हालांकि नयी जिन्दगी की शुरुआत इतनी बुरी भी नहीं थी।
सुधीर खुले दिल वाले समझदार पति साबित हुए थे।
उन्हें इस बात से कि … शिवानी की आगे की पढ़ाई जारी रहे या नौकरी करना चाहे तो ?
किसी बात से ऐतराज नहीं था।
कितना सरल हो जाता है ना जीवन बिताना तब …
जब सामने वाला भले ही आपके मन की पसंद का ना होते हुए भी रिश्ता निभाना बखूबी जानता है।
वरना तो कभी-कभी हम इसी में उलझ कर सारी जिन्दगी तनाव युक्त रह कर गंवा देते हैं।
उम्र से प्रभावित सोच का कोई दबाव नहीं था।
सुधीर की आदत है वह हर बात बिना लाग- लपेट के सादगी और आसानी से कह देते हैं।
बहरहाल… सब मिला कर शिवानी के एक तरफ ‘दोस्ती’ और ‘पढ़ाई’ दोनों ही बीच में अधर में छूट जाने से गुस्से और समझौता नहीं करने की कोई खास तार्किक वजह तो नहीं थी।
तो बस … वह भी समय की धारा में बहती हुई आगे बढ़ती रही है।
सब कुछ… घर, परिवार ,बेटे और प्यार करने वाली बिटिया के रहते हुए भी आज न जाने क्यूँ और कैसे एक फाँस सी चुभ रही है ?
शायद अकेलेपन का अहसास या रुमानी मौसम ?
या फिर जो कुछ भी हो…
उसके तन-मन में जैसे कुछ टीस रहा है
सच समय कितना आगे निकल गया है।
लेकिन आज न जाने क्यूँ उसका दिल बेहद मासूम किस्म की उछाल ले रहा है।
मन जोर-जोर से हँसने के साथ गाने- गुनगुनाने का भी कर रहा है।
लेकिन हँसी को होठों में दबा कर वह मोबाइल खोल कर बैठ गई।
सुशांत के डी पी की हरी बिंदी जलती देख उंगलियाँ खुद बखुद मैसेंजर खोल कर बैठ गई ,
” बहुत वक्त गुजर चुका सुशांत करीब तीस पैंतीस साल… “
उधर से जबाब ,
” हाँ यह बात तो है बच्चे जवान हो कर अपने-अपने घर बस गये “
” वाह !
और तुम बताओ कुछ मिसेज सुशांत के बारे में तो जिक्र ही नहीं किया “
उधर एक सन्नाटा छा गया… जैसे सीने में ठंडी आग अटक गई हो ।
काफी देर बाद… एक छोटी लाइन लिख कर आ गई …
” काश अतीत व्यतीत ना होता ? “
पढ़ कर शिवानी धक्क से हो कर गई।
उसके दिल में एक हूक सी उठती लगी ।
५फिर शुभरात्रि की इमोजी आई थी उधर से।
लेकिन तब तक शिवानी का मेसेज जा चुका था,
” क्या हम मिल सकते हैं ? “
हालांकि शिवानी जानती है समय का सिरा पकड़ना इतना आसान नहीं होता है।
उसने डिलीट करने वाले बटन पर उंगली रखनी चाह कर उंगली बढाई ही थी कि टुन्न की आवाज,
कुछ उन्मत्त सी शिवानी ने मेसेज पढ़ा ,
” क्या सच में ऐसा संभव हो सकता है ?”
” बिल्कुल ! तुमने ऐसा क्यों पूछा ?”
“बस ऐसे ही ‘
“कहाँ ?”
” जहाँ तुम कहो ? “
फिर बदहवासी के इसी आलम में उसने फोन बंद कर दिया।
दरअसल इस दुविधा वाले माहौल के असमंजस में पड़ी हुई गुजरते समय और आसपास की भीड़ के बीच वह अकेली अपने आप को सनाके के साथ घिरी हुई पा रही है।
शिवानी की उधेड़बुन जारी है।
यह तो वो अब समझ पाई है कि जीवन इसी का नाम है।
एक दिन बुनी जाती है कोई कहानी तो दूसरे दिन ही उघेड़ दी जाती है।
एक एक क्षण उस पर भारी गुजर रहा है।
यूँ अचानक फिर से सुशांत से मिलने की कल्पना मात्र से ही मन कमजोर होने लगा है।
यह कैसी अपेक्षा थी ? कैसा मोह है ?
उम्र के इस मोड़ पर एक शादीशुदा स्त्री का किसी गैर मर्द के साथ यों आधी रात को बातचीत और उससे मिलने का आग्रह करना …?
क्या उचित है ?
लेकिन फिर अगले ही पल दो विरोधी परिस्थितियों की जकड़ शिवानी को बराबर कसती जा रही है।
सुधीर के प्रति अपने कर्तव्य निभाने की पुकार और दूसरी ओर बीते कल के सहपाठी सुशांत से पनपा भावनात्मक लगाव।
शिवानी चौंक गयी गहरी खामोशी में स्वगत कथन करती हुई उसकी आवाज़ कुछ कंपकंपा सी गयी ,
” तुम मेरा भावनात्मक संबल रहे हो तुम्हारे साथ जितना बाँट सकती थी बाँट चुकी हूँ “
बेचैन है शिवानी… उसे समझ नहीं आ रहा है वह क्या करे ?
अपना ध्यान कैसे बंटाएं ?
कहाँ बंटाएं ?
वह आधी रात को सूने घर की बालकॉनी में खड़ी सन्न पड़ी हुई आने-जाने वाली भीड़ में अपना ध्यान बँटाना चाहती है किंतु बेचैन मन तुरंत ही वहाँ से वापस लौट कर सामने फुफकारते हुए सर्प के समान लिपट जाता है।
भावनाओं से भरी शिवानी ने नजर उठा कर दीवार घड़ी की ओर देखा ,
” रात के एक बज रहे हैं उसने मोबाइल खोल लिया “
अगले ही क्षण टुन्न की आवाज के साथ मेसेज ,
“क्यों सोच- विचार कर लिया अच्छी तरह से ? मैं तुम्हारे शहर में ही हूँ “
के साथ मुस्कुराहट वाली इमोजी ।
” धत् “
एक हल्की सी स्मित उसके चेहरे पर छा गयी…
” कॉलेज में तो तुम बहुत डरपोक हुआ करती थी अब डर नहीं लगता तुम्हें “
“नहीं , कितना कुछ अनकहा रह गया ना हमारे बीच “
उसने सोचने वाली इमोजी भेज दी।
” वो सब अब कह सुन लेगें ” उधर से त्वरित जबाब आ गया।
” अगर अब भी तुम्हें मेरे साथ मिलकर कहने सुनने की नयी शुरुआत नामंजूर हो तो फिर रहने देते हैं “
खिड़की से आती तेज बरसाती हवा से शिवानी काँप गयी ,
” लगता है तुम्हारे हस्बैंड बहुत नेकदिल शरीफ शख्श हैं ,
तभी तुम बेखौफ और आत्मविश्वास से भरी हो “
“अच्छा हम कहाँ मिल रहे हैं ? “
उधर से पूछे गये सवाल पर चुप हो कर उसने अपनी पलकें कस कर मूंद ली हैं।
कुछ पलों के उपरांत अनिर्णय की सी मनस्थिति में थरथराती उंगलियों से ऐड्रेस सेंड कर दिया।
साथ ही शुभरात्रि की इमोजी भी लगा दी।
फिर नजर उठाकर दीवाल घड़ी को देखा साढ़े तीन बज रहे हैं।
” अब सो जाना चाहिए “
यह सोच कर बिस्तर पर लेट गयी …
उसने आंखें बंद कर ली… निद्रा के आने का इंतजार करने लगी।
अगला दिन शुक्रवार था।
शिवानी की नींद सुबह पक्का साढ़े नौ बजे टूटी गई मन ही मन ईश्वर को प्रणाम कर अलसाये हाथों से मोबाइल उठा लिया।
पहले सुधीर फिर बेटे और बिटिया को औपचारिक विश के साथ ही ये मेसेज डाल दिया ,
” आज एक पुराने कॉलेज मित्र के साथ टाइम स्पेंड करने जा रही हूँ शाम या रात तक लौटूँगी “
” सो प्लीज डोंट डिस्टर्ब मी ” ऐसा लिख कर उठ गई।
जबाब में सुधीर और बेटे का संक्षिप्त जबाब ,
” ओके ” आ गया।
लेकिन बिटिया ने तो पूरी खैर- खबर ले कर ही जान छोड़ी ,
“ओके ममा,
बट ड्राइवर को साथ ले जाना। खुद ड्राइव मत करना। इन दिनो आपकी बी पी बढ़ी हुई है … वगैरह, वगैरह “
जबाब में शिवानी ने कुछ भी प्रतत्युत्तर न दे कर सिर्फ फ्लाइंग किस की इमोजी भेज दी।
क्रमशः
मन का मिलन (अंतिम भाग )
मन का मिलन (अंतिम भाग ) – सीमा वर्मा : Moral Stories in Hindi
मन का मिलन (भाग 3)
सीमा वर्मा /नोएडा