मंझले बेटे से कोई प्यार नहीं करता है। – सुषमा यादव

परिमल अपने चार भाई बहन में तीसरे नंबर का बेटा था। सबसे बड़ी बहन, और तीन भाई में दूसरे नंबर पर।

वो अक्सर देखता कि दीदी को उसके मां, और बाबू जी बहुत प्यार करते थे, बड़े भाई को भी सब बहुत मानते थे, सबसे छोटे संजीव तो सबका दुलारा ही था,पर कोई मुझे प्यार नहीं करता। हमेशा उसकी यही शिकायत रहती, मैं मंझला हूं ना, इसलिए सभी मेरी उपेक्षा करते हैं, पता नहीं क्यों उसे ऐसी गलतफहमी हो गई थी,

वह बहुत दुखी और उदास रहता ,

वैसे वह पढ़ने, खेलने में बहुत होशियार था, अपने व्यवहार से सबमें बहुत लोकप्रिय भी था, हमेशा सबकी मदद करने को तैयार रहता,

कभी भी रात में किसी पड़ोसी को किसी मदद की जरूरत हो तो परिमल का बुलावा आ जाता और वो झट से अपनी पढ़ाई छोड़कर बिना किसी को बताए उनकी सहायता करने पहुंच जाता,। उसके इस आदत के कारण पड़ोसी तो उसका बहुत गुणगान करते,मान सम्मान करते,पर उसके परिवार वाले चिढ़ जाते, पढ़ाई, छोड़कर परोपकार करने चला जाता है, किसी बात की कोई फिकर नहीं।

मना करने और समझाने पर भी उसकी आदत में कोई सुधार नहीं आया, उसके घर वाले धीरे धीरे उससे किनारा करने लगे।

वह सब समझ रहा था,पर क्या करता, वो अपनी आदत से मजबूर था, और घर वालों से बराबर उपेक्षित हो रहा था।

जिसका परिणाम यह हुआ कि वह दिनोदिन उद्दंड होता गया, सामान फेंक देना,बहन का हाथ मरोड़ देना, बात बात पर सबसे झगड़ा करना।

बस एक ही रटन लगाता, मैं मंझला हूं, इसलिए मेरे साथ पक्षपात किया जाता है।




मैं भी बड़ा या छोटा होता तो सब मुझसे प्रेम करते। मां अक्सर समझाती, ऐसा नहीं है बेटा, तुम गलत सोचते हो, मां,बाप की नजर में सब बच्चे बराबर हैं, सभी आंखों के तारे हैं, बस हम दिखावा नहीं करते। लेकिन उस पर किसी भी बात का असर नहीं होता था।

आखिरकार सबने उसे उसके ही हाल पर छोड़ दिया।

 

कुछ समय बाद उसकी दीदी की शादी हो गई और वह अपने ससुराल चली गई, दीदी के जाने से परिमल और उदास हो गया और एक दिन बहन के घर पहुंच गया,

दीदी उसे देखकर बहुत खुश हुई और बोली, भैया, ऐसे बिना बताए कैसे आ गए,।

परिमल पहले तो चुपचाप खामोश हो कर बहन को देखता रहा, उसने जब देखा कि दीदी उसके आने से खुश होकर चहकने लगी है, तो धीरे से बोला, दीदी, मैं अब आपके पास ही रहूंगा, और यहीं पर कालेज में एडमिशन भी लूंगा, यदि आप और जीजा जी मुझे रखने को तैयार हों तो, अन्यथा अब मैं अपने घर नहीं जाऊंगा,अब मैं अपनी जिंदगी से हार गया हूं,अब मुझसे सबकी अवहेलना, उपेक्षा सही नहीं जाती, मैं अब इस दुनिया में ही नहीं रहना चाहता,।

दीदी ने बड़े प्यार से उसे गले लगाकर उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा,, मेरे प्यारे भैया,

अब तुम कहीं नहीं जाओगे, मैं भी अकेली हो जाती हूं जब तुम्हारे जीजाजी कई दिनों के लिए सरकारी दौरे पर चले जाते हैं,अब मुझे तुम्हारा सहारा मिल जाएगा,

तुम मेरे साथ हमेशा ही रहोगे।

परिमल अपनी बहन का अपनापन और प्रेम देखकर अभिभूत हो गया,।

दीदी, आज़ मुझे समझने वाली और प्यार करने वाली मेरी प्यारी बहन मुझे मिल गई है। मैं आपके इस अहसान का उम्र भर आभारी रहूंगा, यदि आपकी खुशी के लिए मुझे अपनी जान भी देना पड़ा तो हंसी खुशी दे दूंगा, भगवान मेरी जान लेकर आपकी खुशियां आपकी झोली में डाल दें और आपके सारे ग़म मुझे दे दे।

दोनों भाई बहन एक दूसरे के गले लग कर रो रहे थे और जीजा जी पीछे से आकर भाई बहन के अनोखे प्रेम को सजल नेत्रों से देख रहे थे।

 

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

 

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