मंजिल मुझे पाना है –  कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi

रमा अपनी इकलौती बेटी परी को लेकर हमेशा परेशान रहती थी।कारण ये था,कि रमा के पति सुरेश परी को अपनी तरह एम बीए करावाना चाहते थे पर परी का मन ड्राइंग बनाने में लगता था।वैसे उसने ग्रेजुएट कम्पलीट कर लिया था।सुरेश रोज परी को ताना मारते रहते थे-“तुम्हारे साथ की कई लड़कियाँ डॉक्टर बन गईं,तो कई इंजीनियर बनकर बड़ी बड़ी कंपनियों में नौकरी कर रहीं हैं।एक तुम हो जो बस ग्रेजुएशन कर के घर पर बैठी हो और दिनभर फालतू की ड्राइंग बनाती रहती हो।नाक कटवा दी है तुमने हमारी।तुम्हारे जैसी नकारा औलाद भगवान किसी को ना दे।” पिता के कठोर वचन सुनकर परी रोने लगती तो रमा को बहुत दुख होता था।उसको यही चिंता सताती रहती थी कि किसी दबाव में आकर बेटी कहीं कोई गलत कदम ना उठा ले।

एक दिन रमा की सहेली सरोज उसके घर आई।बातों ही बातों में उसने रमा से बेटी की पढ़ाई के बारे में पूछा तो रमा ने उसे सारी कहानी सुनाई और फिर रोने लगी।सरोज ने उसे समझाया कि ऐसे हिम्मत ना हारे वो उसके पति से बात करेगी।

रमा सरोज को परी के कमरे में ले गई।सरोज ने देखा कि वो ड्राइंग बना रही थी।परी ने नमस्ते की और सरोज को बैठने को कहा।

“बेटा!आप इतने सुंदर चित्र बनाती हो,किसी से सीखा है क्या?”सरोज आश्चर्य से बोली

“नहीं आँटी,मैं अपने मन से बनाती हूँ किसी से सीखा नहीं है।मुझे बचपन से स्केचिंग का बहुत शौक है।”

“आप आगे क्या करना चाहती हो?”सरोज का सवाल सुनकर परी रमा की ओर देखने लगी।

“हाँ.. हाँ,आँटी को बताओ ना तुम क्या करना चाहती हो?”रमा की इजाजत मिलते ही परी बोली-“आँटी मैं फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करके अपना बुटीक खोलना चाहती हूँ पर अब पापा पीछे पड़े हैं कि एम बीए करो।आप ही बताओ जिस विषय में मेरी रुचि ही नहीं है उसे मैं कैसे ईमानदारी से निभा सकती हूँ?”

“बिल्कुल सही कहा बेटा आपने इंसान को वही करना चाहिए जो उसका मन कहता हो।”सरोज ने परी का उत्साहवर्धन करते हुए कहा।

इतनी देर में सुरेश भी ऑफिस से आ गए।

रमा ने सबके लिए चाय बनाई।सुरेश ने पहले सरोज का हाल चाल पूछा फिर उसके बेटे के बारे में पूछा तो वो बोली-“मेरा बेटा बिज़नेस कर रहा है।हम तो चाहते थे कि वो इंजीनियर बने पर उसकी रुचि बिज़नेस में थी इसलिए हमने उसे रोका नहीं।आज ईश्वर की कृपा से उसका बिज़नेस बहुत अच्छा चल रहा है।”

“हमारी बेटी को भी फैशन डिजाइनर बनने का भूत सवार है पता नहीं क्या करेगी डिजाइनर बनकर?”रमा के पति बुरा सा मुँह बनाते हुए बोले।

“भाईसाहब,बुरा नहीं मानना एक बात कहूँ जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो माता-पिता को अपनी इच्छा उनपर नहीं थोपनी चाहिए।उन्हें अपने निर्णय स्वयं लेने की आजादी देनी चाहिए।इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और आगे चलकर वो आत्मनिर्भर बनते हैं।क्या पता कल को उनका निर्णय ही उन्हें सफलता की ओर ले जाए।”सरोज ने सुरेश को समझाने की कोशिश की तो उन्हें बुरा लग गया वो वहाँ से उठकर चले गए।कुछ देर में रमा भी अपने घर को रवाना हो गई।

उसके बाद सरोज अपने परिवार में व्यस्त हो गई।रमा ने भी उस दिन के बाद उसे फोन नहीं किया,शायद उसके पति ने बात करने के लिए मना कर दिया था।

