महिमा का ससुराल में पहला दिन था।वह वैसे भी डरी हुई थी क्योंकि उसने सुना था कि उसकी सास बहुत कठोर अनुशासन वाली हैं।वह चुपचाप सिर पर पल्लू डाले सिर झुकाये सास के कहे अनुसार सारे रस्मोरिवाज़ निभाये जा रही थी।अब तक वह बहुत थक चुकी थी और मन ही मन चाह रही थी कि कैसे भी सब काम जल्दी पूरे हों ताकि वह लेट सके।तभी हँसने की आवाज आई,उसने देखा तो सामने एक मोटा और डरावने से चेहरे वाला नाटा सा लड़का झुककर उसका चेहरा देख रहा था,महिमा की तो चीख ही निकल गई।पर उसकी सास ने आकर उस लड़के का हाथ पकड़ा और खींचती हुई बाहर ले गई।महिमा की तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि यह कौन था ,वह डर कर सिकुड़ी बैठी काँप रही थी,जब उसकी ननद ने आकर समझाया डरने की बात नहीं है वे हमारे बड़े भाई हैं जो करीब दो साल से अल्जाइमर से पीड़ित हैं।वे किसी को कोई नुक्सान नहीं पहुँचाते हैं।यह सुन महिमा को कुछ राहत तो मिली पर फिर भी वह आशंकित तो थी ही।
धीरे धीरे कुछ दिनों में महिमा को अब बड़े भैया से डर की जगह सहानुभूति होने लगी थी।उसे जब भी बड़े भैया घर के किसी कोने या कमरे में अकेले बंद बैठे मिलते उसका मन आहत हो उठता था।उसने एक,दो बार दबी जबान से सास से कहा भी था कि” भैया को डॉक्टर को दिखाना चाहिये “पर उन्होंने महिमा को सख्ती से कह दिया “बहू अपनी मर्यादा में ही रहो जितना तुमसे कहा जाये उतना ही करो। मैं पहले भी कह चुकी हूँ और फिर कह रही हूँ कि मेरे और मोहिल के बीच कोई न आये।”यह सुन बेचारी महिमा चुप रह गई थी।पर उसके मन में बार बार सवाल उठता क्यों आखिर मम्मी जी भैया का इलाज डॉक्टर से न करा मंदिर के पुजारी से ही करा रही हैं।
कई बार उसने अपने पति मयंक से भी इसकी चर्चा करनी चाही पर वे उसे हमेशा चुप कर देते यह कहकर मैं या तुम इस मामले में न बोलें वही ठीक है क्योंकि माँ कभी यह बर्दाश्त नहीं करेंगीं कि उनके खिलाफ कोई भी बोले,जहाँ तक कि वे इस मामले में पापा की भी नहीं सुनती हैं तो हमारी कहाँ सुनेंगी?
धीरे धीरे महिमा की शादी को एक साल बीत चुका था और अब वह घर के करीब करीब सारे काम खुद करती या फिर अपने सामने करवाती थी।सास की भी एक तरह से महिमा के हर काम को मौन स्वीकृति मिल जाती थी,सिवाय मोहिल की बात के। ससुर और पति तो बिजनेस में ही बिजी थे और ननद रानी अपने घर की पहले ही हो चुकी थीं।वे दो,चार महिने में ही आ पाती थीं।घर के नौकर,चाकर भी हर काम के लिये महिमा को ही पूँछते थे।सास बस बड़े भैया के सारे काम और बचा हुआ समय मंदिर या सत्संग में ही बिताती थीं।
इधर महिमा ने चुपचाप नैट पर और डॉक्टर से मिलकर अल्जाइमर रोग के बारे में पूरी जानकारी कर ली थी।अब वह मौके की तलाश में थी कि कैसे वह बड़े भैया को हॉस्पिटल ले जाये।वह चाहती थी कि कम से कम एकबार तो डॉक्टर भैया को देख ही लें जिससे उनकी दवा चालू हो सके और शायद वे सामान्य जीवन जी सकें। वह मौके की तलाश में थी।
एक दिन सास को शहर से बाहर जाना पड़ गया,उनकी किसी सहेली के पति की मौत हो गई थी।वे जिस नौकर के भरोसे बड़े बेटे को छोड़ जाती थीं वह भी छुट्टी पर गया था।तब मजबूरन उन्होंने महिमा को उनकी दवा देने के लिये कहा और साथ ही सख्त हिदायत भी दी कि दवा खिड़की से ही देना दरवाजा नहीं खोलना है जब तक ससुर और पति न आ जायें।एक नौकर को भी बड़े भैया के कमरे के दरवाजे के पास पूरे दिन के लिये बिठा गईं थीं।इतना सब करने पर भी वे बार बार महिमा से कहकर गईं कि कोई लापरवाही न हो।
