# एक टुकड़ा
“राजी चल बेटा स्कूल का समय हो गया…. पता है ना दो दिन बाद से तेरी परीक्षा है… ख़ूब मन लगाकर पढ़ाई करना है …अपने मम्मी पापा का नाम रौशन करना है ।” लक्ष्मी ने आठ साल की राजी से कहा
“ मासी माँ मुझे मम्मी पापा से ज़्यादा आपका नाम रौशन करना है ये बात आप जान लो..।” चेहरे पर एक चमक लिए राजी ने कहा
दोनों स्कूल जाने से पहले एक कमरे में गई जहाँ एक महिला जो राजी की माँ थी और चुपचाप सी बिस्तर पर पड़ी थी… “बाय माँ स्कूल से आ कर मिलूँगी।”कह राजी हाथ हिला ,बाय कर निकल गई
स्कूल पास में ही था राजी को छोड़कर लक्ष्मी घर आ उस महिला के पास आकर उसके कपड़े बदल खाना खिला दवा देकर अपने काम पर निकल गई जाते जाते वो बोल गई,“ जिज्जी देखो मैं जल्दी आ जाऊँगी पीछे से रानी को छोड़े जा रही हूँ वो तुम्हारा ख़्याल रखेगी….
राजी की छुट्टी होते मैं उसे घर छोड़ जाऊँगी ।”
बिस्तर पर पड़ी महिला जिसका नाम चंपा है अपनी हालत देख बस आँसू बहा सिर हाँ में हिला दिया करती।
चंपा लक्ष्मी के जाने के बाद अक्सर उस मनहूस दिन को याद कर बिलख पड़ती… कितनी खुश थी वो मदन के साथ… चार साल की राजी को जहाँ भर की ख़ुशियाँ देने के लिए दोनों जी तोड़ मेहनत करते… हर दिन दिहाड़ी पर निकलते और बेटी को भी साथ ले जाते …
एक दिन कुछ बदमाश क़िस्म के लोग उस जगह पर आ गए जहाँ मदन और चंपा काम करते थे..शराब के नशे में धुत वो बदमाश चंपा को देख छेड़खानी करने लगे…..
मदन के सामने जब वो वैसी हरकत कर रहे थे तो वो उनसे भिड़ गया…फिर क्या सब लोग हल्ला सुन इकट्ठे हो गए और वो बदमाश वहाँ से भाग गए…
उस दिन के बाद से वो बदमाश इनके पीछे ही पड़ गए….
एक दिन रात के अंधेरे में सब बदमाश मदन के घर घुस आए चंपा के साथ ज़बरदस्ती करने लगे ये देख मदन आग बबूला हो उनपर वार करने झपटा और गलती से चाकू चंपा के ही पैर में लग गया…बदमाश ये देख डर कर भाग गए और मदन चंपा को पकड़ कर रोने लगा …
बहता खून देख चंपा बेहोश हो गई और मदन को लगा चंपा उसके चाकू के वार से मर गई है अपनी पत्नी की जान लेने के गम में वो खुद को माफ ना कर गले में फंदा डाल लटक गया… जब चंपा को होश आया अपने पति का लटकता देख दहाड़े मार रो पड़ी….
मदन ने लिख दिया था कि मैंने बदमाशों से अपनी पत्नी को बचाने में जो चाकू मारा वो मेरी पत्नी को ही लग गया जब वो ही नहीं रही तो मैं रह कर क्या करूँगा…
मदन बिना सोचे समझे आत्महत्या कर चला गया पीछे से चंपा अपने लहूलुहान पैर का ठीक से इलाज नहीं करवा पाई तो पैर बेकार हो गया था ….
काम छूट गया था अब वो खोली भी डर से छोड़ चुकी थी…. ऐसे ही भटकते भटकते एक दिन वो बेटी के साथ सड़क पर उसके लिए खाने को कुछ माँग रही थी तभी लक्ष्मी किन्नर का पूरा समूह उधर आ गया…कुछ लोग चंपा पर तंज कस रहे थे ये देख लक्ष्मी ग़ुस्से से भर गई…
और सबको फटकार लगा चंपा और उसकी बेटी को सड़क किनारे बिठा पूछने लगी,“ तुम्हें पहले कभी इधर नहीं देखा और तुम्हारे पैर को क्या हुआ..?”
चंपा जो पति के इस तरह चले जाने.. दर दर भटकने और बेटी की भूख से परेशान थी और जो इतने से बिना खाए पिएँ थी उसे चक्कर आ गया….लक्ष्मी को उसपर दया आयी और वो उसे अपने साथ घर ले आई….चंपा के साथ साथ उसकी बेटी राजी की भी देखभाल करने लगी।
चंपा एक पैर से लाचार हो गई थी ….
सदमे में वो सबसे बेख़बर हो चुकी थी…. बेटी कभी याद रहती कभी नहीं…. हर घड़ी बस मदन का ही ख़्याल करती और रोती रहती… लक्ष्मी ने उसकी बेटी का नाम पास के स्कूल में लिखवा दिया…
राजी दिल लगा कर पढ़ाई करती अब चंपा से ज़्यादा लक्ष्मी के क़रीब आ गई थी उसे मासी माँ कहने लगी थी…. लक्ष्मी भी अपनी बेटी मान उसका पूरा ध्यान रखती राजी को एक हिम्मती लड़की बनाने की। उसकी पूरी कोशिश रहती।
समय गुजरने लगा चंपा अब भी अपने में खोई रहती थी ….
राजी का आज कॉलेज का आख़िरी दिन था… कन्वोकेशन में पैरेंट्स को भी निमंत्रण दिया गया था….
पूरे कॉलेज में सबसे होशियार छात्रा का ख़िताब राजी को दिया गया और मंच पर जब उसे कुछ कहने को बोला गया. तो …..
राजी ने कहा,“ आज मैं जो कुछ भी हूँ अपनी मासी माँ की वजह से हूँ अभी तो मुझे बहुत आगे जाना है…. लोग कहते हैं ये तेरी माँ कैसे हो सकती हैं पर मैं कहती हूँ ये क्यों नहीं हो सकती…. क्या इनके सीने में दिल नहीं होता…ये भी इंसान है हमारी आपकी तरह… जब हमें किसी ने ना समझा ना सहारा दिया इन्होंने हमें आसरा दिया… मेरी परवरिश की मुझे शिक्षित किया चाहे खुद पढ़ी लिखी ना हो पर मुझे शिक्षा का भरपूर ज्ञान दिया आज मैं अपनी मासी माँ को आप सब से मिलवाना चाहती हूँ…।” कह राजी लक्ष्मी को मंच पर सम्मान के साथ बुलाकर लाई
पूरा हॉल लक्ष्मी के कृत्य से भावविभोर हो उठा था।
सबने तालियाँ बजा कर लक्ष्मी का सम्मान किया और राजी को ऐसी परवरिश देने के लिए वाहवाही ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश