मन्नत का धागा (भाग 2 ) – डॉ पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

वैसे तो आदित्य की हालत में भी सुधार था थोड़ा-थोड़ा सहारा लेकर खड़ा भी होने लगा था पर अभी भी वो बात बात में मानसी के ऊपर बहुत गुस्सा हो जाता था। मानसी आदित्य से प्यार के दो बोल सुनने को तरस जाती थी पर फिर भी वो ससुराल को अपना घर मानकर सब कुछ ठीक करने में पूरे मनोयोग से जुटी थी।

ननद की शादी में बहुत ज्यादा तो नहीं पर सभी आस-पास के रिश्तेदारों और परिचितों को बुलाया गया था। मानसी भाग भागकर सारे काम देख रही थी। सभी रिश्तेदार मानसी की प्रशंसा कर रहे थे पर ये प्रशंसा कहीं ना कहीं आदित्य के अभिमान पर चोट कर रही थी। तभी आदित्य ने कुछ रिश्तेदारों को आपस में कहते हुए सुना कि मानसी जैसी बहू किसी भी घर को स्वर्ग बना सकती है वैसे भी बेचारी की उम्र ही क्या है जो पूरी ज़िंदगी अब एक विकलांग पति के साथ गुजारनी पड़ेगी।

उन्होंने बातों-बातों में ये भी कहा कि सुनने में तो ये भी आया है कि दुर्घटना के बाद आदित्य के पिता बनने की क्षमता संभावना ना के बराबर है। लोगों की ऐसी बातें सुनकर आदित्य पूरी तरह से टूट गया। शादी तो अच्छे से हो गई। मानसी को उम्मीद थी कि शायद अब तो आदित्य कुछ प्यार के बोल उससे कहेगा पर उसका व्यवहार तो पहले से भी खराब हो गया था।

मानसी ने अपने दिल पर पत्थर रख लिया था वो आदित्य का सारा गुस्सा सहन करती। सुबह से उसको जबरदस्ती एक्सरसाइज करवाती। फिर व्यवसाय संभालने के लिए कंपनी निकल जाती। कंपनी को बहुत बड़ा प्रोजेक्ट मिलने वाला था इसी सिलसिले में आजकल उसको रात को बहुत देर हो रही थी। वो आदित्य के लिए जो केयरटेकर था उसको और मां को आदित्य के देखभाल का सब समझा कर जाती।

मानसी को कहीं ना कहीं इंतजार था कि अगर ये प्रोजेक्ट उनकी कंपनी को मिल गया तो वो आदित्य को सप्राइज देगी। वैसे भी डॉक्टर ने भी अब आदित्य की रिपोर्ट देखकर कहा था कि पूरी तरह से सीधा तो नहीं पर हल्का सा लंगड़ाकर वो बिना किसी सहारे के चल सकता है। मानसी ने सोच रखा था कि वो दोनों खुशियां घर पर एक साथ बताएगी पर उसे नहीं पता था कि आदित्य के मन में तो नई ही ग्रंथि जन्म ले चुकी है।

बहन की शादी में रिश्तेदारों के मुंह से सुनी बातों ने उसको और भी हीनभावना का शिकार बना दिया था। अब कहीं ना कहीं मानसी के कंपनी से देर रात वापिस आने को वो उसके चरित्र से जोड़ने लगा था। आज कंपनी को बड़ा प्रोजेक्ट मिल गया था। मानसी को आज निकलने में काफ़ी देर भी हो गई थी पर आज वो निश्चिंत थी क्योंकि प्रोजेक्ट तो मिला ही था साथ साथ डॉक्टर ने आदित्य के लिए भी बोला था कि अब वो भी अगले सप्ताह से कंपनी जाना और बाकी काम शुरू कर सकता है।

मानसी आज घर पहुंचकर अपनी सास और आदित्य के साथ ये खुशी बांटना चाहती थी पर जैसे ही वो बाहर निकली तो उसने देखा कि उसकी कार तो पंचर है तब जिस कंपनी से उनको प्रोजेक्ट मिला था उसके हेड ने बोला कि वो मानसी को ड्रॉप कर देगा। वैसे भी रात काफ़ी हो गई थी अतः ना चाहते हुए भी मानसी उनकी कार में बैठ गई। जब वो घर पहुंची तो उस कंपनी के हेड बाहर से ही मानसी को छोड़कर चले गए पर आदित्य ने देख लिया था। उसने इसको भी गलत ही लिया। 

