मर्यादा – डाॅ संजु झा

मानव जीवन  के खेल निराले हैं,उसमें कभी तो सुख की बरसात होती है,तो कभी गमों के काले बादल उसकी जिन्दगी को अंधेरा कर जाते हैं और वह परिस्थितियों से घबड़ाकर मर्यादा की सीमारेखा को पार करने को मजबूर हो उठता है।अकस्मात् उसकी जिन्दगी के आसमान  में मर्यादारुपी बिजली चमककर उसे सही रास्ता दिखा जाती है। 

कथानायिका मीना की जिन्दगी भी इन्हीं उतार-चढ़ावों से भरी हुई है।मायके में बचपन से ही माँ के प्यार  के लिए  तरसती रही।माँ का देहांत बचपन में ही हो गया था।पिता ने माता-पिता दोनों का प्यार  देने की कोशिश  की,परन्तु माँ के प्यार की गर्माहट के लिए  उसका दिल सदा तरसता रहा।

शादी के बाद  मीना ससुराल आ गई। फौजी पति का प्यार  पाकर  उसकी जिन्दगी मुस्कराने लगी।ससुराल  में केवल सास थी,जिसने अपने ममत्व से उसे सराबोर कर दिया।उसे ऐसा महसूस  होता मानो खुदा ने उसकी झोली सारी खुशियों से भर दी हो।

देखते -देखते उसके पति की छुट्टियाँ समाप्त हो गई। उसके जाने का समय हो गया।पति के जाने से एक दिन पहले उसने दुल्हन-सा ऋंगार किया।लाल साड़ी,लाल चूड़ियाँ,,लाल बिन्दी देखकर  उसका पति आहें भरकर बोल उठे-“सच मीना!आज तुम बहुत  खूबसूरत  लग रही हो।मैं तुम्हें अपनी जान से ज्यादा प्यार करता हूँ।मैं मरते दम तक तुम्हारी ये छवि दिल  में बिठाकर  रखूँगा।तुम ऐसा ऋंगार करोगी ,तो भला मैं नौकरी पर कैसे जा सकूँगा!”

पति की बातें सुनकर मीना की हृदयगत संचित  वेदना की सीमाएँ टूट गईं।पति के सीने से लगकर  वह फूट-फूटकर  रो पड़ी।उसका अंतर्मन विदीर्ण  हो उठा।जीवनसाथी से वियुक्त एक नारी और उसकी नारी सुलभ इच्छाओं के मध्य एक द्वंद्व  छिड़ जाता है,तो वेदना पराकाष्ठा पर पहुँच जाती है,जहाँ वाणी मौन हो जाती है और सारी चेतना जड़।दोनों गले मिलकर रोते रहें।पति ने उसको अपने अंक में समेट लिया।पति के सीने में सिमटी मीना सोच रही है-“कितना मधुर होता है ये बहुपाश और कितना बड़ा संबल भी,जिसमें समाकर स्त्री अपनी संपूर्ण  पीड़ा विस्मृत कर बैठती है!”




पति ने उसे धैर्य  बँधाते हुए कहा -“मीना!अभी कुछ समय तुम मेरी यादों और माँ के सहारे गुजारो।अभी मैं जहाँ हूँ,वहाँ सुरक्षा कारणों से तुम्हें नहीं ले जा सकता हूँ।अगली पोस्टिंग होने पर तुम्हें अपने पास ले जाऊँगा।”

यह सुनकर  मीना एक गहरी साँस भरकर गंभीर  मुद्रा में चुपचाप  बैठी रही।पति को देशसेवा के लिए  जाने से भला कैसे रोक सकती थी!

पति के जाने के बाद उसकी जिन्दगी बिल्कुल वीरान-सी हो गई। वह धीरे-धीरे चुप-चुप रहने लगी।उसकी सास उसे हरसंभव खुश रखने की कोशिश करती,परन्तु उसे पति वियोग का दंश हमेशा सालता रहता।

अचानक  एक दिन उसने अपने घर में एक अपरिचित मेहमान को सास से बातें करते हुए  देखा।सास ने उस मेहमान  से परिचित कराते हुए उससे कहा-“बहू!यह नमन है,मेरी सहेली का बेटा।यहाँ कुछ दिनों के लिए  प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आया है।इसके खाने -रहने का ध्यान रखना।”

मीना ने एक नजर उसपर डाली,परन्तु उसे देखते ही उसके दिल में हलचल होने लगी।उसे नमन की आँखों में भी कोई आमंत्रण महसूस  हो रहा था।उन आँखों को देखकर उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। धीरे-धीरे नमन भी उससे घुल-मिलकर बातें करने लगा।नमन हमेशा उसे प्रशंसनीय दृष्टि से देखता।मीना की उम्र  ही ऐसी थी कि जब भी नमन उसे प्रशंसनीय  दृष्टि से निहारता तो उसके दिल में अवर्णनीय  मीठा-सा एहसास  होता।चेहरे पर एक अलग नूर झलक उठता।उसे एक बार फिर  से जिन्दगी खुबसूरत  लगने लगी।समय का अंतराल परिस्थितियाँ बदल देता है।वह नमन के प्यार  में बेकाबू होती जा रही थी।नमन के सामने पड़ते ही वह खुद को शादीशुदा होना भूल जाती।




एक दिन  नमन देर रात तक पढ़ाई  कर रहा था।उसकी सास ने कहा-“बहू! सोने से पहले नमन को एक कप काफी दे आना।”

मीना काॅफी बनाते हुए  मन-ही-मन सोच रही है कि आज नमन से अपने दिल की बात अवश्य कह दूँगी।वह काॅफी लेकर नमन के कमरे में जाती है और उसके सामने बैठकर कहती है-“नमन! मैं तुम्हारा साथ पाकर जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को अपनी दोनों हथेलियों में समेटना चाहती हूँ।त्याग, समर्पण, सेवा और रिश्तों का बोझ ढ़ोते-ढ़ोते मैं थक चुकी हूँ।मुझे अपने आगोश में ले लो।”

नमन हतप्रभ-सा दम साधकर मीना की बातों को सुनता रहा फिर उसने कहा-“मीना!हमारा रिश्ता एक हमदर्द  से ज्यादा कुछ नहीं है।मैं एक प्यार करनेवाले पति का और एक पनाह देनेवाले का गुनाहगार  बनकर कभी भी विश्वासघात नहीं कर सकता।तुम्हारे और मेरे रिश्तों की कुछ मर्यादा है,जिन्हें मैं तोड़ नहीं सकता।मर्यादा की दीवार टूटकर कुछ अनर्थ  न हो जाएँ,उससे पहले कल मैं यहाँ से चला जाऊँगा।”

नमन की बातों से मीना अचानक  से मानो सोते हुए जग पड़ी।वह.आत्मग्लानि से भर उठी।अपने व्यवहार  के कारण उसे आज अपना ही अस्तित्व बौना लग रहा था।वह सच्चा प्रेम करनेवाले पति के साथ विश्वासघात कर अनर्थ करनेवाली थी।अच्छा किया नमन ने कि उसे उसकी मर्यादा रेखा बता दी।उसके मन पर फैली धुंध धीरे-धीरे छूटने लगी और उसे पति का मुस्कराता हुआ चेहरा स्पष्ट नजर आने लगा।

समाप्त। 

#मर्यादा

लेखिका -डाॅ संजु झा।

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