मंगला मुखी (भाग-16) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

कदम्ब अम्मा बाबू का अपमान नहीं करना चाहता था। इसलिये इतनी देर से सहन करता जा रहा था। वह चाहता था कि यदि सब कुछ शान्ति से निबट जाये तो अधिक अच्छा है लेकिन अब उसे बोलना ही था –

” अम्मा आप बार बार मेरे बच्चे को मनहूस कहकर उसे फेंकने को कह रही हो। उसकी मृत्यु की बद्दुआ दे रही हैं लेकिन अगर यही बातें बहन के लिये कोई कहे तो आप पर क्या बीतेगी? यदि बहन के जन्म के बाद  आपसे आपकी बेटी को फेंकने के लिये कहा जाता तो आपको कैसा लगता?”

कदम्ब के मुॅह से इतना सुनते ही बाबू उठकर खड़े हो गये और जब तक कोई कुछ समझ पाये एक जोरदार थप्पड़ कदम्ब के गाल पर पड़ा –

” बेशरम,  तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई अपनी बहन के लिये ऐसे शब्द बोलने की?”

थप्पड़ से कदम्ब का गाल लाल हो गया और सब सन्नाटे में आ गये लेकिन कदम्ब के होंठों पर एक विद्रूप मुस्कान तैर गई –

” अपनी बेटी के लिये आपको इतना खराब लगा है लेकिन मेरी बेटी जबसे पैदा हुई है लगातार आप लोग कोसते रहते हैं। मैंने जीवन में जितना भी कमाया है आपको ही देता रहा। न कभी अपने पैसे के लिये आपसे कुछ पूॅछा और न ही कभी एक पैसा मॉगा। यहॉ तक शादी में मिला एक भी सामान आपने नहीं लाने दिया और मैंने वीथिका को ही समझाकर चुप करा दिया। उसे खाली हाथ लेकर चला आया था। मेरी बच्ची बीमार थी और मुझे पैसे की जरूरत थी लेकिन तब आपने ऑपरेशन के लिये पैसे देने तो दूर जेवर भी नहीं दिये ताकि हम अपने बच्चे का आपरेशन न करवा सकें।”

कदम्ब की ऑखों में ऑसू छलक आये, उसका गला भर्रा गया – ” कैसे इंसान हैं आप लोग जो मेरे बच्चे को मरने के लिये फेंकने को कहते रहते हैं। जब आपने हमसे सारे सम्बन्ध समाप्त कर लिये हैं तो अब हम लोग मरें या जियें, आप लोगों को क्या करना है? हम अपने घर में चाहे जैसे रहें, कोई हमें कुछ भी कहने वाला कौन होता है?”

” हम तुम्हारे बाप हैं मुन्ना। तुम्हारा अच्छा बुरा हमारे सिवा कौन सोचेगा?”

” बाबू, इतने दिन हो गये लेकिन आप या बहन एक बार भी मेरी बेटी को देखने तक नहीं आये और आज कोई उड़ती खबर सुनकर दौड़े चले आये‌। अब आपको याद आ गया कि आप हमारे बाप हैं।”

” बेकार की बहस मत करो। पहले उस हिजड़े को जिसे तुम ” मौसी” कहते हो अभी घर से निकालो फिर हमसे बात करो‌।”

” हॉ बाबू, यह गलती हमसे हो गई है लेकिन उस समय इतनी गहराई से सोंचा नहीं था। अब इस भूल को सुधार लूॅगा।”

सबके होंठों पर मुस्कान तैर गई और वीथिका चौंककर उसकी ओर देखने लगी – ” यह क्या कह रहा है कदम्ब? वीथिका को अपने घर में रखना और ” मौसी ” कहकर सम्मान देना गलती मान रहा है।

कदम्ब ने आगे कहा – हमें उन्हें मौसी नहीं मॉ कहना चाहिये क्योंकि उन्होंने एक मॉ की तरह निस्वार्थ हमारे लिये ऐसा किया है कि जिसका कर्ज मैं जीवन भर उनकी सेवा करके भी नहीं उतार सकता।”

अम्मा हतप्रभ रह गईं – ” क्या कह रहा है मुन्ना? तुम्हारी मॉ जिन्दा है। मुझे मरा हुआ मान लिया तुमने।”

कदम्ब कुछ कहे इसके पहले ही वीथिका बोल पड़ी – ” मेरी मॉ तो जिन्दा नहीं है इसलिये वह आज से मेरी मॉ हैं। आज से मैं उन्हें ” मॉ”  कहूॅगी।” इतना सुनते ही रेशमा की ऑखों के ऑसू और तेज हो गये।

वीथिका ने गौरव  और पद्मा से कहा – ” आप लोग चाहे मुझसे सम्बन्ध रखें या न रखें, हमारी ” मॉ” और मेरी बेटी की नानी हमारे साथ हमेशा रहेंगी।”

कदम्ब ने वीथिका के हाथ पर अपना हाथ रख दिया – ” वीथिका की मॉ मेरी सासू मॉ हुईं इसलिये आज से मैं भी मौसी को मॉ कहूॅगा।”

रेशमा का मन कर रहा था कि वह दौड़कर बाहर जाये और कदम्ब सहित वीथिका को गले से लगा ले। उसके हृदय में ममता और वात्सल्य का सागर हिलोरे मार रहा था। उसे लग रहा था कि वह अपने प्राण निकाल कर कदम्ब और वीथिका पर न्यौछावर कर दे।

कदम्ब की बात सुनकर सब सन्न रह गये। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि कदम्ब और वीथिका ऐसा निर्णय भी ले सकते हैं।

बाबू, अम्मा के साथ गौरव और पद्मा भी उठकर खड़े हो गये – ” एक दिन तुम लोगों को अपने निर्णय पर पछताना पड़ेगा, तब हम लोगों के पास मत आना। देख लेना, यह हिजड़ा एक दिन तुम लोगों को धोखा देकर भाग जायेगा। गली गली फिरने वाले इन लोगों को घर का वातावरण कभी अच्छा नहीं लग सकता है।”

अम्मा ने भी कहा – ” आज के बाद समझ लेना तुम्हारे मॉ बाप मर गये हैं और हम भी समझ लेंगे कि हमारे केवल एक बेटी ही है। हमारे मरने के बाद भी हम लोगों को हाथ मत लगाना और न हमारी चिता को आग देना।”

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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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