जब मानसी घर पहुंची तब उसने आदित्य को गले लगाते हुए कहा कि वो आज बहुत खुश है तब आदित्य ने उसकी पूरी बात सुने बिना ही कहा कि खुश क्यों नहीं होगी अब उसको दुनिया के सामने त्याग की मूर्ति बनने का मौका जो मिल गया है। वैसे भी अब वो तो उसके काबिल रहा नहीं इसलिए उसने बाहर की दुनिया में अपने लिए साथी ढूंढ लिए जो उसको देर रात घर छोड़ कर जाते हैं। मानसी आज ये बातें नहीं झेल पाई।

वो इतने दिन से सब सहन कर रही थी पर अपने चरित्र पर इतने घिनौने इल्ज़ाम नहीं सुन पाई। आदित्य का चिल्लाना सुन उसकी माताजी भी कमरे से बाहर आ गई उन्होंने भी आदित्य को समझाने की कोशिश की पर उनको भी आदित्य ने ये कहकर कि इसने आपकी भी आंखों पर पट्टी बांध दी है चुप कर दिया। मानसी तो वैसे ही इस तरह की बातें सुनकर पूरी तरह टूट गई थी। 

पूरी रात वो घर में बने ऑफिस में बहुत सारे पेपर्स तैयार करती रही और सुबह आदित्य के उठने से पहले अपनी सास को एक लंबा चौड़ा पत्र आदित्य के नाम लिखकर थमा गई। साथ-साथ ये भी बोली कि मां जा रही हूं थोड़े दिन के लिए कहीं,पूरी तरह टूट चुकी हूं। शायद मेरे यहां ना होने से आदित्य कुछ बेहतर महसूस करें।

ये मेरा घर है,मेरे सपनों की दुनिया है। सात वचन लिए हैं आदित्य के साथ तो जीवन भर साथ भी दूंगी पर अभी मेरा जाना आवश्यक है। आदित्य अब ठीक हैं डॉक्टर ने कहा है कि अब वो कंपनी जाना भी शुरू कर सकते हैं।आप चिंता मत करना मैं खुद आपसे संपर्क करूंगी। आदित्य की मां मानसी की दशा समझ रही थी बस वो उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली कि मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है।

जब आदित्य सोकर उठा तो मां ने उसको मानसी का पत्र थमा दिया। उस पत्र में कंपनी को बड़ा प्रोजेक्ट मिलने से लेकर सारी बात लिखी थी। साथ साथ ये भी लिखा था कि क्या एक सफल शादी का आधार बच्चा होना ही है? वो तो अभी इन सब बातों से आदित्य को दूर रखना चाहती थी क्योंकि वो चाहती थी कि अभी वो सिर्फ ठीक हो जाए बाकी सब बातों के लिए पूरी ज़िंदगी पड़ी है। उसने तो ये भी सोचा था कि जहां तक बात बच्चों की आएगी तो वो तो गोद भी लिए जा सकते हैं।

वैसे भी जब एक पति पत्नी बिना किसी रक्त संबंध के एक दूसरे का ज़िंदगी भर साथ निभाते हैं तो किसी अनाथ बच्चे को प्यार देकर अपना क्यों नहीं बनाया जा सकता। आदित्य को ये पत्र पढ़कर अपनी सभी गलतियों का एहसास हो रहा था। वो अभी अपने ख्यालों की दुनिया में ही था कि तभी कंपनी का मैनेजर जिसको मानसी कंपनी का सारा काम समझाकर गई थी वो आया था। उसके आने पर आदित्य अपनी यादों की दुनिया से वापिस आया।

वो आज आदित्य को अपने साथ ले जाने के लिए आया था उसको भी ये नही पता था कि मानसी कहां गई है? मानसी के माता पिता भी उन लोगों की शादी के बाद अपने बेटे के पास विदेश चले गए थे इसलिए उनसे भी मानसी का पता मिलना संभव नहीं था।  मानसी का फोन भी बंद आ रहा था और तो और उसको मिलाने पर नेटवर्क क्षेत्र से बाहर होने का संदेश आ रहा था। आदित्य को रह रहकर अपने किए पर पछतावा हो रहा था। तभी उसे याद आया कि मानसी कहती थी कि जब भी कोई समस्या का हल नहीं मिलता है तो वो महादेव की शरण में जाती है। वो बनारस जाने की बात भी बहुत बार बोलती थी। 

आदित्य को लगा कि हो ना हो मानसी अवश्य ही बनारस गई होगी। आदित्य ने मैनेजर को कहकर बनारस का टिकट बुक करवाया और पहुंच गया काशी विश्वनाथ की शरण में। 

उसको पूरी उम्मीद थी कि महादेव उसका और मानसी का साथ ऐसे टूटने नहीं देंगे। उसने दोनों के मिलन के लिए वहां मन्नत का धागा भी बांधा। पूरा दिन निकल गया था वो भूखा प्यासा बनारस के घाट पर था। अभी भी उसकी तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं थी। मानसी उसकी एक एक दवाई का पूरा विवरण भी पत्र में लिख कर गई थी।

वो अगले दिन भी सुबह से ही घाट पर आ गया था।आज भी उसको आए काफ़ी देर हो गई थी उसको अपने मन्नत के धागे पर पूर्ण विश्वास था। वो अपनी सोच में था तभी कुछ शोर सुनाई दिया। एक बच्चा पानी में डूबने वाला था पर किसी ने तुरंत तत्परता दिखाकर उसको बचा लिया था। तभी आदित्य ने देखा कि बच्चे को बचाने वाला और कोई नहीं उसकी मानसी ही थी। 

मानसी को देखते ही आदित्य उसके पास पहुंचा और उससे अपने किए की माफ़ी मांगते हुए घर चलने का अनुरोध करने लगा। आदित्य ने ये भी कहा कि पुरुष कभी भी एक स्त्री की बराबरी नहीं कर सकता। उसके स्त्री से बलशाली होने की बात भी शायद उसके पुरषोचित दंभ को संतुष्ट करने के लिए कही गई होगी।

त्याग और बलिदान की जो भावना एक स्त्री में हो सकती है उसमें पुरुष कहीं से भी स्त्री की बराबरी नहीं कर सकता। जब पुरुष कुछ और नहीं कर पाता तो वो अपने अहंकार की पूर्ति के लिए स्त्री के चरित्र को निशाना बनाता है मैंने भी वही किया। जिसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं।अपने इस पति को उसकी पहली और आखिरी गलती मानते हुए माफ़ कर दो और मेरे मकान को फिर से हमारा घर बनाने के लिए मेरे साथ चलो।

आदित्य की बातें सुनते ही मानसी आंखो में आंसू भरते हुए बोली कि अपने घर तो मुझे लौटना ही है क्योंकि सात जन्मों का साथ जो है तुम्हारे साथ। वैसे भी ये हाथ छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा था। बस थोड़ा टूट चुकी थी इसलिए चली आई थी महादेव के चरणों ने। वैसे भी तुम्हारे मन्नत का धागा और हमारा प्यार इतना मजबूत था कि हमें मिलना ही था। हवाओं में गूंजती हर हर महादेव की आवाज़  और बनारस का गंगा घाट आज फिर से एक मिलन का साक्षी बना था।

मन्नत के धागे की तरह मिले हो तुम मुझे

रब करे ये गांठ ज़िंदगी भर ना खुल पाए।। 

आदित्य ने ये लाइन बोलते हुए मानसी को गले से लगा लिया।

डॉ पारुल अग्रवाल,

नोएडा

दोस्तों ये थी मेरी कहानी। अगर पसंद आए तो प्रतिक्रिया अवश्य दीजिए। स्त्री ही है जो मकान को घर बनाती है। निर्माण और विध्वंश दोनों ही उसकी गोद में पलते हैं।मानसी ने समझदारी से काम लिया और अहंकार में ना पड़ते हुए अपने घर को बिखरने से बचा लिया।

नोट: मेरा पाठकों से अनुरोध है कि कहानी को कहानी की तरह लें। उसको वास्तविकता के तराज़ू पर ना तोलें। कई बार कहानी लेखक की कल्पनाशीलता पर भी आधारित हो सकती है।

पीछे की कहानी मन्नत का धागा भाग 1 नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ें

मन्नत का धागा – डॉ पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

डॉ पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

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