वीथिका उठकर अन्दर गई और एक गिलास में पानी ले आई। रेशमा को देते हुये उसने कहा – ” अगर मेरी किसी बात से आपका दिल दुखा हो तो मुझे क्षमा कर दीजिये।”
” नहीं, तुम माफी मत मॉगो, तुम्हारी कोई गलती नहीं है। यह हमारी नियति है जिसे भोगना ही हमारा प्रारब्ध है।”
फिर रेशमा बताने लगी कि उसके पिता आयकर विभाग में अधिकारी थे। जैसे ही उसकी मॉ को पता चला कि उसने एक किन्नर को जन्म दिया है तो उसने रोते हुये उसकी ओर पीठ कर ली थी। यहॉ तक उसकी मॉ ने अपनी नवजात बच्ची को दूध पिलाने से भी इंकार कर दिया। डॉक्टर के बहुत समझाने पर और दूध न पिलाने के कारण होने वाली समस्या से परेशान होकर मॉ बहुत मुश्किल से उसे स्तनपान कराने के लिये राजी हुई तो प्यारी सी बच्ची को सीने से लगाने के बाद मॉ की ममता उमड़ आई।
उसके जन्म के बाद कुछ दिन तक तो उसके माता-पिता ने उसके किन्नर होने की बात सबसे छुपाकर रखी लेकिन जैसे जैसे यह बात सबको पता चली, उसके माता-पिता को समाज में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता। पहले तो वह कुछ समझती नहीं थी लेकिन जैसे जैसे वह बड़ी होती गई उसे समझ में आने लगा कि वह सामान्य बच्चों जैसी नहीं है। कुछ ऐसा अवश्य है जिसके कारण उसके माता-पिता उसे अपने साथ कहीं लेकर नहीं जाते हैं। सभी बच्चों और अपने भाई -बहन को स्कूल जाते देखकर वह भी जिद करती लेकिन हर बार उसे बहला दिया जाता – ” तुम हमारी प्यारी बिटिया हो। घर में ठीक से पढो, फिर तुम्हें बहुत अच्छे स्कूल में भेजेंगे।
उसे तो इस बात का ज्ञान ही नहीं था कि उसे स्कूल न भेज पाना उसके माता-पिता की बहुत बड़ी मजबूरी है। अधिकतर वह घर के अन्दर खेलने वाले खेल ही खेला करती क्योंकि बाहर बच्चे उसे अपने साथ खेलने नहीं देते और तरह-तरह से परेशान करते। उसके भाई बहन भी उसके साथ नहीं खेलना चाहते थे।
वह दिन उसकी जिन्दगी में ऐसा आया कि उसकी पूरी जिन्दगी ही बदल गई। उस दिन घर में मौसी आईं थीं और मम्मी के साथ बैठी बातें कर रही थीं –
” समझ में नहीं आता कि पावनी का क्या करूॅ? अब तो काफी लोग जान गये हैं और तरह-तरह की बातें भी बनाने लगे हैं।”
” आपसे तो सबने इसके पैदा होते ही कहा था कि किन्नरों की टोली को दे दो लेकिन आप ही नहीं मानीं।”
” क्या बताऊं, उस समय मेरी ही अक्ल पर पत्थर पड़ गये थे जो सही निर्णय नहीं ले पाई। क्या करती, पहले बच्चे की मासूम सूरत देखकर अपनी ममता के हाथों मजबूर हो गई थी। नहीं सोंच पाई थी कि अभी दिल पर पत्थर रख कर अपने से अलग न कर पाई तो आगे क्या क्या देखना पड़ेगा? लेकिन अब सोंचती हूॅ कि आखिर इसका भविष्य क्या होगा? काश! मुझे मरा हुआ बच्चा पैदा होता।”
मम्मी फूट-फूटकर रोने लगी – ” पता नहीं मैंने पिछले जन्म में कौन सा पाप किया था कि मेरी कोख से एक हिजड़े ने जन्म लिया है।”
” अभी भी समय है दीदी। अभी पावनी छोटी है, जैसे जैसे बड़ी होगी, समस्यायें बढेंगी ही।”
” शायद तुम सही कह रही हो, मैं इसके पापा से इस सम्बन्ध में बात करूंगी। आखिर इसके कारण कब तक हम लोग अपमान सहन करते रहेंगे। इसके कारण दूसरे बच्चों की जिन्दगी भी बरबाद हो रही है। दिल पर पत्थर रखकर इसे उसी समाज में भेजना पड़ेगा जहॉ इसकी असली जगह है।”
सात साल की पावनी के समक्ष रहस्य का एक नया द्वार खुल गया कि वह किन्नर है। उसने सड़क पर किन्नरों की टोली को नाचते गाते देखा था। उसे भी इन्हीं की तरह जीवन बिताना पड़ेगा। इसी कारण उसे स्कूल नहीं भेजा जाता है। उसे याद आने लगा उसे देखकर रिश्तेदारों और पड़ोसियों की दबी दबी हॅसी और उपेक्षा भरी निग़ाहें। साथ ही उसे पता चल गया कि अब उसके मम्मी पापा की सहनशक्ति समाप्त हो चुकी है और वे लोग अब उसे किन्नर समाज को दे देंगे।
इसीलिये उसी दिन सबके खाना खाने के बाद वह मम्मी के पर्स से सौ रुपये चुराकर घर से भाग आई और स्टेशन पर जो ट्रेन खड़ी थी उसी पर चढ गई और इस तरह कलकत्ता आ गई। बहुत दिनों तक सड़कों पर इधर उधर भटकने, भूखे रहने और धक्के खाने के बाद अन्त में हारकर किन्नरों के समाज में सम्मिलित हो गई।
शुरू में तो अपने परिवार को देखने का बहुत मन करता था। मम्मी, पापा, छोटा भाई और बहन बहुत याद आते और वह छुपकर उन्हें चुपके से देख आती परन्तु जान बूझकर कभी मिलने की कोशिश नहीं की। जानती थी कि भले ही सन्तान होने के कारण मम्मी पापा उसे प्यार करते हैं लेकिन किसी को उसकी जरूरत नहीं है, सभ्य समाज के लिये वह कलंक है। उसके कारण उसका परिवार भी उपहास की प्रताड़ना सहन करने के लिये विवश हेै। अपने परिवार के सुख और प्रतिष्ठा के लिये उसे सबसे दूर और अलग ही रहना है।
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मंगला मुखी (भाग-6) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर