मतलबी रिश्तों की कहानी- पूजा गीत : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : हाँ। जानकी नाम था उसका। १२ साल की अबोध बालिका, पर बचपना कहीं नहीं था। बस जब कभी मुझसे गोल गप्पे खाने की जिद्द करती तो बच्ची लगती थी। मैंने अपनी पहली नौकरी एक एनजीओ से शुरू की। एमएससी का प्रोजेक्ट लगभग खत्म होने को था इसलिए नौकरी करने की सोची।

जबसे होश संभाला है माँ को लोगों की सेवा करते देखा है। एक बार तो अपने विद्यालय में काम करने वाली महिला को अपनी चमड़े की चप्पल और कोट देकर खुद नंगे पांव और बिना कोट के आयीं। बस उनको ऐसे किसी की सेवा या सहायता करते देख मेरे मन में भी कुछ ऐसी इच्छाएं थीं। इसलिए जैसे ही एनजीओ से मुझे प्रस्ताव मिला मैंने स्वीकार कर लिया। काम था केस काउन्सलिंग और डॉक्यूमेंटेशन इन्चार्ज का।
वहां का माहौल काफी ख़ुशनुमा था। दीदी (जिनका एनजीओ था) के घर और आफिस दोनों जगह केवल औरतें और लड़कियां थीं।

उनमें से एक थी “जानकी”। मेरी हर बात पर खिलखिला कर हंसने वाली। इसीलिए उसने मेरा नाम रखा था “मस्तमौला दीदी”। जानकी के अलावा और भी बहुत-सी लड़कियां थीं। कुछ वहीं रहती थीं, कुछ नज़दीक ही अपने घर में।

असल में दीदी घरेलू महिला हिंसा, बाल यौन उत्पीड़न, युवा और समुदाय विकास जैसे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही थीं, खासकर घरेलू महिला हिंसा और बाल यौन उत्पीड़न। इसलिए लड़कियों और महिलाओं की ही उपस्थिति रहती थी वहाँ और लगभग सभी हिंसा का शिकार हुई थीं। प्रतिदिन २०-२५ लड़कियां और जानकी ऑफिस आती थीं और किसी-न-किसी काम में मेरा हाथ बँटा दिया करती थीं।
एक दिन अचानक दीदी ने मुझे २० फाइलें थमाई और अच्छे से नए डॉक्यूमेंट बनाने को बोला।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

फोन – अनु माथुर : Moral Stories in Hindi

शाम को जब सारे काम निबटा कर मैं फ़ाइल पढ़ने बैठी तो देखा हर फ़ाइल पर ऑफिस आने वाली किसी-न-किसी लड़की का नाम था। पर एक-एक कर जब सब फाइलें पढ़ीं तो जाना मैंने की ये सब बच्चियां मात्र हिंसा का नहीं बल्कि यौन हिंसा या बलात्कार का शिकार हुई थीं किसी अजनबी या किसी अपने द्वारा। ताज़्जुब और क्रोध का मिला-जुला ये भाव इसलिए भी था क्योंकि अपनों में चाचा, मामा, मौसा ही नहीं सगे भाई और पिता भी थे। छी:

अचानक जानकी की फ़ाइल देखते ही हृदय काँपा तो क्या उसके साथ भी! नहीं। काश! ऐसा कुछ उसके साथ न हुआ हो। परंतु मेरी प्रार्थना व्यर्थ गयी। उस बेचारी के साथ तो क्रूरता की पराकाष्ठा पार हो गयी थी। वो बच्ची मात्र ९ वर्ष की उम्र में अपनी सौतेली माता (कुमाता सटीक बैठता है) के हाथों अपने भाई (सौतेले मामा) को ५० रुपये में बेच दी गयी थी और आखिरी बार जिस आदमी के घर से उसको बचाया गया था उसको ३६वीं बार बेची गयी थी।

इस आदमी के साथ वो करीब ६ महीने रही और केवल ११ की उम्र में गर्भवती भी हो गयी थी। इस समय उसके गर्भ में ५ महीने का गर्भ था। कैसी विडंबना है न कि अपनी बेटी ताउम्र बच्ची ही रहती है चाहे बूढ़ी ही क्यों ना हो जाये परंतु कोई और बच्ची उपयोग और उपभोग की वस्तु!! ये सब पढ़कर उन सारे मासूमों के चेहरे मेरी आंखों के सामने घूमते रहे और उन सबके दर्द से आहत होकर रोते-रोते बड़ी देर बाद सो पाई।
सुबह ऑफिस में मेरा चेहरा उन फाइलों की कहानी बयां कर रहा था।

खैर, दीदी के कहेनुसार मैं डॉक्यूमेंटेशन में लग गयी पर जब भी उन बच्चियों को देखती मन प्रेम और करुणा से भर उठता। माँ कहती हैं कि व्यक्ति पर उसके नाम का असर पड़ता है तो क्या जानकी का यह जीवन उसके नाम की वजह से है!!

उसकी माँ ने यह नाम देवी सीता के नाम पर रखा होगा पर शायद ये नहीं समझ पायी होंगी की सीताजी को तो हर समय कष्ट ही सहना पड़ा था और अग्नि-परीक्षा जैसी कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ा था। इसलिए मुझे इस नाम से चिढ़ हो गयी थी और मैंने उसको जानकी कहना छोड़ दिया था। अब उसको मैं धप्पी कहने लगी थी।
मैं जब यहां नई-नई आयी थी तब उसको खुद में ही सिमटे हुए देखा था पर मेरा मज़ाकिया अंदाज़ और बात-बात में उसको चिढ़ाते रहना धीरे-धीरे उसको मेरे करीब ला रहा था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

थैंक यू बेटी! आइ लव यू एंड प्राउड ऑफ़ यू।  : Moral Stories in Hindi

अब वो मुझसे घुलमिल गयी थी और अपने बारे में बात करने लगी थी। एक दिन उसने बातों-बातों में बताया कि जिस लड़के, सूरज से वो गर्भवती हुई थी उसने उसके साथ कुछ गलत नहीं किया था।सूरज ने उसको खरीदा अवश्य था पर फिर उसको पत्नी की तरह रखने लगा था और दोनों एक-दूसरे को प्यार करने लगे थे।

उसने ये भी बताया कि अक्सर उसके लिए जलेबियाँ और गज़रे लाता था और सिनेमा दिखाने भी ले जाता था। फिर अचानक वो मेरा हाथ पकड़ के बोली, “जानती हो दीदी! जब मेरा दीपक (उसने अपने अजन्मे बच्चे का नाम रखा था) पैदा हो जाएगा तो उसको लेकर उसके बाप के पास चली जाऊँगी और फिर हम एक साथ रहेंगे।”

उस समय उसका चेहरा असीम सुख से चमक रहा था पर मैं कैसे बताती उस बेचारी को कि उसका सूरज अब उसके जीवन में कभी नहीं चमकेगा।
अब वो मुझको इतना मानने लगी थी कि उसकी हर बात में मैं होती, यहां तक कि अब उसको डॉक्टर को दिखाने की ज़िम्मेदारी भी मेरी थी। उस समय मेरी उम्र २१ की थी पर कद-काठी और चेहरे से छोटी लगती थी शायद इसलिए कई बार डॉक्टर झुंझला जातीं की कोई बड़ा क्यों नहीं आता! लेकिन फिर मुझे उसका ख्याल रखते देख संतुष्ट हो जाती थीं।
अब उसका ७वाँ महीना शुरू हो चुका था और डॉक्टर ने पूरा आराम करने के लिए कह दिया था। मेरा प्रोजेक्ट और जॉब का काम भी बहुत बढ़ चुका था इसलिए उसके पास जा भी कम पाती थी।

एक दिन ऑफिस में सब दीदी लोग किसी त्योहार की वजह से छुट्टी पर थे और पूरे ऑफिस की ज़िम्मेदारी मेरी थी। तभी पता चला कि धप्पी को लेबर पेन हुआ था और उसको सरकारी हॉस्पिटल लेकर गए हैं। मैं चाहकर भी जा नहीं पाई। थोड़ी देर बाद पता चला कि उसकी स्थिति ठीक नहीं है शायद आपरेशन करना पड़े। मैं बस मन-ही-मन प्रार्थना करती रही कि सब ठीक हो।
अगली सुबह ख़बर मिली कि आपरेशन तो हुआ पर बच्ची मृत पैदा हुई।

मेरे मन में बस यही चलता रहा कि ९ वर्ष की छोटी-सी आयु में बिक जाना, ११ की आयु में गर्भवती होना, १२ में बच्चा होना और एक पल में उसका भी चले जाना! आखिर ईश्वर ने उसकी किस्मत में क्या लिखा है? कौन-सी परीक्षा बाकी है बेचारी की? अब बस जो भी हो ये दुख देना बंद कर दो। थोड़ी खुशियां उसको भी तो मिलनी चाहिए!
हिम्मत तो नहीं हो रही थी पर फिर भी मैं उससे मिलने गयी। उसका चेहरा देखते ही कलेजा मानो मुंह को आ गया। पीला उदास चेहरा, धँसी आंखें और ढीले-ढाले गाउन में वो मृत प्रायः ही लग रही थी। मेरा स्पर्श पाकर वो धीरे से बोली, “अच्छा हुआ दीदी मर गयी। मरी का बाप तो पहले ही साथ छोड़ चुका है अब उस लड़की को मैं अकेले कैसे पालती?

