मंगला मुखी (भाग-6) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

एक बार गई तो पता चला कि उसके पापा का वहॉ से स्थानान्तरण हो गया है। उसके बाद उसे कभी पता नहीं चला कि उसका परिवार कहॉ चला गया और उसने भी दिल पर पत्थर रखकर कभी उन्हें ढूंढने का प्रयास नहीं किया। क्या करती, वह तो पहले ही उस परिवार से डाली से टूटे फूल की तरह अलग हो गई है। अब तो हो सकता है कि भाई और बहन की भी शादी हो गई होगी, उनके बच्चे भी बड़े हो गये होंगे।

पावनी से रेशमा बनने की अपनी कहानी बताकर रेशमा बहुत दुखी हो गई। कुछ देर तक बिल्कुल सन्नाटा छाया रहा। कदम्ब और वीथिका को भी बहुत दुख हुआ कि जिन मंगलामुखियों को लोग देखना भी नहीं चाहते हैं, उनसे दूर भागते हैं। वे कितना अपमान, कितनी भर्त्सना, कितनी उपेक्षा और उपहास सहते हैं। उनके भीतर इतना दुख, इतना कष्ट, इतना तनाव भरा हुआ है।

कदम्ब तो कुछ नहीं बोला लेकिन वीथिका ने कहा –

” आप बताइये , हम लोग आपके लिये क्या कर सकते हैं?”

” हम लोग उस दिन आये थे तो बच्चे की दादी ने कुछ ऐसा कहा था कि हम लोगों को अच्छा नहीं लगा था। हम लोगों को नेग न देंती तो कोई बात नहीं थी लेकिन इतने सुंदर और प्यारे बच्चे को अपाहिज क्यों कह रही थीं? हमने तो बच्चे को गोद में लेकर आशीर्वाद दिया था, बच्ची कमजोर अवश्य है लेकिन छोटे बच्चों की अच्छी तरह देखभाल करने से वे बहुत जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं। इसीलिये मैं माताजी के जाने के बाद आई हूॅ।”

सुनकर कदम्ब और वीथिका की ऑखों में ऑसू आ गये और उन्होंने अपनेपन की गर्माहट में पिघल कर सब कुछ रेशमा को बता दिया – ” आप ही बताइये, हम जैसे साधारण लोग अपने बच्चे का इलाज कैसे करवायें?  मंहगी दवाइयां और सबसे बड़ी बात आपरेशन •••••• कहॉ से लायें अपनी परी के लिये पैसा? ऐसा नहीं है कि हमारे पास कुछ है नहीं,  लेकिन सब कुछ अम्मा और बाबू के पास है। यहाॅ तक वीथिका की शादी में ससुराल और मायके से मिले सारे गहने भी अम्मा के पास हैं, उन्होंने वे गहने  देने से भी इंकार कर दिया है।”

” शादी में मिलने वाले गहने तो बहू की अपनी निजी सम्पत्ति होते हैं। उन पर किसी दूसरे का अधिकार कैसे हो सकता है?” रेशमा आश्चर्य चकित थी।

” क्या कर सकते हैं? अब मॉ‌ से झगड़ा कैसे करें? बहुत मिन्नत की कि इस समय केवल वीथिका के मायके से मिले गहने ही दे दें लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ‌‌। साफ मना कर दिया कि लड़की है इसलिये आपरेशन की कोई जरूरत नहीं है।” कदम्ब का सिर शर्म से झुका हुआ था।

वीथिका ने रेशमा को यह भी बताया कि अम्मा तो कह रही थीं कि इस बीमार, मनहूस बच्ची को किसी मंदिर, ट्रेन, प्लेटफार्म या अस्पताल में छोड़ आओ और दूसरा बच्चा पैदा कर लो परन्तु वे दोनों तो अपनी गुड़िया के माता-पिता हैं, उनका अपना अंश है इसमें, उन दोनों के प्यार की पहली निशानी है ऐसा करना तो सोंच भी नहीं सकते है।

इसी बात पर नाराज होकर अम्मा इतनी जल्दी चली गईं कि जब तुम लोगों को मेरी कोई बात माननी ही नहीं है तो मुझे भी तुम लोगों से कोई सम्बन्ध नहीं रखना है। और साथ ही इसी बच्चे की सौगन्ध देकर कह गईं हैं कि जब तक यह बच्ची हमारे पास रहेगी न तो वह यहॉ आयेंगी और न ही हम इस बच्चे को लेकर गॉव जा सकते हैं। उनके मना करने के कारण ससुर और ननद तो बच्ची को देखने भी नहीं आये।

” तुम्हारे मायके से ••••••।”

रेशमा के पूॅछने पर वीथिका ने बताया – ” माता-पिता तो पहले ही नहीं थे, एक भाई और भाभी हैं तो उनसे क्या उम्मीद की जाये? वे दोनों एक दिन अस्पताल में बच्चे को देखने आये थे उसके बाद एक फोन तक नहीं किया।”

वीथिका ने एक लम्बी साॅस ली – ” जब समय खराब होता है तो कोई साथ नहीं देता। भाई के पास इतना है कि एक – दो लाख तो वह अपने बच्चों की सालगिरह पर खर्च कर देता है लेकिन बहन के बीमार बच्चे को क्यों देगा? इस समय हमारा कोई नहीं है।”

कदम्ब ने रेशमा को बताया कि एक बार उसने विनय गुप्ता को अपनी परिस्थिति बताने के लिये फोन किया था। उसे विश्वास था कि ऐसे कठिन समय में वह उसकी सहायता अवश्य करेंगे लेकिन उनके बेटे ने बताया कि विनय गुप्ता को कैंसर हो गया है और वह लगातार अस्पताल में रहकर इलाज करवा रहे हैं। अपने पापा को लेकर उनका बेटा  बहुत परेशान था। यह सुनकर कदम्ब की कुछ कहने की उससे कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हुई‌‌। वैसे भी विनय गुप्ता के बेटे से उसकी आत्मीयता नहीं थी, कदम्ब केवल एक बार उससे मिला था।

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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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