मतभेद जरूर हैं पर मनभेद नही – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

रीना और रमेश की अरेंज कम लव मैरिज थी। दोनो एक ही कंपनी में साथ काम करते थे , एक ही जाति बिरादरी से थे, एक दूसरे को पसंद करते थे तो घर वालों की सहमति से दोनो की शादी बड़े धूमधाम से संपन्न हो गई । 

शादी के एक साल बाद रीना को बेटा भी हो गया तो सब कुछ अच्छे से चल रहा था। सब लोग खुश थे।उसका बेटा निमिष भी अब 3 साल का हो चुका था और रीना का अपने बेटे के प्रति कुछ ज्यादा ही मोह था।

रीना वैसे तो पढ़ी लिखी समझदार लड़की थी, अपने सास ससुर कुसुम जी और नरेश जी का मान सम्मान भी करती थी बस एक कमी थी उसमे या कह लो उसका नेचर ऐसा था कि उसको किसी का रोकना टोकना बिलकुल पसंद नही था। और जब से वो मां बनी तब से तो उसको किसी का भी अपने बेटे को टोकना ,रोकना सुहाता ही नहीं था।यदि कभी कभार सासू मां अपने पोते को कुछ अच्छा सिखाती या समझाती तो भी उसे लगता कोई उसके अलावा निमिष से कुछ न बोले ।उसको लगता कि सब उसे ही या उसके बेटे को भाषण देते रहते हैं, और उसका मूड खराब हो जाता , फिर न तो वो कोई काम अच्छे से करती ना ही किसी से बात। 

उसकी सासू मां को उसका ये व्यवहार समझ नही आता कि अचानक से उसको हो क्या जाता है। उसने रमेश से भी इस बारे में बात करना चाही पर फिर सोच के रह जाती कि बहु ये न सोचे कि मैं अपने बेटे के कान भर रही हूं बहु के खिलाफ ….तो उसने बात को बढ़ावा देना उचित न समझा।

पर अब ये रोज़ की बात हो गई… सास बहू के मतभेद अब बढ़ने लगे थे और रीना को कौनसी बात कब बुरी लग जाती पता नही चलता और घर का माहौल खराब हो जाता। सासू मां ने रीना से कई बार पूछना भी चाहा पर वो बात को टाल जाती ये कहकर कि आप नही समझोगे

उसकी बातों से लग रहा था कि उसके मन में कुछ और ही चल रहा है। 

और एक रात जब रीना और रमेश अपने कमरे में बात कर रहे थे तो कुसुम जी ने गलती से उनकी बात सुन ली _रीना बोल रही थी” सुनो रमेश मां जी का मुझे और निमिष को टोकना बिलकुल पसंद नही है । आए दिन मेरे बेटे को किसी न किसी बात पे भाषण देती रहती है, ऐसा कर वैसा मत कर

 ये खा वो मत खा और वो रोता हुआ मेरे पास आकर शिकायत करता है। मैं मां जी को कुछ बोलती हूं तो वो बात का बतंगड़ बना देती हैं 

मुझे नही रहना अब उनके साथ, मेरे पापा ने जो घर मेरे नाम किया है , हम लोग वहा शिफ्ट हो जाते हैं। तुम्हारे मां बाप यहां मजे से रहेंगे, और हम वहां।”

ये क्या बोल रही हो रीना, “वो मेरी मां है उनको ऐसे कैसे छोड़ सकता हूं मैं।” और मां ने कुछ कह भी दिया तो कोई बात नही 

वो बड़ी हैं,  हमसे ज्यादा समझदार हैं कुछ अच्छा ही बताती हैं ना वो तो रमेश थोड़ा भावुक होते हुए  बोला। 

” तो मुझे छोड़ दो फिर, रहना अपने मां बाप के साथ ” रीना गुस्से में बोली।

ये क्या बकवास है रीना, कुछ भी बोल रही हो, कुछ सोचो तो ऐसा कैसे हो सकता है , मैं तुम दोनों के बिना नही रह सकता, निमिष में तो मेरी जान बसती है। 

हां तो सोच लो फैसला तुम्हारा है, मैं कल मां जी से बात कर लूंगी। 

बाहर कुसुम जी ये सब सुनकर अवाक हो गई, उनका शरीर लगभग सुन्न सा हो गया , आंखो से आंसू रुकने का नाम नही ले रहे थे , लड़खड़ाते कदमों से अपने कमरे में गई और फूट फूट कर रो पड़ी , उनको ऐसा देख कर नरेश जी को घबराहट होने लगी। सबसे पहले तुम पानी पियो कुसुम और बताओ क्या हुआ, तुम्हे ऐसे देख कर मेरी सांसे उखड़ी जा रही है , नरेश जी चिंतित होते हुए बोले।