और अगर कहीं मेरे जैसा कुछ उसके साथ हो जाता तो वैसे भी जीते जी मर जाती। चलो, तुम्हारा भगवान कुछ तो ठीक किया।” इतना कह कर वो दवाईयों के प्रभाव से सो गई। मात्र १२ वर्ष की आयु में इस अबोध ने सदियों का दर्द झेल लिया था। ईश्वर ने दर्द भी तो छप्पर फाड़ के दिया था। कुछ देर उसके पास बैठ कर मैं अपने कमरे में लौट तो आयी पर मन व्यथित था। मैं उसकी परेशानी महसूस तो नहीं पर समझ पा रही थी।
एक हफ्ते बाद मेरा फाइनल वाइवा था इसलिए घर वापस जाना था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

पापा आई लव यू – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

मैंने दीदी और बाकी सारे लोगों को अपने जाने के बारे में बताया था पर धप्पी को बताने से मना किया था। शायद वो और दुखी हो जाती। शरीर के घाव तो सब देख रहे थे, पर मन की पीड़ा कोई नहीं जान पा रहा था। मेरी हर बात पर दांत निकालने वाली लड़की अब फिर से अपनी शांत दुनिया में लौट गई थी। एक बार फिर उसको आघात लगा था, एक बार पुनः वो टूटी थी। इस बार ऐसा टूटी थी कि फिर कभी ना जुड़ पाएगी। अब वो शायद कोई सपना भी ना देखे।

आज मैं घर जा रही थी। जाने से पहले मैं धप्पी को देखना चाहती थी। वो करवट लिए सो रही थी। मेरे पास थोड़े से पैसे थे, कुछ कपड़े और मेरा फुलकारी का दुपट्टा जिसको सिर पे ओढ़कर वो खुद को बहुत सुन्दर समझ मुस्कुराती थी। मैंने चुपचाप सब कुछ उसके बिस्तर पर रखा और तेजी से निकल गयी। कुछ देर और रुकती तो शायद जा ना पाती।

रास्ते भर बहुतेरे प्रश्न मेरे हृदय को बेधते रहे। काश! सौतेली माँ ने अपनी बेटी समझ उसको बेचा ना होता! काश! हर मर्द ने उसके शरीर और आत्मा को छलनी ना किया होता! काश! दीदी उसका सही-सही रिहैबिलिटेशन करा पातीं! काश! उसका बच्चा जीवित होता! और काश! उसको अब केवल खुशियाँ मिलें। इसी चक्रव्यूह में मैं फँसती रही और घर लौट आयी। धीरे-धीरे समय और परिस्थितियों की व्यस्तता ने उसकी यादों को थोड़ा धूमिल कर दिया।

मुझे दिल्ली में नौकरी मिल गयी और मैं अपनी नई जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई। इसी बीच एक बार दिल्ली जाते समय ट्रेन में एक लड़की मिली। संयोग से वो अब उसी एनजीओ में काम कर रही थी। धप्पी के बारे में जानने की उत्सुकता हुई तो पूछ बैठी, ” वो है वहाँ? अब कैसी है?” पर, उसके जवाब ने मुझे जैसे बर्फ-सा ठंडा कर दिया। अब वो नहीं रही। इंफेक्शन की वजह से डिलीवरी के एक महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गयी थी।
शायद यही नियति थी उसकी! ठीक भी तो हुआ।

किसने उसके साथ सही रिश्ता निभाया? पिता, सौतेली माँ, सौतेला मामा, वो सारे अनजाने लोग, दीदी किसी ने तो उससे प्यार नहीं किया! किसी ने तो उसके बारे में नहीं सोचा! अच्छा है न इतने सारे झूठे, मतलबी रिश्तों से मुक्ति मिल गयी उसको।

उस समय मुझे ये दो पंक्तियाँ याद आ रही थीं-

मौत के आगोश में थक के जब सो जाता है कोई,

तब कहीं जा के थोड़ा सुकून पाता है कोई।’

रास्ते में एक मंदिर देख अनायास ही मेरे दोनों हाथ जुड़ गए थे और अंतर्मन प्रार्थना कर रहा था, हे प्रभु! उसकी आत्मा को शांति देना। हो सके तो उसको अगले जन्म में लड़की मत बनाना।

पूजा गीत

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!