हे गंगा मैया ….मेरी गोद भर दो… न जाने आपकी क्या मंशा है… मंशा.. वाह ..मिल गया नाम.. मैं सोच ही रही थी… यदि गंगा मैया मेरी मनौती पूरी कर , मेरा गोद भर देंगी तो मैं नाम क्या रखूंगी …? अब देखिए ना गंगा मैया…. मेरी माँ ने भी आपसे मनौती मांग मुझे पाया… और मेरा नाम ही काशी रख दिया …और आपने मेरी माँ को एक नहीं दो – दो बार मातृत्व का सुख दिया मेरी बहन सांची के रूप में……
आपके द्वार पर मैं भी आई हूं …वही मन्नत मांगने … गंगा मैया मेरी झोली भर दो … अब तो मुझे नाम भी मिल गया है… ” मंशा ” बिटिया हुई तो मंशा और बेटा हुआ तो गंगा…!
हो गया.. अब चले.. रघुवर दत्त की आवाज से काशी बोली…हाँ..हाँ… चलिए….
……..एक साल बाद……
पूरी बाप पर गई है…. किस्मत वाली होगी…. कहते हैं… लड़की पिता पर जाती है तो भाग्यशाली होती है ….और लड़का माँ पर जाता है तो वो भाग्यशाली होता है…. दादी ने मंशा के जन्म होने पर देखते ही कहा था….।
मंशा के पिता रघुवर दत्त सांवले लंबे चौड़े एक रौबदार पर्सनालिटी वाले व्यक्ति… ऊपर से पुलिस विभाग में कार्यरत …गजब का तालमेल होता था ….चूँकि रघुवर दत्त पुरुष थे… उनका रौबदार व्यक्तित्व सुंदरता से हमेशा ऊपर ही रहा….!
मंशा लड़की थी… सांवली… नैन नक्स वाली साधारण सी दिखने वाली …बिल्कुल पिता पर गई थी… बहुत ज्यादा सुंदर तो नहीं…. एकदम साधारण से चेहरे वाली मंशा…. जैसे-जैसे मंशा बड़ी होती गई ..घर में सभी को चिंता रहती ….एक तो लड़की है… ऊपर से सांवली.. और सुंदर भी नहीं ….कैसे शादी ब्याह होगा….?? पर मंशा के सामने कोई कुछ भी नहीं कहता…।
हालांकि मंशा सबकी प्यारी दुलारी थी… काशी तो हमेशा कहती… मेरी बिटिया एकदम अपने पिता पर गई है… ये भी बड़ी होकर अपने पिता की तरह पुलिस अफसर ही बनेगी….!
धीरे-धीरे मंशा बड़ी होती गई… इसी बीच अचानक एक दुर्घटना में काशी का देहांत हो गया…. अब इतनी छोटी बच्ची मंशा की कौन देखरेख करेगा…. फिर रघुवर दत्त की भी पूरी जिंदगी पड़ी है….।
काफी सोच विचार कर… कुछ समय पश्चात दादी ने रघुवर दत्त की साली सांची से रघुवर दत्त की शादी का पुनः प्रस्ताव रखा … . उनका सोचना था कि… मंशा की मौसी ही माँ रहेगी… तो शायद प्यार में कोई कमी नहीं होगी…. माँ की भांति मंशा को प्यार मिलता रहेगा….. रघुवर दत्त भी काफी अच्छे पद पर कार्यरत थे ….सो दोनों पक्षों ने आपस में सलाह मशविरा कर शादी के लिए हामी भर दी….।
साधारण ढंग से शादी हुई मौसी सांची… माँ बन इस घर में आ गई थीं…।
शादी से पहले भी सांची बच्चों से बहुत प्यार करती थी… वैसे भी मौसियां हमेशा बच्चों से प्यार करती ही हैं…।
प्यार की निरंतरता के लिए शायद हर किसी ने समझौता ही किया था…. !
