मंगला मुखी (भाग-8) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

कदम्ब और वीथिका के मन में एक झिझक और डर था – ” तुम भी साथ चलो मौसी। हम लोग कैसे इतने बड़े डॉक्टर के यहॉ जायेंगे, कहीं बात सुनने के पहले ही अपमान करके भगा दिया तो।”

” अगर भगा देंगे तो क्या हुआ? तुमसे कुछ छीन तो लेंगे नहीं लेकिन अगर मान गये तो हमारी लकी का जीवन बदल जायेगा। अपने बच्चे के लिये मान क्या और अपमान क्या? बाल रोग विशेषज्ञ सौरभ कुलकर्णी इस शहर के बहुत नामी डॉक्टर हैं, अगर वह एक बार हमारी लकी को अच्छी तरह देख लें और हमारी सहायता के लिये तैयार हो जायें तो हमारा काम हो सकता है लेकिन उनके नर्सिंग होम का खर्चा और फीस बहुत ज्यादा है।”

वे दोनों चुपचाप सुन रहे थे और रेशमा कहती जा रही थी –  मुझे पता चला है कि डॉक्टर सौरभ अपने पापा की कोई बात कभी नहीं टालते हैं। उनके लिये उनके पापा ही भगवान हैं। हालांकि वृद्ध कुलकर्णी अपने बेटे के किसी काम में कभी दखलंदाजी नहीं करते हैं लेकिन वह बहुत दयालु हैं। एक बार तुम लोग लकी को लेकर उनके पास चले जाओ और अपनी समस्या बताना तो हो सकता है कि उन्हें लकी पर दया आ जाये और वह सहायता करने के लिये तैयार हो जायें। वृद्ध कुलकर्णी पॉच बजे सुबह उठकर अपने बंगले के लान में टहलते हैं। वही समय सबसे उचित है, उस समय न गेट पर कोई चौकीदार रहता है और न ही नौकर नहीं तो बिना पूरी बात जाने तुम्हें अन्दर जाने ही नहीं दिया जायेगा।”

दोनों को मौन और सोंच में डूबे हुये देखकर रेशमा ने वीथिका के हाथ पर अपना हाथ रख दिया – ” प्रयास करके देखने में हानि क्या है? हमारी लकी की पूरी जिन्दगी का सवाल है। मेरे पास भी इतने पैसे नहीं हैं वरना मैं तुरन्त दे देती। जैसे जैसे देर हो रही है, हम तीनों की चिन्ता और घबराहट बढ़ती जा रही है।”

” आप ऐसे मत कहिये मौसी, हम अच्छी तरह जानते हैं कि आपको लकी की बहुत चिन्ता है।”

दूसरे दिन सुबह पॉच बजे कदम्ब और वीथिका ने गोद में सोई हुई वैदेही को लिये हुये डॉक्टर कुलकर्णी का गेट खटखटाया –

” इतनी सुबह कौन आ गया?” कोई नौकर पास न होने के कारण यह कहते हुये वृद्ध कुलकर्णी जी स्वयं गेट तक आ गये और गेट खोल दिया।

इतनी सुबह गोद में बच्चा लिये दम्पति को देखकर चौंक गये – ” आप लोग ••••••••।”

” हम लोग आपसे ही मिलने आये हैं बाबूजी।” यह कहकर कदम्ब ने उनके दोनों पैर पकड़ लिये – ” आप ही मेरी सहायता कर सकते हैं।”

कुलकर्णी जी ने असमंजस में अपने पैरों से कदम्ब को उठाया –

” अरे ••••• यह क्या कर रहे हो? आओ, अन्दर आ जाओ और पूरी बात बताओ।”

वृद्ध कुलकर्णी जी ने उन दोनों को लान में रखी कुर्सियों पर बैठने को कहा और स्वयं एक कुर्सी पर बैठ गये लेकिन उन दोनों ने कुर्सी पर वैदेही को लिटा दिया।  स्वयं कुर्सी पर बैठने के स्थान पर जमीन पर बैठ गये ‌और सारी बात बताई। सब कुछ बताते हुये दोनों की ऑखों से ऑसू बह रहे थे।

” लेकिन इसमें मैं क्या कर सकता हूॅ। तुम्हें बच्चे को लेकर सौरभ के पास जाना चाहिये था, वही कुछ कर सकते हैं।”

” हम बहुत गरीब लोग हैं, हमारे पास मंहगी दवाओं और आपरेशन के लिये पैसे नहीं हैं। आपकी दया हो गई तो एक कन्या की जिन्दगी बच जायेगी। डॉक्टर साहब ने बहुत नाम और पैसा कमाया लेकिन हम गरीब लोग आपरेशन का पैसा कहॉ से लायें? हमारे पास दुआओं और आशीर्वाद के सिवा है ही क्या?” कदम्ब ही बोल रहा था, वीथिका चुप थी।

कुलकर्णी जी कुछ देर सोचते रहे फिर कदम्ब से कहा- ” मैं अभी कुछ नहीं कह सकता। अभी सौरभ बाहर गये हैं, मैं उससे बात करूंगा। इसलिये तुम लोग दो दिन बाद आना और मुझसे जो हो सका करूॅगा।”

वीथिका ने आगे बढ़कर वैदेही को गोद में उठा लिया और कुलकर्णी जी के सामने करके कहा – ” बाबूजी, मुझे विश्वास है कि आप हमें अपने दरवाजे से निराश नहीं लौटने देंगे। इसके सिर पर अपने प्यार और आशीर्वाद का हाथ रख दीजिये। हम तीनों जीवन भर आपके उपकार को नहीं भूलेंगे।”

कुलकर्णी जी भावुक हो उठे और उन्होंने सोती हुई वैदेही के सिर पर हाथ रख दिया – ” बहुत प्यारी बिटिया है तुम्हारी। भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जायेगा। तुम लोग परेशान मत हो। मैं सौरभ से बात करूॅगा और इस बच्चे के लिये जो भी हो सका, करूॅगा। इस बार आना तो साथ में बच्चे की फाइल भी लेते आना।”

शाम को जब रेशमा घर आई तो उन्होंने उसे सारी बात बताई। सुनकर रेशमा बहुत खुश हुई – ” डॉक्टर साहब के पापा बहुत दयालु हैं, वह कुछ न कुछ जरूर करेंगे। बस, अब सब कुछ ईश्वर पर छोड़ कर दो दिन बाद जाना। आगे जैसा लकी का भाग्य होगा, वैसा होगा।”

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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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