कुसुम ने पूरी कहानी कह सुनाई। बुरा तो उनको भी बहुत लगा पर बहु के जिद्दी स्वभाव के आगे कर  भी क्या  सकते थे।

अगली सुबह रीना ने अपने मन की बात सबको बता दी पर कुसुम जी बोली 

बहु कौनसे घर में सास बहू में मतभेद नहीं होते पर इसका मतलब ये तो नही तुम घर छोड़कर चली जाओ। तुम बच्चे ही तो हमारे बुढ़ापा का सहारा हो , कैसे रहेंगे हम तुम सब के बिना और कहते कहते कुसुम जी फफक कर रो पड़ी

पर रीना ने तो जैसे फैसला कर लिया था अलग घर बसाने का तो वो शाम को निमिष को साथ लेकर अपने घर की ओर निकल पड़ी।( ये घर उसके पापा ने अपने रिटायरमेंट पर रीना के नाम किया और उसे गिफ्ट किया । रीना अपने माता पिता की इकलौती औलाद थी) 

रमेश ने मनाने की बहुत कोशिश की पर कोई बात नही बनी। कुसुम और नरेश जी ने रमेश को भी लाख मना करने के बावजूद भी भेज दिया यह कह कर कि अभी तो रीना गुस्से में गई है पर उसे तुम्हारी जरूरत है,और कोई बात नही पास ही तो है घर आते जाते मिलते रहना और फिर फ़ोन तो है ही , तुम चिंता मत करो बेटा …बहू के पास जाओ। 

रमेश के जाने के बाद दोनो के आंखो से अश्रु धारा बहने लगी

उधर रीना आज बड़ी खुश थी कि अब मैं बिना रोक टोक के रहूंगी।

पर कुछ दिनों बाद ….

निमिष को तेज़ बुखार हो गया और उसको हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा।रमेश ही हॉस्पिटल में था और रीना घर पर, क्युकी घर को किसके भरोसे छोड़ती। जब तक सास ससुर के साथ थी घर की चिंता किए बिना दिन रात घूमती थी पर यहां तो घर को सम्हालने वाला भी कोई नही था। अब उसे अपने सास ससुर की कमी महसूस होने लगी

क्योंकि जब भी निमिष बीमार पड़ता सास हमेशा देसी नुस्खे ही अपनाती और निमिष भी तुरंत ठीक हो जाता। इतने छोटे बच्चे को कभी हॉस्पिटल नही ले जाना पड़ा

 पूरी रात उसको निमिष की याद आती रही और बार बार यही ख्याल आया कि” मैं अपने इतने से बेटे के बिना एक दिन भी नही रह सकती और मां जी ने तो रमेश को इतना बड़ा किया तो उनका रमेश के बिना क्या हाल हो रहा होगा….. ये अच्छा नही किया मैने एक मां को उसके बेटे से अलग करके” हां हमारे बीच मतभेद ज़रूर थे पर मनभेद तो कभी नहीं हुए

मां ने हमेशा मुझे बेटी जैसा प्यार दिया और मैं पागल बेटे के मोह में अंधी हो चली थी और कितनी बड़ी गलती कर बैठी

                                        उसने अचानक ही एक फैसला लिया और सुबह होते ही तुरंत अपने सास ससुर के पास गई और अपने किए के लिए माफ़ी मांगी, उन दोनो ने जैसे ही उसे देखा खुशी से फूले नहीं समाए और कुसुम जी ने तो उसको गले ही लगा लिया क्युकी वो तो कभी उससे नाराज थे ही नही। मतभेद, मनभेद में बदलते इससे पहले रीना घर वापस आ गई और अपनी गलती समझ गई इससे बेहतर और क्या हो सकता था।

              वो तीनो अब हॉस्पिटल गए । रमेश उनको ऐसे देखकर चौंक गया फिर जब कुसुम जी ने पूरी बात बताई तो वो रीना के पास जाकर बोला कि उसका ये अचानक लिया गया फैसला हम सब के लिए अपार खुशियां लाया है मैं बहुत खुश हूं रीना

अब हम हमेशा साथ रहेंगे , रीना ने रमेश को ये वचन दिया और रमेश ने रीना को अपने गले लगा लिया।

दोस्तों मतभेद किसके बीच नही होते

पति _पत्नी, भाई _बहन, माता_ पिता , रिश्तेदार 

पर इसका मतलब रिश्ता खत्म करना नही होता , ना ही रिश्तों में दूरी बढ़ाना

मतभेद होने लगे या समस्या उत्पन्न होने लगे तो समाधान ढूंढना आवश्यक है ना कि मतभेद को मनभेद में बदलने के लिए प्रयासरत होना।

आपकी क्या राय है ? क्या आप सहमत है? 

मुझे जरूर बताइए और मेरा उत्साहवर्धन करना ना भूलें

निशा जैन

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