Moral Stories in Hindi : आज रिटायरमेंट के दो वर्ष बाद नैना को इस बात का एहसास हो रहा था कि रिश्ते इतने मतलबी कैसे हो जाते हैं?। वह सोच रही थी कि वो क्यों ऐसी नहीं बन पायी। क्यों उसने केवल अपने आप से ही प्यार नहीं किया ,अपने आप के बारे में ही नहीं सोचा। पर वह ऐसा कर ही नहीं सकती थी।
वह तो सदा दूसरों के दुख दर्द के बारे में ही सोचती थी तथा उनकी मदद करती थी। बीते दिन याद कर उसकी आँखों में आँसू आ गए। जब उसके पापा की डेथ हुई थी वो ग्यारहवीं कक्षा में थी। उस समय वो कितने सपने देखा करती थी। वह बहुत पढ़ना चाहती थी।पापा कहते थे उसे डॉक्टर बनाएगें।
पर पापा बीमार पड़े और कुछ महीनों के बाद दुनिया से चल बसे। प्राइवेट नौकरी में थे जो बीमारी के कारण पहले ही जा चुकी थी। नैना तीन भाई बहिन में सबसे बड़ी थी अतः घर की सारी ज़िम्मेदारी उसी पर आ गयी थी। उसने अपनी तथा भाई बहन की फीस देने के लिए ट्यूशन देना शुरू कर दिया।
माँ तो पापा के जाने के बाद बिल्कुल चुप सी हो गयी थी। माँ के साथ घर का का काम काज भी नैना को देखना पड़ता था। फिर खुद की पढ़ाई तथा बहन भाई को पढ़ाना। वो थक कर चूर हो जाती। तीन साल बाद माँ ने भी एक दिन यह दुनिया छोड़ दी। नैना अब बी• ए कर रही थी। छोटा भाई दसवीं तथा बहन आठवीं में थी।
अब तो उसके सामने ज़िम्मेदारी का पहाड़ था। उसके सपने कब और कहाँ खो गए थे उसे पता ही नहीं चला।पर उसने हिम्मत नहीं हारी। बी•ए कर के उसने बैंक की परीक्षा पास कर ली और उसकी एक अच्छी नौकरी हो गयी। अब उसका सारा ध्यान भाई बहन को अच्छी शिक्षा दिलाने पर था। अपने बारे में सोचना उसने छोड़ दिया था।
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अब उसके सारे सपने भाई बहन के लिए थे। दोनों का अच्छे कॉलेज में एडमिशन कराया। लोग उससे कहते कि नैना तुम अपना विवाह कर लो पर वो साफ़ इनकार कर देती। उसके लिए अच्छे अच्छे घरों से योग्य लड़कों के रिश्ते आये पर उसको किसी में रुचि नहीं थी। उसने अपनी भावनाओं को अपने अंदर ही कहीं दबा दिया था।
उसके त्याग और मेहनत रंग लाये। भाई इंजीनियर बन गया उसको अपनी एक सहपाठी पसंद आ गयी और नौकरी होते ही उसने अपनी शादी कर ली। बहन भी शिक्षा पूरी कर एक टीचर बन गयी। चार , छ: वर्ष बाद बहन के लिए अच्छा रिश्ता देख कर नैना ने उसको भी ब्याह दिया। दोनों बहन भाई अपने जीवन परिवार में मगन थे।
पर यह सब करते करते नैना की शादी की उम्र निकल गयी थी।उसकी सहेलियों के बच्चे बड़े हो गए थे। नैना अपनी नौकरी में ही व्यस्त थी। कभी कभी बहन भाई अपने परिवार के साथ मिलने आते तो नैना उनको मँहगे – मँहगे उपहार दे कर विदा करती। रिटायरमेंट के बाद अचानक नैना की आँखों में कोई बीमारी हो गयी।
उसको धुँधला दिखने लगा जिसके कारण उसे अब पूरी तरह घर पर ही रहना पड़ता।अब वह घर में अकेली रह रही थी। भाई बहन और उनके बच्चों के पास अब नैना के लिए समय नहीं था। उनको बस इतनी चिंता थी कि नैना अपने बाद अपना घर और जमा पूँजी किसको देगी।
नैना का दिल करता था कि वह लोग कभी उसके पास आ कर रुकें या कभी उसे अपने घर ले कर जाएं। पर उन सबके पास नैना के लिए कोई समय नहीं था। जब कभी आते तो यह कहने के लिए कि दीदी अपनी वसीयत लिख दो। जिंदगी का क्या भरोसा? तुम्हारे बाद तुम्हारी संपत्ति का क्या होगा? इसका फैसला अभी से कर दो। नैना सोचती “कितने मतलबी हो गए हैं यह सब।”ऐसा कहना और सोचना इनकी मजबूरी है या स्वार्थीपन।
लेखिका: महजबीं