“वो देखो जा रही है मास्टरनी |” ये शब्द अनजाने में या जानबूझ कर बोले गए थे, परंतु संबंधित उसी से थे, यह
वह जानती थी |
पेशे से मास्टरनी तो नहीं थी वह परंतु गलत होता देख के उसको रोकना, टोकने का साहस अवश्य था उसके
अंदर | कभी दिन में चलती स्ट्रीट लाइट बंद करने तो कभी व्यर्थ में चलते नल बंद करना, गीला एवं सूखा कचरा अलग अलग करना और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना, खासकर बच्चो को उसकी आदतों में शामिल था |ईमानदारी से एक कार्यालय में कार्यरत मीरा अपनी माता व पुत्री के साथ रहती थी | पति से विरक्त स्त्री अवश्य पति ही द्वारा त्यागी गई होगी, पत्नी द्वारा पति को तज देना आज भी एक पारंपरिक भारतीय परिवेश के लिए अकल्पनीय था| अकल्पनीय तो स्वयं उसके लिये भी था, जब आज से कुछ वर्ष पूर्व वह ऐसा कठिन निर्णय ले कर आई थी |
23 वर्ष की रही होगी जब दो पुत्रों व एक पुत्री के कठोर
पिता ने रिश्तेदारों द्वारा सुझाए गए रिश्ते से आनन- फ़ानन में बिना किसी जाँच -पड़ताल के विवाह कर
अपने दायित्व की इतिश्री कर ली थी| अपनी एमबीए की डिग्री को किसी नौकरी अथवा व्यवसाय के रूप में साकार न होता देख बहुत रोई तड़पी थी, परन्तु
पुत्र आसक्त पिता ने एक न सुनी थी | उनका मानना था की जब तक पुत्री का विवाह नहीं होता शेष जमा पूंजी से पुत्रों को व्यवसाय कहां से कराएंगे| पुत्री के प्रति अपना सर्वोच्च दायित्व ‘ हाथ पीले कर’ निश्चिंत हो गये थे मनोहर जी|
अखिलेश से विवाह के करने के पश्चात् उच्च शिक्षा प्राप्त
मीरा का जीवन मात्र रसोई में व्यतीत हो रहा था| एक-दो बार दबे स्वर में नौकरी करने की इच्छा प्रकट की थी मीरा ने तो कुछ माँ का दबाव, कुछ एक मातृभक्त पुत्र बनने का दबाव, व सदियों की रूढ़ियों ने अखिलेश को सदा ही इस ओर उदासीन बनाए रखा | एक बार तो हाथ भी उठाने से बाज़ न आता अखिलेश, अगर पुलिस की धमकी न दी होती मीरा ने|
समझ चुकी थी मीरा की अब इस व्यक्ति के साथ मेरा जीवन निर्वाह संभव नहीं ,व रोती -रोती घर पहुँच गई|
परंतु सत्कार के स्थान पर मात्र फटकार से स्वागत हुआ था मीरा का | माता नर्मदा जी ने पुत्री का पक्ष रखना भी चाहा था परंतु मनोहर जी ने ये कहते हुए चुप करा दिया था कि ,” विवाहित पुत्री का मेरे घर पर कोई स्थान नहीं|अपने पति के घर जाओ| विवाहित पुत्री को घर बिठाएंगे तो कल मयंक व शोभित से विवाह करने को कौन तैयार होगा?”
मन मसोस कर रह गई थी नर्मदा जी | रह -रह कर मीरा की सूजी आँखें कौंधती थी हृदय में जब अखिलेश के साथ बलपूर्वक भेजा था मनोहर जी ने| अपनी पुत्री के प्रति अपना दायित्व न निभा पाने की टीस थी उनके मन में | परंतु एक हताश, बेसहारा माँ करती भी तो क्या?
एक नये जीव के आने की प्रसन्नता को अभी आत्मसात
भी न कर पाई थी मीरा कि एक बार फिर अपना
अमानवीय पक्ष उजागर कर दिया था अखिलेश ने| सास शारदा जी ने अपनी लाल -लाल आंखें दिखाते हुए कहा था, “जाँच कारवाने में हर्ज़ ही क्या है?वंश के प्रति तेरा कोई दायित्व है या नहीं ?” अश्रुपुरित नेत्रो से बस इतना ही कह पाई थी ,”अगर बेटी हुई तो ? गिरवा देंगे, और क्या? “
मनोहर जी को फोन करने पर बस इतना ही कहा था
उन्होंने कि,” हमें इस सब से कोई लेना देना नहीं है | आपका पारिवारिक मामला है, आप जानिये|”
अंदर तक चुभ गई थी पिता की अमानवीयता परन्तु नारी सुलभता इतनी अशक्त भी नहीं कि अपने ही अंश की बलि चढ़ने दे व इस बार साथ था अपनी स्वयं की जननी नर्मदा जी का| अपनी पुत्री का साथ तो दे दिया था नर्मदा जी ने परंतु अपने पति के साथ की कीमत पर| वो दिन और आज का दिन था तब से ये दो मां और बेटियां ( मीरा, नर्मदा जी व मीरा की बेटी सिया ) अकेले रह कर गुजर बसर कर रही थी | मीरा प्राय : ही पर्यावरण के प्रति अपनी सजगता के कारण अड़ोस-पड़ोस की महिलाओं की टीका -टिपण्णी का शिकार होती रहती थी जैसी गाय को पन्नी पर रोटी न देना इत्यादि |
हद तो उस दिन हो गई जब अवैध पेड़ काटने वाले पार्क के पेड़ काटने आ गये | पहले तो मीरा ने मोहल्ले के लोगों से सहायता मांगी | सहायता न मिलने पर मीरा ने पुलिस व विभागीय स्तर पर मदद ले कर यह अनैतिक कार्य रोका |
हमेशा की तरह इस कार्य के लिए अपनी निंदा होते देख मीरा के सब्र का बांध आखिरकार टूट ही गया| बिफ़र कर उन अधेड़ उम्र की स्त्रियों से बोली, “मात्र एक पुरुष का साथ न होने से आप लोग मुझ पर व्यंग्य करती है| अपना सामाजिक दायित्व बस एक अकेली स्त्री के चरित्र पर तंज कस कर पूरा कर लेती हैं आप? एक समाज से बड़ी इकाई है देश व उससे भी कहीं बड़ी इकाई पर्यावरण है जिसकी प्रति आपका कहीं बड़ा दायित्व है | कन्या भ्रूण हत्या, दहेज हत्या, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण आदि अनेक ज्वलंत विषय है क्या उनके प्रति अपना दायित्व निभाया है अपना? और अगर नहीं तो मुझे निभाने दीजिए और हाँ अगर इस कार्य के लिए आप मेरी प्रशंसा नहीं कर सकतीं तो निंदा तो मत कीजिये|
कह कर चल पड़ी थी मीरा अपने राष्ट्र व पर्यावरण के प्रति अपना दायित्व निभाने |
अदिति महाजन
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