मतभेद, – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

एक सप्ताह के लिए ऑफिस के काम से अपने शहर में अर्थात मायके जाने का मौका मिला है.. मां के साथ कुछ खूबसूरत सकूं भरे पल बीतेंगे सोच कर कितना अच्छा लग रहा है…   

                 जानी पहचानी सी सड़क और आड़ी तिरछी गलियों से होकर पहुंच हीं गई अपनी मां के पास…शुभाआ मां गले से लग गई.. मां थोड़ी कमजोर लग रही है.. पापा गरम गरम जलेबियां मूंग दाल की कचौरी और आलू चने की सब्जी मनोहर हलवाई के यहां से लेकर आ रहे हैं मां ने हुलसकर कहा… दो बच्चों की मां शुभा आज खुद बच्ची बन गई थी..

          नाश्ता कर मां से बात करते करते सो गई.. कल से ऑफिस का काम शुरू हो जाएगा..

                 बड़ी अच्छी और गहरी नींद से जागने के बाद मां के साथ गप्पें मारने के लिए टेरिस पर चाय लेकर आ गई…

                मैने मां से सचिन भैया भाभी और बच्चों की चर्चा छेड़ दी… मां जैसे भरी हुई बैठी थी.. फट पड़ी..

                     सचिन अब पहले जैसा कहां रहा शुभा! पहले हर त्योहार में आ जाता था घर में रौनक हो जाती थी पर अब तो साल बीत जाते हैं देखे हुए..

                           पिछली बार हमदोनों चेन्नई गए थे  ये सोचकर बच्चों बहु और सचिन के साथ खूब मजे करेंगे पर… सचिन को शनिवार और रविवार को छुट्टी मिलती तो आराम करता या घर के छोटे मोटे काम करता.. कभी ओला बुक कर बहु के साथ हमे कहीं घूमने भेज देता.. ऑफिस से आता तो दस मिनट हमारे साथ बैठता फिर कमरे में चला जाता..

               बच्चे मोबाईल में व्यस्त रहते टोकने पर कहते होमवर्क इसी पर आता है.. हम पढ़ाई कर रहे हैं.. बहु भी पास के एक स्कूल में पढ़ाने जाने लगी थी..

                         दोपहर में हॉटकेस में रखा खाना गले से नही उतरता था.. तुझे याद है शुभा तेरे दादा जी जब खाने बैठते थे तब एक एक फुल्का गरम गरम उनकी थाली में डालती थी.., जिस समय जो फरमाइश करते मैं बनाती थी.. तेरी दादी के आंख के इशारे से मैं समझ जाती थी उन्हे क्या चाहिए.. और मेरी बहु… तुम और सचिन अपने दादा दादी के साथ हीं ज्यादा समय बिताते थे..

                            एक महीना के लिए गए थें बेटा बहु के पास पंद्रह दिन में हीं वापस आ गए.. सचिन ने बहुत रोकना चाहा हम रुके हीं नहीं… सोच के गए थे सचिन खूब घुमाएगा पर दो तीन जगह घुमाकर बहु के जिम्मे लगा दिया… मां रोने लगी.. कितना कष्ट सह कर मां बच्चों को जनम देती है और परवरिश करती है

उसके एक कष्ट पर कराह उठती है पर बच्चे कहां महसूस करते हैं.. मां बहुत दुःखी थी.. मुझे इनलोगों के बीच का #मतभेद #स्पष्ट नजर आ रहा था… अगर ये #मतभेद #मनभेद में बदल गया तो बहुत मुश्किल हो जाएगी…. 

एक ग्लास पानी लाकर मां को दिया और आसूं पोंछा… मां बच्चों के प्यार में कोई कमी नहीं आई है.. प्राइवेट नौकरी में इतना काम होता है की शारीरिक और मानसिक रूप से इंसान इतना थक जाता है की घूमने फिरने से ज्यादा थोड़ा देर सो जाएं या आराम कर लें ऐसी इच्छा होती है.. बचा हुआ काम रात में लैपटॉप पर करना पड़ता है..

सचिन भैया की भी यही स्थिति है.. बड़े शहर के खर्चे और बड़े होते बच्चों की पढ़ाई स्टैंडर्ड को मेंटेन रखने के लिए पति पत्नी दोनो का कमाना आज के दौर में जरूरी हो गया है.. इतनी ज्यादा छुट्टियां भी कहां मिलती है जो हर त्योहार में भैया सपरिवार यहां आएं.. आने जाने में खर्चे भी तो होते हैं.. मां अपने देखने का नजरिया थोड़ा सा बदल दो तुम्हारे हीं बच्चे हैं

तुमसे बहुत प्यार करते हैं.. पहले वाला समय कहां रहा… अब गर्म गर्म रोटियां बहु बना के थाली में दे, बेटियां देती है… फिर बहु से ये उम्मीद और शिकायत क्यों? मैं कहां दे पाती हूं गरम गरम रोटियां.. तुम यहां खाना बना लेती हो कभी कभी वहां भी अपना घर समझकर भैया भाभी के पसंद के कुछ बना दिया करती..

तुम कहती हो न मां दादा जी के लिए फुल्के बनाने के लिए जाड़े की रात में भी बैठे रहना पड़ता था नींद से बोझल आंखें और थके हुए शरीर के साथ.. कितनी तकलीफ होती थी तुम्हे.. क्या यही तकलीफ तुम अपनी बहु की आंखों में देखना चाहती हो! 

             मां अगली बार सचिन भैया के पास जाओ तो खुले दिल से जाओ.. उनकी स्थिति परिस्थिति को समझ कर जज करो… तुम्हे कोई शिकायत नहीं होगी… मैं तुम्हारी परवरिश हूं पर क्या मैं सौ प्रतिशत परफेक्ट हूं? मेरी सास के अंदर भी कुछ न कुछ गीले शिकवे जरूर होंगे पर वो जब भी आती है हम दोनो एडजस्ट करते हैं थोड़ा मैं थोड़ी मेरी सासू मां… तुम भी भाभी को थोड़ा प्यार अपनापन दो देखो उन्हें भी कितना अच्छा लगेगा और तुम्हे भी..

Veena singh 

                  और ये सात दिन कैसे बीत गए पता हीं नहीं चला.. पर मैने इन सात दिनों में मां को थोड़ा थोड़ा कर के बहुत कुछ समझा दिया.. और मुझे लग रहा था मां मेरी बातों से बहुत हद तक सहमत थी…तभी होली में चेन्नई जाने के लिए टिकट करवाने की बात पापा से कर रही थी… #मतभेद #

के बादल छंट रहे थे और मां पापा के चेहरे पर खुशी की किरण दिख रही थी….उम्मीद करती हूं सचिन भैया के पास इस बार मां जाएंगी तो खुशी खुशी रहेंगी और वापस भी संतुष्ट होकर आएंगी.. उनके बीच का #मतभेद #खत्म हो जायेगा और इक नई शुरुआत होगी..रिश्ते प्रगाढ़ होंगे..

स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित

   ❤️🙏✍️

  Veena singh..

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