तुनकमिजाज सरिता का मायके में एक सप्ताह में दूसरा चक्कर था , ससुराल लोकल था ,सो थोड़ा सा भी कुछ ऊपर नीचे होता , तुरंत मायके आ धमकती। शुरू शुरू में तो मां ने सोचा कि अभी शादी को दो ही महीने हुए हैं कुछ समय बाद ससुराल में रच बस जायगी।लेकिन आज उसको देख कर उसकी मां ने उसका उस तरह खुश होकर स्वागत नही किया जैसे हमेशा करतीं थीं।
अब तो उसकी शादी को पूरे छह महीने हो चले थे,लेकिन सिरफिरी सरिता का वही हाल था।जरा जरा सी बात पर मुंह उठाकर मायके चले आना फिर सिलसिला शुरू होता ससुराल वालों व पति राघव की शिकायतों का पिटारा खोलकर बैठ जाती
आज जब वह घर में आरही थी उसके पापा किसी काम से बाहर जारहे थे।सरिता को घर में आते देखकर उन्होंने अप नी पत्नी को फोन करके कहा ,खबरदार जो तुमने सरिता की किसी गलत आदत को बढ़ावा दिया तो।अब वह कोई छोटी बच्ची नही है। शादी हो चुकी है उसकी,ससुराल में उसे एडजस्ट करना चाहिए।मै जानता हूं उसके ससुराल बारे व राघव बहुत ही सुलझे हुए बिचार के लोग हैं कमी तो तुम्हारी इस नकचढी बेटी के दिमाग में है।
शायद इस सब के लिए तुम ही काफी हद तक जिम्मेदार हो , बेटी के प्यार में अंधी होने के कारण बचपन से उसकी उचित-अनुचित आदतों को पूरा करती रही तो नतीजा तुम्हारे सामने है। थोड़ा बहुत मतभेद तो हर घर में होता है,लेकिन बैठ कर बात करने से काफी हदतक यह समस्या सुलझ भी जाती है।हां आपस में मन भेद नही होना चाहिए।बस यही समझाना है तुमको अपनी लाडली को।और हांजब मैं शाम को वापस लौटूं तब तक उसे अपने घर वापस भेज देना।
मां मां पुकारती सरिता ने घर में प्रवेश किया और आते ही चालू हो गई देखोन मां राघव मेरी कोई बात नहीं मानता।मै जो भी कहती हूं,उसका जबाव होता है मां से पूछ लो।कल मैने कहा चलो मूवी देखने चलते हैं,तो छूटते ही बोला ,मां से परमीशन लेलो। हम क्या छोटे बच्चे हैं जो हर समय उनसे पूछ कर सब कुछ करें।हमारी अपनी मर्जी कोई मायने नही रखती।
बात मर्जी की नही , बड़ों को सम्मान देने की होती है।
हां ठीक तो कहा राघवने मां घर में बड़ी हैं तो उनसे पूछ कर ही जाना चाहिए ,तुम बहुत बदल गई हो,मेरा पक्ष न लेकर राघव का पक्ष ले रही हो।मैं किसी का पक्ष नही ले रही।मैं तो तुमको सही गलत का भेद बता रही हूं। तुम भी अब बचपना छोड़कर कुछ बड़ी हो जाओ
तुम अब बच्ची नही हो ,किसी की पत्नी व किसी की बहू हो, परिवार में सभी रिश्तों में सामंजस्य बैठाना तुम्हारी ड्यूटी है।बेटा रिश्ते किसी बगीचे की तरह होते हैं , इन्हें प्यार से सीचनापड़ता है,रही मतभेद की बात सो दो अलग-अलग परिवार में पले बढ़े इन्सानों की अपनी-अपनी आदतें होती है , उन्हें बदलने में समय लगता है।एक दूसरे की राय लेकर काम करने में मन को अच्छा लगता है साथ ही प्यार भी बढता है
यदि राघव तुम्हारी हर बात में हां में हां मिलाते रहेगा तो तुम ही कहोगी कि उसकी तो अपनी कोई सोच ही नहीं है। ये तुम्हें अच्छा लगेगा क्या,नही न ।राघव प्यार तो करता है न तुमसे,तो तुम भी उसके प्यार का सम्मान करना सीखों।न कि जरा जरा सी बात पर मायके में आकर तमाशा करो ।
तेरी तो आदत ही है सब में कमियां निकालना कभी अपने गिरेबान में भी झांक कर देख
अब ससुराल जाने पर उन लोगों में भी खोट निकालने लगी।बेटा सरिता समझौता खुशहाल जिन्दगी का परखा हुआ फोर्मुला है,तू भी यह फॉर्मूला अपनाकर देख,तेरी सारी शिकायतें दूर हो जायेंगी
थोड़ी मैच्योरिटी व समझदारी तुमको भी दिखानी पड़ेगी।जानती हो सरिता प्यार देकर ही प्यार मिलता है फिर रिश्ता चाहे सास का हो या पति का।समझ गई न ।अब जाओ अपने घर और प्यार से रहो,यहां कोई कोर्ट नहीं है जो तुम्हारी समस्या का फैसला होता रहेगा।अप नी समस्या खुद ही सुलझा ओ।मतभेद हो
लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए। समझ गई न चले जाओ अपने घर। तुम्हारे पापा के पास आने का टाइम होरहा है, हां आगे से कोई शिकवा शिकायत लेकर मत आना,बैसे तुम्हारा मायका है कभी भी आसकती हो लेकिन अपने घर की जिम्मेदारियों को पूरा करके ही। शिकायतों का पिटारा लेकर नहीं।
सरिता मां की बातों पर मनन करते हुए अपने घर चली आई,कि हां मां सच ही तो कह रही है।मैं आज से अपने आप को बदलने की कोशिश करूंगी ताकि आगे की लाइफ खुशहाल रहे। मतभेद हो लेकिन मनभेद न हो।
बहुधा देखने में आता है कि लड़की जब भी ससुराल की कोई शिकायत लेकर मायके आती है तो अधिकांश मांए पूरी बात न जान कर उसको उलटी सीख देती है जिससे रिश्ते बनने से पहले ही उनमें मतभेद आने लगते हैं।और जब ये मतभेद बढ कर रिश्तों में दरार डाल देते हैं,कई बार तो रिश्ते बनने से पहले ही टूट जाते हैं।मतभेद को बढ़ावा न देकर बेटी को अच्छी सीख दें।
स्व रचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता
नई दिल्ली