इधर सुरेश की आदतों में कोई सुधार नहीं हुआ वो वैसे ही हर रोज परी को ताने देते रहते।पर परी पर इसका कोई असर नहीं हुआ।उसका शौक अब जुनून में बदल गया।

उसने अपने ही शहर के एक फैशन इंस्टीटयूट में एड्मिशन लेने का मन बना लिया।जब उसने रमा से इस बारे में बात की तो वो बोली-“बेटा,एक बार तू अपने पापा से भी बात कर ले शायद वो मान जाएं।”

परी अपने पापा से बहुत डरती थी इसलिए उनसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।एक दिन जब उसने देखा कि आज पापा का मूड अच्छा है तो उनके पास जाकर बोली-“पापा मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।”

“बोलो..क्या कहना है तुम्हे?”

“पापा..मैं फैशन इंस्टिट्यूट में एडमिशन लेना चाहती हूँ।”

“तुम अभी भी अपनी जिद पे अड़ी हो।मेरे पास फालतू के कोर्सों पर बर्बाद करने के लिए पैसे नहीं हैं।”

“बस पापा आप अपनी इजाजत दे दो फीस मैं देख लूँगी।”

“कैसे देख लोगी?कहाँ से लाओगी इतने पैसे?”

“वो सब आप मुझपर छोड़ दो मैं मैनेज कर लूँगी..क्योंकि पापा सफर जरा मुश्किल है पर राह अभी बाकी है…हिम्मत नहीं हारूँगी मैं चाह अभी बाकी है।पाँव अभी थका नही अभी दूर जाना है..जितना दूर है मंजिल उतना करीब जाना है।ठोकर लगे या छाला पड़े…मंजिल मुझे पाना है।”परी ने बड़े जोश से शायराना अंदाज में अपनी बात कही तो सुरेश हैरान रह गए।इन पंक्तियों से परी का अपने लक्ष्य को पाने का जुनून साफ झलक रहा था।सुरेश ने परी को एडमिशन लेने की परमिशन दे दी पर फीस के लिए अभी भी हामी नहीं भरी।बहुत कोशिश करने पर परी को एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी मिल गई।दो चार महीनों में उसकी फीस का इंतजाम हो गया।उसने इंस्टिट्यूट में एडमिशन ले लिया।सुबह वो स्कूल जाती और शाम को कॉलेज।

देर रात तक वो अपने कॉलेज के काम करती फिर सुबह स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाती।बेटी को दिन रात मेहनत करते देख रमा को खुशी भी होती कि बेटी अपने लक्ष्य की ओर बड़ रही है पर उसे इस बात का दुख भी होता कि अगर उसके पति परी की फीस भी देते तो उसको दुगुनी मेहनत ना करनी पड़ती।

परी की मेहनत रंग लाई उसने अच्छे अंक प्राप्त करके फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर लिया।

बेटी के जुनून के आगे सुरेश भी नतमस्तक हो गए।उन्होंने परी को एक बुटीक खुलवा दिया।परी होनहार तो थी ही धीरे धीरे उसके डिजाइन किए हुए कपड़ों की मांग बड़ने लगी।शहर के बड़े बड़े लोग उसके डिजाइन किए हुए कपड़े खरीदने लगे।वो लोगों में लोकप्रिय होने लगी।उसने अब एक बड़ा शो रूम खोल लिया जिसका नाम उसके पापा ने ‘परिधान’ रखा।

आज परी के शो रूम का उदघाटन था।शहर के जानी मानी हस्तियों को आमंत्रित किया गया था।परी ने अपने शो रूम का उद्घाटन किसी बड़ी हस्ती से नहीं बल्कि अपने पापा से करवाया।सब परी के मम्मी पापा को बधाई दे रहे थे और यही कह रहे थे,कि आपकी बेटी बहुत होनहार है इसने आपका नाम रोशन कर दिया।परी के पापा बड़ी शान से सबको यही कहते..आखिर बेटी किसकी है?

परी ने अपने जुनून से ना सिर्फ अपनी एक पहचान बनाई बल्कि अपने सर पे लगा ‘नकारा ‘ होने का कलंक भी मिटा दिया।

सभी माता-पिता को चाहिए, कि वो बच्चों पर अपनी मर्जी कभी ना थोपें बल्कि उनके हुनर को तवज्जो दें।और यदि जरूरत पड़े तो पर उनका मार्गदर्शन करते रहें।

लेखिका : कमलेश आहूजा

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