मासूमियत – पी.एन. मिश्रा

अनुराधा ने आवाज लगाई  तो नवीन घूमा

क्या है

कल से गर्मियो की छुट्टिया आ रही है तो कल से रोज हम नदी की बालू मे मिट्टी के महल बनाकर खेलेंगे

सुबह भी और शाम को भी

मगर मै तो कल अपने गांव जा रहा हूं

क्या?? तुम गांव चले जाओगे

तो मै किसके साथ खेलूंगी

मुझे तो तुम्हारे साथ खेलने मे ही मजा आता है

अनुराधा मासूमियत से बोली

उसके चेहरे पर उदासी छा गयी थी

बडोदिया एक छोटा सा गांव जिसके पास मे बारिश मे बहने वाली एक नदी उसी गांव मे एक पुराना हनुमान मंदिर  और मंदिर के सामने ही खुला मैदान

एक तरफ छोटा सा चार कमरो का प्राईमरी स्कूल 

पास मे विशाल पीपल और उस पर लंगूरो का झुंड करीब 30-40 घरो की बस्ती वाला ऐसा गांव जिसके तीन और खेत ही खेत एक तरफ नदी जिसके किनारे मीठे पानी का कुआ

गांव वाले उसे भरणी कोठी कहते थे

वो कुआ ही सारे गांव की पनघट भी था

गांव मे एक बडा परिवार ठाकुर साहब का था जिसे सभी रावला बोलते थे

बुजुर्ग ठाकुर साहब ही सरपंच और मुखिया थे गांव के

दो तीन परिवार ब्राह्मणो के थे एक घर खाती का ,एक परिवार लखेरा समाज का, चार पांच घर महाजन समाज के थे

शेष परिवारो मे माली,गूजर,कोली समाज के थे एक परिवार नाई  था

सन् 70 मे गांव खुशहाल थे गांववासी भी मानसिक रुप से खुश ही रहते थे

इसी खूबसूरत गांव मे नवीन का आना हुआ

क्योकि उसके पिताजी शिक्षक थे और उनकी सर्विस बडोदिया से दो किलो मीटर दूर एक और छोटे से गांव मे थी

इसीलिये नवीन के पिताजी ने रहने के लिये बडोदिया को ही चुना क्योकि वहां से नदी के दूसरे छोर से पक्की पुरानी सी रोड़ थी जो कि तहसील मुख्यालय की और जाती थी और आसपास के गांव वालो के लिये भी कस्बे मे जाने के लिये एकमात्र पक्का रास्ता थी

नवीन का गांव वहां से करीब चालीस किलोमीटर था

और आवागमन के लिये सुबह 8 बजे एक बस निकलती थी और वो ही बस शाम को 5 बजे वापस आती थी



अनुराधा के पिताजी हनुमान जी के मंदिर मे सुबह शाम आरती पूजन करते थे और सभी गांव वाले एक प्रकार से उनके यजमान थे गांव वाले उन्हे जोशी जी कहकर पुकारते थे

मंदिर सेवा के बदले रोज पंडित जी को सुबह आटा देते थे इसके अलावा गांव वालो के होने वाले  विवाह,चूडाकर्म, सत्यनारायण की कथा इत्यादि सभी पोरोहित्य कर्म संपन्न करवाते थे

अनुराधा पहली संतान थी जोशी जी के उसके बाद दो छोटे भाई और थे

करीब सात साल की उम्र थी अनुराधा की और नवीन की उम्र करीब 9 साल की थी दोनो ही स्कूल की तीसरी कक्षा मे एक साथ पढते थे

अनुराधा और नवीन दोनो ही सजातीय भी थे एवं हम उम्र से होने के कारण बचपन का बालसुलभ लगाव दोनो मे था

कभी इसके घर कभी उसके घर दोनो खेलते रहते

नवीन के भी एक छोटा भाई था करीब चार साल का

अनराधा तुनक कर बोली नही तुम गांव नही जाओगे

हम दोनो यही रहेंगे और साथ साथ खेलेंगे ,कभी ठाकुर बाबा के खेतो पर बेर खाने चलेंगे

नही अनुराधा मुझे जाना ही होगा छुट्टिया भी दो महीने की है और गांव मे मेरे दादा,दादी चाचा चाची और और और भी बहुत से मेरे साथी है जो मेरा इंतजार कर रहे होंगे

मेरे गांव मे बहुत बडा तालाब है, बहुत से आदमी है बडोदिया से है भी बहुत बडा

आखिर नवीन की बातो से खीज कर अनु बोली

जाओ वही मरो

और फिर मत आना हमारे गांव मे

अनुराधा की आंखो मे आंसू आ गये

नवीन हो हो करके हंस पडा

अनुराधा बोली तुम्हे यहां आये तीन साल हो गये मगर एक बार भी गर्मियो की छुट्टियो मे यहां नही रुके

अब आना भी मत और आ भी गये तो मै तुमसे बात भी नही करुंगी

और रोती हुयी अपने घर की तरफ भाग गयी

सुबह 8बजे चलने वाली गाडी से नवीन अपने माता पिता के साथ अपने गांव के लिये चला गया

गर्मी की छुट्टिया बीतने वाली थी नवीन के पिताजी बडोदिया जाने की व्यवस्था पूरी कर लिये

तभी नवीन के दादा ने  कहा अब मै नवीन को यही पर स्कूल मे भर्ती करवा दूंगा

नो साल का हो गया है यही पढ लेगा  यहां भी आठवी तक पढाई होने लग गयी

नवीन के पिताजी ने सहमति जता दी

और नवीन के दादा जी ने गांव के स्कूल मे ही उसे कक्षा पांच मे भर्ती करवा दिया

नवीन के पिताजी बडोदिया पहुंचे तो हर मिलने वाले ने राम श्याम की

नवीन के माता पिता का आना सुनकर अनुराधा दौडकर उनके घर पहुंची मगर नवीन नही दिखा

उसने पूछा ताई जी नवीन कहां है

बेटा अब वो हमारे गांव के स्कूल मे ही पढेगा अपने दादा दादी के पास रहेगा



सुनते ही रो पडी

नवीन की मां बोली

अरे क्या हुआ बेटा

बोलो , क्या हुआ

अनुराधा

मेरी बात का बुरा मान गया वो  इसीलिये नही आया ना ताई जी

किस बात का बेटा

अनुराधा रोते हुये बोली

मैने गुस्से मे उससे कह दिया था कि अब तुम हमारे गांव मे आना भी मत

और वो नही आया

ऊं ऊं ऊं

अनुराधा फूट फूट कर रो पडी

नवीन की मां ने उसे सीने से लगा लिया और चुप कराया

अनुराधा उदास मन से अपने घर लौट गयी

समय का पंछी अनवरत अपनी उडान भरता चला गया

नवीन के पिताजी का दो साल बाद  स्थानांतरण से हो गया और वो भी बडोदिया छोड़ आये

16 साल गुजर गये 

नवीन अपनी कॉलेज की पढाई पूरी करके आज अपने गांव लौटा था

किंतु कभी कभी उसे बचपन याद आता तो बडोदिया जैसा सुंदर गांव और अनुराधा भी उसके खयालो मे आ जाते

10 महीने बाद  उसे राज्य की प्रशासनिक सेवा की परीक्षा मे  शामिल होना था

इसकी तैयारी के लिये जयपुर से कुछ पुस्तके लेकर आया था

अब वह केवल शाम को ही घर से निकलता था

बाकी समय तैयारी मे डूबा रहता

नवीन ने सफलता पूर्वक परीक्षा उत्तीर्ण की

और उसका चयन खण्ड विकास अधिकारी  के पद पर हो गया था

संयोग से उसका पहला पद स्थापन चाकसू पंचायत समिति मे हुआ

जिसमे उसके बचपन की प्राथमिक शिक्षा का गांव बडोदिया भी आता था



मन मे एक पुलक सी उठी

नवीन ने अपना पहला सरकारी दौरा बडोदिया का ही तय किया

ठाकुर साहब कल हमारे गांव मे विकास अधिकारी आ रहे है

उनकी मीटिंग कहां रखवानी है

कान्हा बोला

वो गांव के माधोलाल नाई का बेटा था अभी वह पंचायत मे हलकारे के पद पर था

अरे कान्हा

कहां रखनी है

वही व्यवस्था करनी है मंदिर के सामने मैदान मे

अधिकारी जी स्कूल का भी तो निरीक्षण करेंगे ना

ठीक है बाबो सा

सुबह 10 बजे एक जीप आई उसमे विकास अधिकारी के रुप मे नवीन बैठा था

गाडी सीधे स्कूल के सामने पहुंची

नवीन ने देखा कि गांव मे तो विशेष बदलाव नही हुआ है कुछ कच्चे मकानो के पक्के होने के सिवाय

