मतभेद – रोनिता कुंडु  : Moral Stories in Hindi

सुनिए… आप जरा ऑफिस से जल्दी आ जाना… राशन खत्म हो गया है… वह लाने चलेंगे… पदमा ने अपने पति रवि से कहा 

रवि:   क्या राशन खत्म..? वह भी महीने के बीच में..? पर मैं तो राशन पूरे महीने का ही लाता हूं ना…? ऐसे कैसे बीच में ही खत्म हो गए..?

पदमा:   आप भी ना कभी-कभी ऐसी बातें करते हैं कि क्या ही बतांऊ…? आपकी बातें सुनकर तो ऐसा लगता है मानो आप इस घर में रहते ही नहीं…. क्या आपको नहीं पता इस महीने गर्मी छुट्टियां बिताने काजल अपने बच्चों संग पूरे 15 दिन रहकर गई है… तो जब घर में मेहमान रहेंगे तो राशन भी तो ज्यादा ही लगेगा ना..? 

रवि:   तुम मुझे गृहस्ती चलाना मत सिखाओ… काजल और उसके दो छोटे बच्चों पर कितना ही खर्च होता होगा..? मेरी तो चार बुआ थी और उनके बच्चों को मिलाकर 10 12 सदस्य साल में एक बार 15 20 दिन के लिए इकट्ठे आते थे.. पर मेरी मां की गृहस्ती थी इतनी सलीके से सब कुछ हिसाब से चलाती थी की मजाल है बुआओ की खातिरदारी में या राशन में कोई कमी आए… पर आजकल की मॉडर्न ग्रहणीयो को तो बस बर्बादी ही करनी आती है.. सोचा होगा काजल का नाम लेकर कहूंगी तो कोई कुछ नहीं कहेगा.. अरे जाकर बाहर दो पैसे कमा कर लाओ, तब पता चलेगा यह फिजूल खर्ची कितनी चुभती है… 

पदमा बहुत ज्यादा गुस्से में तिलमिला जाती है और कहती है… जब आप अपनी मां की बात कर ही रहे हैं तो, मेरी भी सुनिए, मेरे पापा भी घर का राशन महीने का ही लाते थे, पर वह इस तरह राशन माप कर नहीं रखते थे, क्योंकि उन्हें पता होता था कि अगर बीच में एक्स्ट्रा मेहमान आ जाए तो राशन का जल्दी खत्म होना लाजमी है… इसके लिए वह आपकी तरह मम्मी से चिड़चिड़ नहीं करते थे… ठीक है जब आपको लगता है कि मैं फिजूल खर्ची करती हूं तो अब से खाना बनाने के लिए आप सारा सामान निकाल कर और माप कर दुकान जाना… मैं उतना ही बनाऊंगी, फिर तो काफी बचत हो जाएगी ना..? 

रवि:   हां अब लगता है यही करना पड़ेगा… तुम्हें क्या लगता है मैंने तुम्हें खाना चुपके-चुपके कुत्तों के आगे डालते नहीं देखा..? पर मैं चुप इसलिए था ताकि आज के दिन बोल पाऊं… 

पदमा:   अच्छा आपने यह तो देखा कि मैंने खाना कुत्तों को खिलाया, पर वह बर्बादी काजल के बच्चों ने की थी.. यह नहीं पता आपको.. अब उनसे कुछ कह नहीं सकती थी और आपसे कहती तो यही होता…

 रवि:   इसमें भी तुम्हारी ही गलती है… जब तुम्हें पता ही है मोनू और पिंकी खाने की बर्बादी करते हैं उन्हें थोड़ा कम परोसो ना, वह तो बच्चे हैं पर तुम तो बड़ी हो ना…पर नहीं तुम्हें भी अपनी ठांट दिखानी है…

पदमा:  ठीक है अगर ऐसी ही बात है तो एक काम करते हैं… एक महीने के लिए मैं दुकान संभालती हूं और आप घर देखना… देखती हूं कितने हिसाब से घर चलाते हो और कितना बचत कर लेते हो..? पूरे दिन दुकान पर बैठकर मोबाइल चलाना इतना भी मुश्किल नहीं… साड़ियां तो रमेश और रघु ही दिखाता और बेचता है, तो सिर्फ पैसे गिनना कौन सी बड़ी बात है..? घर चला कर दिखाओ तो पता चले आटे दाल का असली भाव… 

