परिवार से हूँ । कोई ये नहीं जानता था कि मैं यहाँ अपनी क़ाबिलियत के बल पे पहुँचा हूँ ।मैं सबको अपना सच बताना चाहता था , पर उनकी शान शौक़त के आगे हमेशा कमजोर बन अपना सच छुपा जाता था । जब कर्ण का जन्मदिन आया तो उसनें कॉलेज में सब दोस्तों को पार्टी दी ।
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जहां सब अपने में ही मग्न थे ,मैंने भी मौक़ा पाते ही प्रतीक्षा से अपने दिल की बात कह दी । ये सच सुन वो मुस्कुराई और शरमा के चली गई । कुछ दिनों बाद उसने मुझ से बात की और कहा कि वो भी उसे पसंद करती हैं । धीरें धीरें हम दोनों के बीच की दूरिया खत्म हो गई ।
एक दिन हम सब दोस्त कैंटीन में बैठें चाय पी रहें थे । तभीं वो मेरे पास आती हैं और मुझसें बोली कि उसे कुछ पैसों की जरूरत है । क्या तुम मुझें उधार दे सकते हो ?? उसकी घबराई आँखों को देख मैं सब भूल गया और मेरे पास जो भी जमा पूँजी थी मैंने उसे दे दी । अगले दिन जब वो मुझें मिली तो उसने मेरा धन्यवाद किया और कहने लगी मैं तुम्हारे पैसें धीरें धीरें चुका दूँगी । मैंने उसे कहा कोई बात नहीं इतनी कोई जल्दी नहीं है ,जब मन हो तब दे देना । नहीं रमन , तुम्हारा बहुत शुक्रिया ! तुमने मेरी माँ की जान बचा ली ।
क्या हुआ था तुम्हारी आंटी को ??
उनका एक छोटा सा एक्सीडेंट हो गया था । अब वो ठीक है । तुम तो जानते हो ही कि हम तुम्हारी तरह अमीर नहीं हैं । मैं एक मध्यवर्गी परिवार से हूँ । पापा भी इस दुनिया में नहीं हैं तो थोड़ी दिक्कत हो जाती है ।
ये सब सुन मुझें शर्म आने लगी और बोला मैं अमीर नहीं हूँ । मैं भी तुम्हारी तरह एक छोटे से परिवार से हूँ ।
लेकिन रमन तुम्हें देख कर ! तुम्हारे पहनावे से तो ऐसा नहीं लगता ।
खा गई ना तुम भी धोखा ! ये सब तो कर्ण का दिया हुआ है !
ये सब जान प्रतीक्षा ख़ामोश हो गई और अपने दिमाग में ना जाने क्या सोचने लगी ।
रमन उसे झकझोरता हुआ ….. क्या हुआ प्रतीक्षा ?
कुछ नहीं ! अब मुझे घर जाना है देर हो रही है बोल वो चली गई ।
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खैर बात आयी गयीं हो गई और सब परीक्षा में व्यस्त हो गए । लेकिन इन कुछ दिनों में प्रतीक्षा का बर्ताव बहुत बदला बदला नज़र आने लगा । अब वो मुझसे कटी कटी रहने लगी । जब भी हम मिलते वो नजर झुकाए निकल जाती । मुझें लगा उसे थोड़ा समय देना चाहिए । एक दिन हम सब दोस्त बगीचे में बैठें हुए थे । तभी वो आयी और कर्ण को अपना काम बोल चली गई । मेरी तरफ देखा भी नहीं, ये सब देख मैं स्तब्ध रह गया । आख़िर मुझसें ऐसी क्या गलती हो गई जो यें मुझें नजरअंदाज कर चली गई । मेरे अंदर एक आग सी सुलग गयीं और मैं भाग के उसके पीछे गया और उसका हाथ पकड़ कर बोला -“मुझसें ऐसा क्या हो गया ? जो तुम मेरे साथ ऐसा कर रही हों “।
कुछ नहीं मुझें जाने दो …..
क्यों आज मैं ग़रीब हूँ यें जान तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा । जबतक इस बात से अनजान थी तब तक मुझसे सारे काम कराती थी । आज मतलब नहीं है तो दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंकोगी ।
मुझें छोड़ो नहीं तो मैं शोर मचा दूँगी …..
नहीं छोड़ता , बोलो क्या करोगी ? …..
तभी प्रतीक्षा जोर-जोर से चिल्लाने लगी छोड़ो मेरा हाथ !
उसकी चीख सुन एक अध्यापक और कुछ बच्चे वहाँ आ गए…… क्या हुआ ?
सर ! रमन मुझे तंग कर रहा है ।
छोड़ो रमन उसका हाथ तुम ये सब क्या कर रहे हों ?
सर ऐसा कुछ नहीं है मैं तो इससे बात करना चाहता हूँ ।
उसे खूब डाँटा गया और थोड़ी देर बाद एक चेतावनी दे जाने दिया गया । कुछ दिनो बाद प्रतीक्षा कर्ण के साथ दिखी दोनो मुझे देख पलट के चले गए । ये सब देख मैं कर्ण के पास गया और बोला तुम तो जानते हो वो कितनी मतलबी लड़की है । मुझें तो तुम मना करते थे और आज तुम ही उसके साथ घूम रहें हो ।
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रमन जब तुमनें मेरी नहीं सुनी , तो मैं तुम्हारी क्यों सुनु ! वो मुझे अच्छी लगती हैं और उसे जो स्टेट्स चाहिए वो मैं दे सकता हूँ । मैंने तुम्हें भी तो कितना कुछ दिया हैं । जब तो तुमने कुछ नहीं कहा , तो फिर आज क्यों ?
ये सब सुन और देख मैं इतना समझ गया हूँ ….
इस स्वार्थी समाज में
अपने हो जाते पराए हैं
मोह माया में फँसे हुए
बस चुभाते रिश्तों के खंजर हैं ।
#मतलबी रिश्ते
स्वरचित रचना
स्नेह ज्योति