उनके जाने के बाद महिमा ने जल्दी से घर का सारा काम समेटा और नौकर को समझाकर कमरे का दरवाजा खोला तभी बड़े भैया महिमा के ऊपर झपटे महिमा फौरन एक ओर हट गई और नौकर ने उनको पकड़ लिया।महिमा ने उनको पुचकारकर शांत किया और उनको बाजार घुमाने का लालच दिया तो वे एकदम आज्ञाकारी बच्चे की तरह महिमा की हर बात मानने लगे।नौकर और महिमा ने मिलकर उनको बाहर गाड़ी में बिठाया और डॉक्टर के पास ले गये।महिमा को बड़ा आश्चर्य हुआ जब उसने देखा बड़े भैया डॉक्टर की हर बात का जबाब सलीके से दे रहे थे।वैसे जबाब देने से पहले कुछ सोचते फिर रुक रुककर ही बोलते।तभी अचानक वे बड़ी जोरों से रोने लगे और चिल्लाने लगे “देखो मयंक की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया,जल्दी चलो उसे हॉस्पिटल ले चलो।”डॉक्टर और नर्स ने उनको सँभाला और नींद का इंजेक्शन दिया।जब बड़े भैया सो गये तो महिमा नौकर की सहायता से उनको घर ले आई और कमरे में लिटा दिया।डॉक्टर को महिमा ने बड़े भैया तथा सास के बारे में पहले ही सब बता दिया था सो डॉक्टर ने उनके लिये दवा भी महिने भर की दे दी थी।महिमा ने नौकर और ड्राइवर को भी पैसे दे उनका मुँह बंद कर दिया था।अब जब सास बाहर मंदिर बगैरह जातीं तब महिमा नौकर की मदद से बड़े भैया को बाहर निकाल कुछ देर लॉन में घुमाती और दवा भी देती थी।
आठ दस दिनों में ही बड़े भैया में बहुत फर्क दिखने लगा था।सास बहुत खुश थीं,वे तो यही सोच रही थीं कि मंदिर के पुजारी की दवा और भभूत का असर है।महिने भर बाद तो बड़े भैया अपने बहुत से काम स्वयं करने लगे और उनका चिल्लाना बेबात रोना भी बंद हो गया था।अब डॉक्टर से फिर दुबारा उनका चैक अप कराना था तभी डॉक्टर दवा दे सकते थे।महिमा अब जुगाड़ में थी कि भैया को कैसे हॉस्पिटल ले जाये।उसने पति मयंक को विश्वास में लेकर पूरी बात बताई और डॉक्टर की रिपोर्ट्स बगैरह भी दिखाकर बोली”अब आप ही कुछ कर सकते हैं मम्मी को चार,पाँच घंटों के लिये कहीं ले जायें तभी मैं भैया को हॉस्पिटल ले जा सकूँगी।”मयंक भी राजी हो गया और उसने पापा को भी सारी बातें बता दूसरे दिन खुद ऑफिस न जाने के बारे में बता दिया।
सुबह योजनानुसार मयंक ने माँ को दूर गाँव के पुराने मंदिर पर चलने के लिये राजी कर लिया और वे दोनों चले गये। इधर महिमा ने नौकर और ड्राइवर को सारी बातें समझा भैया को तैयार कराया और हॉस्पिटल चल दी। डॉक्टर ने मोहिल का पूरा चैकअप किया और फिर से पूरे महिने की दवा दे दी।डॉक्टर ने इलाज का कोर्स पूरा करने पर जोर दिया और कहा कि करीब दो साल लगेंगे पूरी तरह से ठीक होने में।दवा बंद नहीं होनी चाहिये बीच में।महिमा जब भैया को ले वापिस लौट रही थी तो ट्रैफिक जाम से बहुत समय लग गया।उसे बहुत घबराहट हो रही थी कि कहीं मम्मी न लौट आई हों।मोबाइल भी वह जल्दी में घर पर ही छोड़ आई थी।खैर जब वह घर लौटी तो मयंक की गाड़ी न देख राहत की साँस ली। नौकर की सहायता से वह भैया को गाड़ी से उतारने लगी क्योंकि भैया इंजेक्शन के कारण होश में नहीं थे कि तभी मयंक की गाड़ी भी अंदर आ गई और मम्मी ने जैसे ही मोहिल को नौकर और महिमा के हाथों में देखा वे गाड़ी से उतर दौड़ती आईं और महिमा को चाँटा मारकर चिल्लाईं “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बात टालने की?अरे तुमने तो रिश्तों की मर्यादा को भी खाक में मिला दिया।मेरी छोड़ो अपने जेठ की भी शर्म नहीं तुमको?”महिमा सिर नीचा किये सब सुन ही रही थी कि मयंक ने दौड़कर अपनी मम्मी का हाथ पकड़ा और तब तक मयंक के पापा भी आ गये बोले “कैसी मर्यादा और शर्म की बात कर रही हो तुम?अरे हमें तो बहू का अहसान मानना चाहिये जो उसने मोहिल बेटे को जीवनदान दिया है।इसीने तुम्हारी डाँट और गुस्से को भी सहना मंजूर किया पर अपनी लगन से डॉक्टर का इलाज करवा कर ही मानी।तुम अभी तक जो मंदिर के पुजारी की दवा और भभूत का चमत्कार समझ रही थीं मोहिल के ठीक होना में वह सब इसी हमारी महिमा बेटी की मेहनत और दिमाग का फल है। इसने मयंक को भी आज ही पूरी बात बताकर राजी किया था तुम्हें मंदिर ले जाने के लिये जिससे वह मोहिल को हॉस्पिटल ले जा सके।अरे हमें तो इसका आभारी होना चाहिये” कहते हुए महिमा के सिर पर उन्होंने हाथ रख दिया।यह सब सुन महिमा की सास ने भी बहू को गले लगा आशीर्वाद दे डाले। महिमा बहुत खुश थी कि अब भैया का इलाज आराम से निर्विघ्न हो सकेगा।
………..कुमुद चतुर्वेदी.