रवि:   अच्छा मैं बस बैठ कर मोबाइल चलाता हूं..? ठीक है मंजूर है तुम्हारी शर्त… अगले दिन से पदमा अपने कपड़ें की दुकान को संभालने चली जाती है और इधर रवि घर के कामों में लग जाता है… एक हफ्ते बाद दोनों आमने-सामने बैठे होते हैं और एक दूसरे से कुछ कहना चाह रहे होते हैं… पर दोनों अपनी बात पर डटे रहना भी चाहते थे इसलिए कुछ कह नहीं पाए… ऐसे करते हुए एक महीना बिता और महीने के अंत में पदमा कहती है.. मैंने रसोई देखा है आपने तो बढ़िया बचत कर ली.. इस पर रवि कहता है और मैं भी पता किया दुकान में भी बिक्री अच्छी हुई है… 

पदमा:   पर मैं अब घर ही संभालूंगी… मैं हार मानती हूं आपका काम भी कोई आसान नहीं है…. आप घर बाहर दोनों ही संभाल सकते हैं… मैं मान गई… पूरे दिन बकबक करना वह तो सुरेश और रघु की वजह से साड़ियां अच्छी बिकी, वरना तो मुझे हर ग्राहक पर गुस्सा ही आ रहा था… ना जाने कितनी ही साड़ियां खुलवाकर बिना कुछ लिए ही चले जाते हैं… इतना धैर्य तो मुझ में नहीं है 

रवि:   अब जब तुमने हार मां ही ली है तो मैं भी एक राज़ की बात बताता हूं… राशन जो बचे हुए तुमने रसोई में अभी देखा… वह तो मैंने कल ही लाकर रखा हैं… राशन थोड़ा पहले ही खत्म हो गया था… अब समझ आया कि हम इतने नाप तोल कर रोज खाना नहीं बना सकते और खासकर जब घर में मेहमान आ जाए… अब उसी दिन जब मेरा दोस्त अपने परिवार के साथ खाने पर आया… तब शर्त तुमसे हार ना जाऊं, इसलिए तुम्हें खाना बनाने को मना कर दिया और फिर उनके खाने में कोई कमी ना आए तो इस डर से सब खाना ज्यादा बना दिया… जिसे खाने की बर्बादी हुई.. यहां तक के हर दिन तुम्हारे सोने के बाद, मैं बची खाना कुत्तों को डाल आता, ताकि तुम्हें इसकी खबर ना लगे, पर यह सब देखते हुए तुम्हारे काम की अहमियत का पता चल गया… वह तो एक कहावत है ना जिसका काम उसी को साजे… अब तुम संभालो घर, मैं चली दुकान 

पदमा मुस्कुरा कर रवि के सीने से लग जाती है और कहती है… पति-पत्नी में मतभेद होना स्वाभाविक है, पर यह मतभेद मनभेद न बनने पाए इसके लिए ऐसी चुनौतियां बीच बीच नें लेनी चाहिए, ताकि दोनों को अपनी काम के अहमियत का पता चले… फिर दोनों हंस पड़ते हैं… 

दोस्तों… आजकल के दौड़ में जहां महंगाई अपने चरम पर है… ऐसे में ज्यादातर घरों में पति-पत्नी दोनों ही कमा रहे हैं… ताकि वह महंगाई को काबू में रख सके… पर जहां यह घर की माली हालत सुधार रही है तो, वही यह हमारी मानसिकता में भी भारी बदलाव ला रही है… जैसे एक औरत को लगता है वह कमा सकती है तो वह अब किसी का हुक्म क्यों माने..? उसे आग्रह भी हुक्म लगने लगता है… वैसे ही एक पुरुष को लगता है वह कमा रहा है और उसकी बीवी घर संभाल रही हो तो वह उसके मेहनत को नहीं समझती, बस फिजूल खर्ची कर रही है… पर असल में ऐसा नहीं है ना तो घर संभालना इतना आसान है और ना ही पैसे कमाना… पति-पत्नी दोनों मिलकर ही इसे आसान बनाते हैं… मतभेद तो होंगे पर यह मतभेद मनभेद ना करने पाए, इस बात को जो ध्यान में रखा जाए, तो पति-पत्नी और उसका परिवार सुखद छवि का प्रतीक बन जाता है… आपका क्या कहना हैं..?

 

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#मतभेद

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