हां कुछ घर और बन गये है और जग्गू महाजन की दुकान पर एक लैंडलाईन फोन भी सरकार ने लगवाया है

तभी उसका ध्यान मंदिर की बगल मे बने घर पर गया वो मकान जोशी का था और वहां बंदनवार लटके थे

लगता है वहां पर कोई शादी थी

किन्तु माहोल मे उदासी पसरी हुई थी

वहां एक सुंदर सी लडकी एकटक उसे ही देखे जा रही थी

मगर उसके चेहरे पर भी गहरी उदासी थी

और नवीन को भी वो सूरत पहचानी सी लग रही थी

तभी ठाकुर साहब का आना हुआ

उन्होने नवीन को हाथ जोडकर नमस्कार किया तो नवीन ने लपकर उनके हाथ थाम लिये

आप क्या कर रहे है बाबो सा

आपने मुझे नही पहचाना

मगर मै आपको नही भूला

ये कहकर नवीन ने चरण स्पर्श कर लिये

बाबो सा मै मास्टर जी का लडका नवीन हूं

हैं ठाकुर साहब आश्चर्य जनक प्रसन्नता से भर उठे

अरे आज तो मन भर आया

हमारा बेटा इतना बडा अफसर बन गया

गांव के बुजुर्ग और सभी लोग तालिया बजाने लगे

किंतु उस शोर मे भी दरवाजे पर खडी लडकी के कानो मे नाम सुनाई पडा नवीन

तो उसने गौर से देखा और पीछे मुंह करके रो पडी

नवीन ने ठाकुर साहब से धीरे से पूंछा

जोशी जी के किसकी शादी है बाबो सा



ठाकुर साहब उदास हो गये और इधर उधर देख कर धीमे से बोले

जोशी जी की बेटी अनुराधा की ही थी

मगर दहेज के लोभी लडके वाले ने बिना अग्रिम दहेज के बारात लाने से मना कर दिया बेटा

नवीन ठाकुर साहब को लेकर एक और चला गया

कुछ देर बाद वह जग्गू की दुकान से अपने घर फोन से बात करने लगा

ठाकुर साहब जोशी जी के घर मे चले गये और नवीन वापस सरकारी जीप मे बैठकर लौट गया

गांव वाले मुंह बाऐं एक दूसरे को देखकर खुसर फुसर करने लगे कि माजरा क्या है

तीसरे पहर को तीन बजे सरकारी जीप वापस लौटी

उसमे से उतरे नवीन के पिताजी ,दादा जी,चाचा और दो चार अन्य लोग

तब तक ठाकुर साहब और गांव के लोग भी वही बैठे थे

वे लोग उठे और सीधे जोशी जी के घर की तरफ बढ गये

ठाकुर साहब ने आवाज लगाई

जोशी जी  कहां हो

बाहर आओ देखो बेटी को लेने बारात आई है

जोशी जी झटपट बाहर आये

नवीन के पिताजी को देखते ही नमस्कार किया और प्रश्नवाचक नजरो से ठाकुर साहब की और देखा

ठाकुर साब बोले कहो जोशी जी क्या आप बिटिया का हाथ मास्टर साहब के बेटे को देने को तैयार हो

अंधा क्या चाहे

दो आंखे

गाडी मे बैठे नवीन को दादा जी ने आवाज लगाई

यहां आओ बेटा जोशी जी को प्रणाम करो

अपनी लाडली बेटी के लिये नवीन जैसा योग्य वर देखते ही

जोशी जी की आंखे बरस पडी

और साथ मे वो दो नैना भी बरस पडे जो एक खिडकी की ओट से ये सब देख रहे थे

पर अब उन नैनो मे खुशी के आंसू थे

जहां अभी तक उदासी पसरी थी वहां खुशियो की शहनाईया बज रही थी…

पी.एन. मिश्रा

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