मंगला मुखी (भाग-15) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

नाश्ता समाप्त हो गया तो वीथिका जूठे बर्तन उठाकर रसोई में जाकर रख आई और दुबारा आकर कदम्ब के बगल में बैठ गई। भीतर ही भीतर उसे बहुत डर लग रहा था क्योंकि वह अम्मा का स्वभाव जानती थी। अम्मा अपने आगे किसी की न तो सुनती हैं और चलने देती हैं। हमेशा अपने कलह और हंगामे के कारण वह ही जीतती हैं। इसी कारण न तो कदम्ब उनकी किसी बात का विरोध खुद करता था और न ही वीथिका को करने देता था।

सब चुपचाप एक दूसरे के बात शुरू करने का इंतजार कर रहे थे लेकिन समस्या यह थी कि बात कौन शुरू करे?

आखिर बाबू ने ही बात शुरू की – ” मुन्ना, यह क्या सुन रहा हूॅ मैं?”

” मुझे क्या पता कि आप लोगों ने किससे और क्या सुना है?”

” मुझे पता चला है कि तुम लोगों ने बिना हम लोगों को बताये अपनी बिटिया का आपरेशन करवा लिया और ••••••।”

” अम्मा को तो शुरू से पता था कि हमारी बिटिया बीमार है और उसका जल्दी से जल्दी आपरेशन करवाना है लेकिन उन्होंने तो दादी होकर उसे •••••।”

इतना सुनते ही अम्मा वीथिका की ओर देखते हुये चीख पड़ीं – ” हॉ, गलत क्या कहा था मैंने? इतने सालों बाद इसने पैदा किया भी तो लड़की। वह भी ऐसी मनहूस लड़की जिसके पैदा होते ही मेरे बेटे पर आपरेशन और दवाइयों का खर्चा आ गया। कहॉ से लायेगा वह इतना पैसा और जरूरत क्या है ऐसी बीमार लड़की का बोझ उठाने की? मैं जानती हूॅ कि कर्जा लेकर आपरेशन करवाया होगा, अब जिन्दगी भर इस‌ कर्ज के गढ्ढे को भरने में ही बीत जायेगी। उसके बाद शादी के लिये जोड़ते रहो। मेरी बात मान लेते तो हमेशा के लिये इस मुसीबत से छुटकारा मिल जाता।”

” अम्मा, ऐसे मत कहिये, वह आपकी पोती है।” वीथिका का दिल तड़प उठा लेकिन वीथिका के कुछ बोलने का प्रयत्न करते ही अम्मा ने उसे बुरी तरह डॉट दिया – ” तुम चुप रहो बहू, मैं अपने बेटे से बात कर रही हूॅ।‌ तुम्हें हम मॉ बेटे के बीच में बोलने की कोई जरूरत नहीं है।”

वीथिका ने एक बार कदम्ब की ओर देखा तो उसने इशारे से वीथिका को कुछ बोलने से मना कर दिया। तभी बाबू बोल पड़े – ” यह हिजड़े का क्या चक्कर है? रमन बता रहा था कि तुम्हारे घर में एक हिजड़ा रहता है जिसे तुम लोग मौसी कहते हो। कहॉ है जरा बुलाओ? मैं भी तो देखूं अपनी साली को।”

” साली ” शब्द सुनते ही अम्मा के तन बदन में जैसे आग लग गई। वह बाबू पर गरजते हुये बोली – ” तुम चुप रहो। मैं बात करने आई हूॅ तो आज सारे झंझट मिटाकर ही जाऊॅगी। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई जो मैंने बहू को यहॉ भेज दिया। इसी कारण ये लोग जो मन में आया करते रहते हैं लेकिन मैं किसी की मनमानी नहीं चलने दूॅगी।”

फिर वह कदम्ब से बोली – ” मैं आज अपने साथ बहू को लेकर गॉव जा रही हूॅ और जब तक पोता नहीं हो जायेगा, यह गॉव में ही रहेगी। तुम्हारे पास जब समय हो आ जाया करना जैसे पहले आया करते थे। यहॉ रहकर तुम दोनों मिलकर न जाने कौन-कौन से गुल खिलाओगे?”

किसी को उम्मीद नहीं थी कि अम्मा कुछ ऐसा कहेंगी। वह अपनी हठधर्मिता के कारण अपने ही बेटा और बहू को अलग कर देंगी। वीथिका तो डर से कॉपने लगी, कदम्ब के बिना कैसे रहेगी वह? कदम्ब भी वीथिका बिना सूने घर में क्या करेगा? उसके तो जीवन से बहार ही जैसे रूठ जायेगी। अन्दर कमरे में बैठी रेशमा की ऑखों से लगातार ऑसू बह रहे थे –

” यह तुम क्या कह रही हो अम्मा? अभी लकी का आपरेशन हुये दिन ही कितने हुये हैं? अभी तो उसे हम इंफेक्शन के डर के कारण कमरे से बाहर ही नहीं आने देते हैं।”

” मैंने तुमसे कब कहा कि मैं तुम्हारी मनहूस लड़की को अपने घर ले जाऊॅगी? उस हिजड़े से कहो कि अभी उस मनहूस लड़की को लेकर घर से निकल जाये।”

अब तक चुपचाप बैठी पद्मा से शायद अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था – ” हिजड़े को घर से निकालने की आपकी बात तो सही है अम्मा। हम इज्जतदार लोग हैं, हमारे घर में एक हिजड़ा कैसे रह सकता है? हमें समाज में रहना है, लोग क्या कहेंगे? सब हमारी हॅसी उड़ायेंगे लेकिन कोई अपने बच्चे को कैसे छोड़ सकता है? भले ही लड़की है लेकिन कितने साल बाद तो वीथिका की गोद हरी हुई है। इन दोनों के तो कलेजे का टुकड़ा है।”

अम्मा ने अपनी लाल लाल ऑखों से पद्मा को घूरा – ” तुम्हें ज्यादा मोह ममता लग रही है तो तुम ले जाओ। मुझे इससे कोई मतलब नहीं है कि वह कहॉ जाये, केवल अपने बेटे के घर में मैं उसे नहीं रहने दूॅगी।”

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मंगला मुखी (भाग-16) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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