एक रंगीन मुस्कुराहट उसके होठों पर छा गई।
अपनी ही लगन में गुनगुनाती हुई उठ कर बैठ गयी।
फ्रेश हो कर आईने के सामने खड़ी हो तैयार होने लगी। आज उसने गहरे नीले रंग की शिफॉन की साड़ी जिसपर हल्के-हल्के गुलाबी रंग के फूलों बने हुए हैं निकाल ली है।
यह रंग उसे बेहद पसंद है… जब कभी सुधीर के साथ वह इसे पहन कर निकलती है उसकी दिली इच्छा रहती है। सुधीर से तारीफ पाने की ।
दुनिया में कौन ऐसी स्त्री होगी जो पति की नजरों की प्रशंसा की हकदार नहीं बनना चाहेगी ?
इस मामले में सुधीर ने उसे ताउम्र निराश ही किया है।
उसका शुष्क व्यवहार उसे हर बार कचोट जाता है।
अपने लंबे चमकीले बालों को हल्के ढ़ीला छोड़ कर गुलाबी क्लचर से बांध लिये ,
” देखूँ सुशांत की क्या प्रतिक्रिया रहती है उसकी अनूजा से कमतर तो नहीं हूँ “
यह सोचती हुई शिवानी ने कैब वाले के नम्बर डॉयल कर दिए।
पांच मिनट में ही कैब आ गई थी। जिसमें बैठ कर उसने पीछे की दोनों खिड़की खोल दी।
मंद-मंद-मादक हवा आ कर उसके खुले बालो को छेड़ने लगी है।
मलमली सुबह , उजास उमंगें शिवानी को दिन ,महीने और साल… कुछ भी याद नहीं रहा है ।
करीब आधे घंटेभर का रास्ता जिस पर न जाने कितनी बार आई है।
वही आज नई लग रही है।
तय किये स्थान पर जो एक बेहद खूबसूरत ‘ रोज गार्डेन है’ वह कैब से उतर गयी पैसे चुकाए।
जिन्दगी में पहली बार उसे लोगों की पकड़े जाने एवं लोगों की नजरों में धूल झोंकने का सा रोमांच हो आया है।
वह किनारे लगी बेंच पर बैठी गई एवं किशोरी की सी तत्परता से कनखियों से सुशांत के आने वाली राह को निहार रही है।
दिल में धुकधुकी सी हो रही है। यह प्रतीक्षा की घड़ी कितनी लंबी है।
उसे याद आ गया कॉलेज के जमाने में छिप-छिप कर सुशांत को निरखना।
तभी ठंडी हवा का झोंका सा बदन से टकराया अगले ही क्षण उसकी नजर सामने से आते हुए सुशांत पर जा टिकी।
सजा -संवरा सुशांत,
बिल्कुल पहले की तरह गहरी काली आंखें , होठों पर थमी हुई मुस्कुराहट
काई रंग के गुरु शर्ट और क्रीम कलर की पैंट।
जिस सुशांत पर सारे कॉलेज की लड़कियां मरती थीं।
धीमी चाल में उसकी ओर ही बढ़ा चला आ रहा है।
नजदीक आ कर बेतकल्लुफी से उसने शिवानी की ओर हाथ बढ़ाया तो है।
लेकिन पहली ही की तरह शिवानी ने संकोच भरी मुस्कान बिखेर कर अपने दोनों हाथ जोड़ दिए हैं ,
सुशांत हँस पड़ा ,
” ओह तो सिर्फ़ मैसेजिंग में नीडर बन पाई बाकी पूरी वैसी की वैसी ही “
” हाँ सुशांत हम लड़कियों को बचपन से ही ऐसी शिक्षा दी जाती है कि घर,परिवार, समाज और सर्वोपरि पति की मान-मर्यादा का ध्यान और उसकी इज्जत करनी चाहिए इसका साफ अर्थ यही हुआ ना,
इस सब के समक्ष अपने को कुछ भी तवज्जो नहीं देना है “
शिवानी की आवाज कहीं दूर से आ रही थी।
” छ़ोड़़ो उनकी बातें, आज हम सिर्फ अपनी बातें कहे और सुनेगें “
सुशांत की आवाज शिवानी के रोम-रोम झंकृत कर गये।
” तुम तो जरा भी नहीं बदले “
“तुम ही कहाँ बदली हो बाल बिल्कुल वैसे ही चमकीले, घने,लंबे और काले “।
शिवानी शर्मा गई फिर बच्चों की सी चपलता से बोल पड़ी,
” के राज ब्राह्मी आँवला केश तेल “
और खिलखिलाकर कर हँस पड़ी।
चारो ओर फिजा़ में जैसे खुशबू सी बिखर गई।
कितना कुछ सोच कर आई है वो कि सुशांत से मिल कर अपने पिछले दिनों के सारे गिले शिकवे एक एक कर के दूर कर लेगी …
उसने ध्यान से सुशांत की ओर देखा ,
” आंखों में उदासी की गहरी छाया जैसे अंतस्तल में करुणा की पुकार छिपी हो “
वो घबरा गई और घबराहट मे ं उसने सुशांत के हाथ थाम लिए दोनों की हथेलियाँ आपस में गुथ गई हैं।
उसके गले में कुछ जैसे अटक सा रहा है।
सुशांत के थोड़ा और निकट हो कर उसकी पनिली आंखो में झांकने लग गई
जिसमें कितनी ही नदियों का संगम लहरा रहा है ,
” मानों आंखें किसी को तलाश रही हों “
सुशांत ऐसा पहले तो कभी नहीं था।
शिवानी ने बस यों ही उससे पूछ लिया ,
” तुमने मिसेज के बारे में नहीं बताया ? “
सुशांत एकटक उसकी ओर देख रहा है एक पछाड़ खाई हुई लहर के समान ,
” अब मेरी चिंता करने वाली ‘अनूजा ‘ इस दुनिया में नहीं है।
करीब पन्द्रह साल पहले ही कैंसर ने उसे अपना शिकार बना लिया दिन बीतने के लिए होते हैं तो बीत रहे हैं… “
शिवानी धक सी हो कर रह गई।
मन के किसी कोने में सुशांत की पत्नी के लिए अनजाने में पनपी ईर्ष्या भाव उसका उपहास उड़ा रही थी।
सुशांत पूछ बैठा ,
” और तुम ? तुम बताओ ? तुम्हें इस तरह सबसे छिपछिपा कर मुझसे मिलने आने का कोई गिल्ट तो नहीं है ? “
शिवानी ने चौंक कर अपने दोनों हाथों में पकड़ी हुई सुशांत की कलाई हठात् ही छोड़ दिया एवं आस पास देखा।
ढ़लते हुए सूरज की रोशनी उन दोनों पर पड़ रही है वे एक बड़ी सी झील के किनारे बने पार्क में खड़े हैं बीच में चुप्पी पसरी है … मानों बगैर कुछ बोले एक दूसरे के हिस्से की उदासियाँ अपने में समेट रहे हैं।
शिवानी उसकी पत्नी के बारे में कितना कुछ पूछने की हसरत लिए मन में आई थी लेकिन…
अब वह उसके इस निहायत गोपनीय एकांत के समंदर में कंकड़ नहीं उछालना चाहती है।
रही खुद उसके गिल्ट की बात तो फिलहाल…
उनकी इस मीठी मुलाकात को लेकर रात भर बुने सपनों का महल … इस वक्त रेत की तरह भरभराकर गिरने को है।
कहाँ वह सोच रही थी ,
” मेरे परिवार ने मुझपर अपनी मर्जी की शादी थोपकर अन्याय नहीं किया है ? “
“क्या मैं अपनी मर्जी से अपनी कामना भी व्यक्त भी नहीं कर सकती “
और अब ?
सुशांत का इतना बड़ा अनदेखा,अनबोला दुखः उसका हृदय विदीर्ण हुआ जा रहा है।
आंखें प्रश्न वाचक हो गईं हैं ? माथे पर बल पर गये।
इस हाल में उसे देख सुशांत ने जैसे सब समझते हुए उसके कंधे पर आश्वस्ति भरा हाथ रखा।
तो शिवानी की रुलाई फूट पड़ी।
सुशांत के कंधे पर कुछ पल के लिए अपना सिर टिका दिया…।
फिर तुरंत ही उसे दूर कर उद्गिन अवस्था में वहीं पीछे छोड़कर दो कदम आगे हो कर चल दी…
बहुत दूर जा कर फिर पीछे मुड़कर भी नहीं देखा।
अचेतावस्था में कितनी दूर निकल आई थी उसे पता भी नहीं चला।
कि मोबाइल की घंटी लगातार बज रही है
आवेग से भरी हुई उसने कॉल काट दिया और वहीं घांस पर थकी सी बैठ गई।
जब उसकी चेतना वापस लौटी। उसकी नजर पास के वृक्ष पर चली गयी जिसकी जड़ों से निकली कोपल शायद देखरेख के अभाव में सूख रही हैं।
उसने फोन चेक कर वापस उसी नम्बर पर लगाया ,
” हैलो … हैलो ममा आप कहाँ हो ? “
बेटी की बेचैन, चितिंत आवाज …
आप फोन ही नहीं उठा रही हो पा आपके लिए पूछ रहे थे उन्हें कॉल कर लें “” वाकई कुछ नहीं सुनाई दे रहा है बेटे “
वह खुद ही बुदबुदाई।
उसका स्वर रुद्ध हो गया। आंखों में नमी आ गई पता नहीं यह नमी किसके नाम की थी ?
” सुशांत या फिर ‘अनूजा ‘ ? “
एक बार इच्छा हुई कि वापस जाकर सुशांत के तनहाई की गहराइयों को माप आए।
जिसके लिए पिछले दिनों जाने अनजाने कितना कुछ सोचती रही है … उस सब के लिए अपने अनुमान पुख्ता कर आए।
लेकिन नहीं!
यह सुशांत की भावनाओं का निहायत निजी क्षेत्र है जिसमें प्रवेश ?
कम से कम शिवानी के लिए वर्जित है।
सुधीर का कॉल उसके फोन पर आ रहा है इस बार उसने फोन उठा लिया है,
“हैलो , मैं आ गया हूँ तुम चाहो तो आराम से आ सकती हो ?”
अभी तक शांत हो चुकी है शिवानी उसने फौ़रन जबाब दिया ,
” नहीं सुधीर मैं निकल चुकी हूँ बस थोड़ी देर बाद हम ‘साथ होगें ‘
उसकी आवाज में कंपन है ,
“तुम इतनी बुझी-बुझी सी लग रही हो क्या फ्रेंड से मिल नहीं पाई ? “
कुछ बोलना चाहती है शिवानी पर नहीं रिश्तों की मर्यादा … हर बार की तरह इस बार भी आड़े आ गई है … चुप ही रही।
वापसी के लिए कैब बुक कर दिया …
घर पहुंच कर शिवानी ने कॉलबेल पर हाथ रखती इसके पहले ही सुधीर की आवाज ,
” आ जाओ दरवाजा खुला है…
शिवानी पर्दा हटा कर अन्दर आ गई। टेबल पर दो प्याला गर्म चाय का रखा है।देख कर ही खुशी से भर गई।
इधर-उधर सिर घुमा कर देखा सुधीर कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
तभी हमेशा की तरह उनकी आवाज़ परेशान आवाज आई ,
“अरे या…र मेरा ‘ए.टी.एम ‘ कार्ड देखा है कहीं मिल नहीं रहा है जरा आ करा ढ़ूढ़ो ना “
कोफ्त हुई शिवानी चाय छोड़ कर उठ गई …,
” आप भी ना सुधीर!
कभी नहीं सुधरोगे ये देखो सामने तो पड़ी है ” कहती हुई साइड टेबल से उठा कर दे दिए।
“क्यूँ … सुधरूँ ?
जब तुम्हारा साथ है कहते हुए शिवानी को बाहों में भरकर उसके बुदबुदाते होठों को अपने होठ से बंद कर दिए।
समाप्त
मन का मिलन (भाग 4)
सीमा वर्मा /नोएडा