सांची के लिए भी अपने जीजाजी से ही शादी करना कोई आसान काम नहीं था… काफी चुनौती और हिम्मत के अलावा अपने कुछ अरमानों को ताक पर रखकर ये निर्णय लेना पड़ा था…।
वही घर जो पहले अपनी ही दीदी काशी का हुआ करता था जहां वो छोटी बहन के रूप में दीदी जीजा जी के घर घूमने फिरने आया करती थी वही घर अपने ससुराल के रूप में… ऊपर से माँ बन बच्चें की पूरी जिम्मेदारी निभाना… शायद सांची के मन: स्थिति को समझने वाला कोई न था.. सब सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ ही देख रहे थे मायका पक्ष में भी और ससुराल पक्ष में भी… यदि किसी से सहानुभूति थी भी तो वह सिर्फ मंशा के लिए…
धीरे-धीरे मंशा बड़ी होती गई… बाल मस्तिष्क…. कहीं ना कहीं सांची जब तक मौसी थी… मंशा बहुत प्यार करती थी …पर माँ के रूप में सांची को अपनाना मंशा के लिए थोड़ा मुश्किल हो रहा था ….. विवशता के अलावा कोई उपाय भी नहीं था मंशा के पास ….।
कॉलेज की सीढ़ियों पर पैर रखते ही मंशा की अपने सहपाठी विहान से घनिष्ठता बढ़ गई …और ये घनिष्टता कब प्यार में बदल गया शायद मंशा भी ना समझ सकी….।
सारा परिवार मंशा के इस निर्णय के खिलाफ था… सिवाए सांची के…. सांची चाहती थी जिस लड़के से मंशा प्यार कर रही है.. उससे शादी कर ही ले… और वो तो मन ही मन मंशा के किस्मत की भी दाद दे रही थी कि…. मंशा के बहुत सुंदर ना होने के बाद भी विहान जैसे सुंदर लड़के ने शादी के लिए हां किया है…।
हालांकि सांची को परिवार.. समाज.. से उलाहना भी सुननी पड़ रही थी….. सौतेली माँ है ना… जानबूझकर ऐसा कर रही है ताकि लव मैरिज हो और दहेज ना देना पड़े… वगैरह-वगैरह ….न जाने कितनी बातें…. शायद सांची की मंशा गलत ना होते हुए भी ” सौतेली ” के टैग ने उसे हमेशा संदेह के दायरे में ही रखा… जबकि वो सौतेली माँ के साथ सगी मौसी भी थी…
मंशा…पिता की दूसरी शादी के बाद… थोड़ी विद्रोही तो हो ही गई थी… बात बात में…जिद करना… मनमानी करना… चिड़चिड़ाना….ये उसकी आदत सी बन गई थी…….
और अन्तत: सब से बगावत करके उसने विहान से शादी कर ही ली…।
हालांकि मंशा के ससुराल में भी लव मैरिज और मायके वालों का साथ ना होने के कारण … मंशा के प्रति बहुत ज्यादा प्यार और बहुत ज्यादा सपोर्ट नहीं था… फिर भी विहान और मंशा खुश रहते थे….।
कुछ लोगों का तो ये भी कहना था कि… मंशा ने जानबूझकर समाज में परिवार की इज्जत खराब करने के लिए ऐसा किया है….। बचपन के नन्हे मष्तिष्क में चल रहे विरोध ….जो प्रकट ना हो सका …इन्हीं सब माध्यमों से व्यक्त कर रही है …. या कह लें मंशा के बदला लेने का ये एक तरीका है ….और शायद माँ( सौतेली) भी तो यही चाहती थी….।
पर ये सब तो …कहने – सुनने की बातें हैं….।
कुछ समय बाद, मंशा ने एक प्यारी सी बिटिया रुनझुन को जन्म दिया…. यद्यपि मायके से पूरी तरह संबंध विच्छेद हो गया था ….फिर भी सांची कहीं ना कहीं मंशा की खबर रखती थी… प्रत्यक्ष रूप से नहीं…अप्रत्यक्ष रूप से….किसी न किसी माध्यम से….। उसे भी लोग गलत ही समझते…।
समय बीतते देर नहीं लगती… रुनझुन कब बड़ी हो गई…. हायर सेकेंडरी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली… इसी बीच पता चला…मंशा एक गंभीर बीमारी से पीड़ित हो गई है…..! उसे मालूम था वो कुछ दिन की ही मेहमान है….. धीरे-धीरे मंशा अपना ज्यादा समय रुनझुन के साथ ही बिताने लगी…।
बीमारी की अवस्था में लेटे-लेटे मंशा अतीत में गोते लगाती …तो कभी-कभी उसे समझ में नहीं आता कि…क्या उस वक्त की परिस्थितियों जिम्मेदार थी…? या वो गलत थी…? आखिर मायके से इतनी दूरी …? और फिर सांची माँ की गलती क्या थी..?
शायद गलती किसी की भी नहीं… काशी (माँ ) की अनुपस्थिति उसकी यादें ..कहीं गुम ना हो जाए … लोग माँ को भूल न जाए… यही सब बातें दिन प्रतिदिन मंशा को असुरक्षित महसूस कराती थी ….काफी दिनों से मंशा कुछ निर्णय लेने को सोच रही थी…..
काफी सोच समझकर मंशा ने रुनझुन को अपने पास बुलाकर बैठाया और सिर पर हाथ फेरते हुए बड़े प्यार से कहा…. रुनझुन बेटा यदि मैं ना रहूं …तो तू अपनी नानी के पास चली जाना ….वो तुझे बहुत प्यार करेंगी …..!
आप ऐसा क्यों बोल रही है मम्मी…? आपको कुछ नहीं होगा… आपके जितना प्यार मुझे दुनिया में कोई कर ही नहीं सकता….फिर नानी…?? जिन्होंने आपसे ही कोई संबंध नहीं रखा ..वो मुझे क्या प्यार करेंगी मम्मी…?
और आपने भी तो पहले कभी कुछ नहीं कहा… ये भी नहीं बताया कि नानी आपको और मुझे प्यार भी करती हैं…।
आज अचानक मेरे और आपके बीच नानी कहां से आ गईं…।
हां बेटा बचपन से मन में हमेशा एक डर बैठा था कि कहीं मेरी माँ ( काशी) के ममता को कोई ओवरटेक ना कर ले…
यदि मेरी माँ नहीं तो कोई नहीं ….ये विचार कभी मौसी को मेरी माँ बनने ही नहीं दिया….. मंशा ने अपने मन की बात अपनी बेटी के समक्ष खुलकर बताने की कोशिश की…। बचपन की हर वो बातें साँझा की…. जो मंशा के बचपन में बीता था…..। अनजाने में अपने द्वारा की गई गलत व्यवहार…सांची को माँ के रूप में अस्वीकार करना…. और भी तमाम बातें …..आज मंशा ने जिंदगी के बहुत से पन्ने…. रुनझुन के समक्ष खोल कर रख दिए थे….।
लेकिन मम्मी…. क्या आपको डर नहीं लग रहा है कि अब कहीं आप की ममता को कोई ओवरटेक ना कर ले….
नहीं बेटा बिल्कुल नहीं …..तेरे जन्म के बाद समझ में आ गया है कि माँ की ममता का ओवरटेक हो ही नहीं सकता…..।
पर अब ऐसा लग रहा है ….. काश… ममता का भी ओवरटेक हो सकता बेटा ..तो तुझे मेरे जितना या मुझसे भी ज्यादा प्यार करने वाला कोई होता….. कहते कहते मंशा की पकड़ ढीली पड़ती जा रही थी….।
माँ का हाथ छुटता देख रुनझुन ने जोर से मंशा का हाथ पकड़ना चाहा …पर मंशा का हाथ छूटकर एक तरफ लुढ़क गया ….।
साथियों कहानी है… कहानी समझ कर ही पढ़े अन्यथा ना लें …..! आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा..!
# बेटियां जन्म दिवस प्रतियोगिता (चौथी कहानी)
( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )
संध्या त्रिपाठी