अर्पिता जल्दी-जल्दी काम निपटा रही थी.जब से वह खबर सुनी थी.. खबर क्या, थी तो अपने घर की ही बात मगर मन को बेचैन और परेशान करने वाली बात थी.
मम्मी के पास जाने की हड़बड़ी में कहीं बर्तन गिर रहे थे,कहीं सब्जी काटते हुए हाथ कट रहा था,, टंकी से पानी जाने कब से बहे जा रहा था,
इन्हें आवाज लगाई लेकिन महाशय फोन में बिजी थे क्लाइंट से बातें हो रही थीं. शिरीष भैया कमरे में ही थे मगर उनसे कुछ कहने का मन ही ना हुआ. मम्मी जी,पापा जी अपने योग ध्यान में लगे हुए थे.
मम्मी जी ने तो वैसे भी घर के कामों से अपना पल्ला झाड़ा हुआ है. खुद ही सब काम निपटाकर अर्पिता अपने पति के पास आई..
..आपका लंच पैक्ड है, जाते हुए ले लीजिएगा. आज नाश्ता खुद ही मैनेज कर लेना.मम्मी के पास जा रही हूँ.
ये मुस्कुरा दिए.. उनकी हँसी में अर्पिता का उपहास उड़ाने जैसी बात थी.
अर्पिता मुँह घुमा कर चली आई.
…. मम्मी कल रात को जो फोन पर बताया, क्या सच है..
… हां बेटा,अब कोई क्या कर सकता है दोनों ने आपस में ही सब तय कर रखा है फिर तुम्हारा देवर ही तो है,क्या बुराई है…
हाँ, देवर है तभी तो मन डर रहा है. अर्पिता ने मन में ही सोचा. अंकिता, अर्पिता की छोटी बहन और शिरीष भैया उसके देवर..दोनों में प्रेम का एक गहरा रिश्ता बन चुका था
और उसे भनक भी नहीं लगी, यहाँ तक कि बात शादी तक पहुँच गई,
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अंकिता को अपनी छोटी बहन से अधिक एक मित्र मानती थी अर्पिता, बचपन से ही दोनों में कितना प्रेम रहा था, एक साथ हर काम किया था दोनों ने,
आज शिरीष भैया की वजह से अंकिता उससे इतनी दूर हो गई कि उसने इतनी बड़ी बात उससे छुपा के रखी. अभी तो शादी भी नहीं हुई और रिश्तो में दरार पड़नी शुरू हो गई.
नहीं… अर्पिता यह शादी नहीं होने देगी मगर शादी को अगर उसने टाला तो शायद अंकिता और उसका रिश्ता ही टूट जाए.
महज़ कुछ दिनों के अंदर विवाह की सब रस्में पूरी हुईं. अंकिता,, उसकी बहन से उसकी देवरानी बनकर गृह प्रवेश कर गई.
अर्पिता का ससुराल और ससुराल वाले अंकिता के भी ससुराल वाले हो गए थे. मगर किसी अनजाने डर से अर्पिता का मन डरा हुआ था.
ननदों को भी यह रिश्ता पसंद नहीं था वह और भी डरा रही थीं, उसे..मगर फिर उसने सोचा कि अगर बड़ी बहन बनकर सँभाल सकती हूँ
तो जेठानी भी तो बड़ी बहन जैसी ही होती है ना.इस रिश्ते को भी वह सँभाल लेगी अपनी सूझबूझ से.
सूझबूझ भी तब तक ही काम आती है जब तक उसका कोई गलत फायदा ना उठाए. अंकिता बदलती जा रही थी.
शिरीष भैया की कमाई, अर्पिता के पति की कमाई से अधिक थी. पैसा किसी भी रिश्ते को बदल देने में एक अहम भूमिका निभाता है. अंकिता को हमेशा यह गुमान रहता था कि पैसे के बल पर वह कुछ भी कर सकती है. शायद इसीलिए वह घर में सामंजस्य बिठाकर नहीं चल पाती थी. मम्मी जी की तो आदत थी बात-बात में टोका टाकी करने की,
अर्पिता ने क्या नहीं सहा था यह सब,सास और नंद की तानेबाज़ी तो जैसे ससुराल का एक रिवाज होते हैं मगर अंकिता को यह सब नहीं पसंद था. वह उसे भी मना करती यह सब बर्दाश्त करने को..
…..दीदी, तुम यह क्यों बर्दाश्त करती हो. तुम तो बर्दाश्त करके अच्छी बन जाती हो मगर हर कोई तुम्हारे जैसा नहीं होता.. तुम ही महान बनो..
अर्पिता बड़ी होकर भी चुप रह जाती. एक बार अगर देवरानी होती तो उसे कुछ कह भी देती..अपनी बहन को क्या कहे.
बात बात में अंकिता उसे ताने देने लगी……
तुम यह सब अच्छी बहू बनने के लिए करती हो..
मुझे नहीं बनना अच्छा.. मैं तो इनसे कहूँगी कि अपना अलग फ्लैट ले लो. और एक दिन जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाकर अंकिता ने अपना घर मकान सब अलग कर ही लिया.
वही बहन जिसके साथ बचपन में एक थाली में परोसा खाना साथ खाया था आज ईश्वर ने एक घर में साथ-साथ रहने का मौका दिया मगर रह ना पाए. धीरे-धीरे यह दरार और गहरी होती गई. मौके से मेहमान की तरह आती अंकिता और हाजिरी लगाकर चली जाती.किसी से उसको कोई मतलब नहीं रह गया था.
शिरीष भैया ने भी तो उसका खूब साथ दिया था.अक्सर ऐसा होता है,, बहनें जब देवरानी जेठानी बन जाती हैं, वह बहनें नहीं रह जातीं.
सब कहने की बातें होती हैं.. जेठानी या देवरानी बहन जैसी हो सकती है.. बहन नहीं हो सकती.
बहनों का प्यार तो अनमोल होता है. हालाँकि समय के साथ वह भी बदल ही जाता है..मनमुटाव की विडंबना हर रिश्ते के साथ जुड़ी हुई है.
श्वेता सोनी
#मनमुटाव