पहले तो अम्मा पापा का गुस्सा देखकर थोड़ा परेशान हुईं लेकिन इतने वर्षों में उन्हें बाबू को अपने पक्ष में सहमत करना, उन्हें सम्हालना बहुत अच्छी तरह आ गया था। उन्होंने बाबू को समझाया – ” इस तरह बेमतलब चिल्लाने से कोई फायदा नहीं है। चलो, शहर चलकर देखते हैं कि असली बात क्या है?”
” लेकिन तुमने तो कभी उन लोगों के पास न जाने की कसम खाई थी।”
” मैंने उन लोगों को कभी यहॉ आने, हम लोगों से मिलने और बात करने के लिये उस मनहूस लड़की की कसम दी थी लेकिन हम लोग तो चल ही सकते हैं। बिना हम लोगों के गये तो वे दोनों और अधिक मनमानी करने लगेंगे और हम लोगों के हाथ से निकल जायेंगे। बिना गये सच्चाई का पता कैसे लगेगा?”
” तुम सही कह रही हो। चलने की तैयारी कर लो और साथ ही बहू के भइया भाभी से भी कहो कि वह भी मुन्ना के घर आ जायें। अगर किन्नर वाली बात सच है तो सब लोग मिलकर उसे निकाल बाहर करेंगे।”
अम्मा, बाबू और वीथिका के भइया भाभी को एक साथ आया हुआ देखकर सब समझ गये कि उनके लिये निर्णय का हंगामा शुरू होने जा रहा है और उनके निर्णय की दृढ़ता की परीक्षा भी होने वाली है।
उन्होंने रेशमा से कहा – ” मौसी कुछ भी हो जाये, तुम लकी के पास ही रहना। इस कमरे से बाहर मत निकलना। हम लोग सब सम्हाल लेंगे।”
” लेकिन बेटा, मेरे कारण ••••••।”
” मौसी •••••• ।” वीथिका ने रेशमा के कंधे पर हाथ रख दिया – ” हम सभी जानते थे कि ये सारे तूफान आने ही हैं, फिर आप क्यों घबड़ा रही हैं। इस समय हम दोनों को हिम्मत दीजिये कि हम गलत का विरोध कर सकें।”
” इन लोगों ने तो आपके आने के पहले ही हमारे बच्चे के लिये गलत कहकर उसे फेंकने के लिये कह दिया था। यदि हम अपने बच्चे की रक्षा न कर सकें तो हमें माता पिता कहलाने का अधिकार नहीं है। आप बस इस कमरे में रहियेगा और लकी को सम्हालियेगा।” फिर कदम्ब ने वीथिका का हाथ पकड़कर बाहर ले जाते हुये कहा- ” आओ, देखते हैं कि ये सब एक साथ क्यों आये हैं?”
कदम्ब के घर में दो ही कमरे थे। एक कमरे को उन्होंने अपनी बैठक बनाया था और उसमें एक दीवान भी पड़ा था जो कभी-कभी रात्रि में रुकने वाले मेहमानों के काम आता था लेकिन जबसे लकी अस्पताल से लौट कर आई थी, कदम्ब और वीथिका ने अपने बेडरूम को पूरी तरह से लकी का कमरा बना दिया था।
चूॅकि डॉक्टर सौरभ ने कहा था कि तीन महीने इंफेक्शन का खतरा अधिक है तो वे लोग वैदेही को कमरे से बाहर लाते ही नहीं थे और न ही किसी आने वाले को उसके कमरे में जाने देते थे। तीनों में से एक सदस्य हर समय बच्चे के पास रहता था। कदम्ब को ड्यूटी जाना होता था और वीथिका को घर के काम करने होते थे, इसलिये वैदेही के साथ अधिकतर रेशमा ही रहती थी।
लकी के पास जाने से पहले कदम्ब और वीथिका भी कपड़े बदल लेते थे।
सबको चाय नाश्ता देने के बाद कदम्ब और वीथिका वहीं बैठकर अगले विस्फोट की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह का समय था। कदम्ब फैक्टरी से घर आकर नाश्ता करने के बाद सोने की तैयारी कर रहा था। रेशमा सुबह जल्दी उठकर अपने नित्यकर्म निपटा लेती और नाश्ता बनाकर रख देती। इसके बाद लकी के कमरे में चली जाती तो वीथिका उठकर बाहर आ जाती थी।
आज वीथिका नहाने के बाद अपनी छोटी सी रसोई में बने मंदिर में जब वह भगवान के सामने दीपक जला ही रही थी कि अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने वहीं से कदम्ब को आवाज दी – ” देखो, इतने सुबह कौन आ गया है?”
दरवाजा खुलते ही उसने रसोई से ही उत्सुक होकर देखा कि कौन आया है? लेकिन अम्मा बाबू के साथ अपने भइया भाभी को देखकर अचंभित रह गई। सबको बैठक में बिठाकर कदम्ब रसोई में वीथिका के पास आया और उसे लेकर लकी के कमरे में रेशमा के पास आ गया। लकी अभी सो रही थी।
रेशमा से बात करके वीथिका रसोई में नाश्ता बनाने आ गई और कदम्ब भी उसकी सहायता करने लगा। बैठक, रसोई सहित पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। सभी जानते थे कि यह तूफान के आने के पहले की खामोशी है।
कदम्ब और वीथिका ने चाय नाश्ता लाकर रखा तो सब उन्हें घूरती निगाहों से देखने लगे।
” हम तुम्हारे यहॉ चाय – नाश्ता खाने नहीं आये हैं। हमें तुम दोनों से कुछ जरूरी बात करनी है।” अम्मा की बजाय बाबू ने कमान सम्हाल रखी थी।
” आपको जो भी बात करनी हो करियेगा। पहले चाय – नाश्ता कर लीजिये। मैं भी रात की ड्यूटी करके आया हूॅ, बहुत थका हुआ हूॅ।”
सबने एक बार एक दूसरे की ओर देखा, फिर बाबू ने अपना चाय का कप उठा लिया। उनके कप उठाते ही सबने अपनी-अपनी चाय उठा ली।
” बाबू, खाली चाय पीने से आपको एसिड बनने लगती है।” यह कहकर कदम्ब ने बिस्किट की प्लेट बाबू की ओर बढ़ा दी। बाबू के बिस्किट उठाते ही धीरे धीरे सभी नाश्ता करने लगे।
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मंगला मुखी (भाग-15) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर