“मन की पीड़ा ” – गोमती सिंह

——-पुष्पा बचपन से ही गुमसुम सी चुपचाप स्वभाव की लड़की थी , वह एक संयुक्त परिवार में रहती थी , अतः घर में  रिश्ते दारों का आना जाना लगा रहता था  इसके बावजूद घर में कौन आ रहे हैं, कौन जा रहे हैं इन सब  गतिविधियों में उसकी जरा सी भी रूचि नहीं थी ।

        धीरे-धीरे उम्र बढ़ने लगी अब वह उम्र के ऐसे दौर में आ गई जहाँ आने पर पृथ्वी के हर एक प्राणी में उत्साह, उमंग और खुशी अनायास ही नैसर्गिक रूप से प्रवेश कर जाती है , वो है ” यौवनावस्था ” ।

    पुष्पा की जिंदगी में भी अभी अभी कुसुमाकर का का आगमन हुआ था मन कुसुमित होने लगा था , मगर नियति में तो कुछ और ही लिखा था

    उसके साथ जो हादसा हुआ  उसके दर्द को लिख पाना संभव नहीं!

            एक भयंकर सड़क दुर्घटना से उसकी छोटी बहन और माता-पिता  की दर्दनाक मृत्यु हो गई।  पुष्पा भी चोट ग्रस्त हो गई।

         शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से वह विकलांग हो गई।  शारीरिक चोट तो ठीक हो गया मगर मानसिक रूप से डिप्रेशन में ऐसे डूबती चली गई कि लाख मनोचिकित्सक के इलाज से भी उसका मुरझाया मन खिल न सका । परिवार वाले उसका विवाह करना उचित समझकर विवाह किए लेकिन विशेष अंतर नहीं आया । भगवान ने उसकी गोद में एक पुत्री रत्न दिए मगर कहते हैं न ” पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं वो बहारों के आने से खिलते नहीं ।”



      मन की पीड़ा में दिन पर दिन बीतने लगे।  इसी बीच पुष्पा  कविता लिखने लगी । अपने दुखद मन में आए सुख और दुःख की भावनाओं को कविताओं में पिरोने लगी तभी एक दिन सोसल मीडिया में एक विज्ञापन देखी जहाँ साझा काव्य संकलन के लिए कविताएँ आमंत्रित की गई थी । दिए गए व्वाट्सप नंबर पर संपर्क करनें पर एक बहुत ही सज्जन इंसान से परिचित हुई ।” अविनाश सिंह ” जी हाँ, यही नाम है उन महान ब्यक्ति का ।  इनसे पुष्पा का दूर दूर तक कोई पारिवारिक रिश्ता नहीं था , खून के रिश्ते जितने अटूट होते हैं उससे कहीं ज्यादा मन के बने रिश्ते का बंधन अटूट होता है । अविनाश सिंह जी ने पुष्पा की कविताओं में ब्यक्त दर्द को पहचान कर उनसे ब्यकिगत वार्तालाप शुरू किए और अपनी साझा काव्य संकलन  ” नव- अंकुर ” में   उसे शामिल कर  दो श्रेष्ठ रचनाकारों में पुष्पा का नाम  दर्ज कर विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया। फिर पुष्पा के जीवन में खुशियों के अंकुर पुनः फूटने लगे । साहित्य विभाग ही ऐसा सरस विभाग है जिसमें  रूझान आनें से सुसुप्त मन पर भी ख़ुशी के फूल खिलने लगते हैं।   ” नव-अंकुर ” के संपादक अविनाश सिंह जी के संबल और सहयोग से उसकी कविता और कहानियाँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी ।

           हालांकि पुष्पा को यह बख़ूबी मालूम है कि अविनाश सिंह जी से वह रुबरू नहीं मिल सकती ऐसे हालात ही नहीं आयेंगी कि आमने-सामने मिलना हो, मगर मन के बने रिश्ते का बंधन अटूट होता है यह स्थान, परिवेश, जलवायु , मिलना न मिलना  का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह सत्य है  ।

#बंधन 

             ।।इति।।

           -गोमती सिंह, छत्तीसगढ़

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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