मंगला मुखी (भाग-13) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

उन सभी को अच्छी तरह मालूम था कि उनका यह निर्णय उन सभी पर बहुत भारी पड़ेगा। जो समाज, रिश्तेदार, माता पिता, मित्र बुरे समय में उनसे दूर हो गये थे, उन सबको एक किन्नर का इन लोगों के साथ रहना कभी पसंद नहीं आयेगा। सबसे ज्यादा हंगामा तो वीथिका के भाई भाभी मचायेंगे। भले ही वैदेही जब पैदा हुई थी तब अस्पताल में आने के बाद दुबारा न कभी उन लोगों ने फोन किया और न ही मिलने आये लेकिन अब रेशमा को परिवार का सदस्य बनाने के बाद उनकी तथाकथित इज्जत पर संकट आ जायेगा।

और कदम्ब के घर वाले •••• अम्मा तो प्रलय मचा देंगी। जो अम्मा उनकी बीमार बेटी की चिकित्सा करवाने की बजाय उसे कहीं फेंक देने की सलाह दे रही थीं और नाराज होकर चली गईं थीं, वह एक किन्नर को अपने बेटे- बहू के परिवार का सदस्य कैसे मान सकती थीं? जो अपनी पोती को न अपना पाईं, वह रेशमा को कैसे अपना लेंगी? इस बात को सभी अच्छी तरह जानते थे।

वही हुआ जिसके लिये वे सभी मानसिक रूप से तैयार थे। जैसे ही यह खबर कदम्ब के घर पहुंची, अम्मा अवाक रह गईं। उन्होंने तो सोचा था कि उनके बेटे बहू के पास इतने पैसे कभी नहीं हो पायेंगे कि वे अपनी बेटी का आपरेशन और मंहगा इलाज करवा सकें, इसलिये इलाज के अभाव में बच्ची खुद मर जायेगी और उससे छुटकारा मिल जायेगा।

अम्मा ने बाबू के साथ मिलकर पूरी योजना बना ली थी कि चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन दुबारा वीथिका के गर्भवती होते ही वह उसे अपने साथ ले आयेंगी और उचित समय आने पर भ्रूण परीक्षण करवा लेंगी। उन्हें पोता चाहिये, अपने वंश का वारिस अगर वीथिका एक वारिस नहीं पैदा कर सकती तो उसकी कदम्ब के जीवन में जरूरत ही क्या है ?

जैसे ही उन तक यह खबर पहुॅची कि न केवल वैदेही का आपरेशन हो चुका है बल्कि वह अब पूर्ण स्वस्थ है तो जैसे उन पर वज्रपात हो गया। उनके गांव का लड़का रमन कदम्ब की फैक्टरी में ही काम करता था।

” ऐसा कैसे हो सकता है ? उसके पास इतने पैसे कहॉ से आये? डॉक्टर ने तो आपरेशन के लिये बहुत खर्चा बताया था, साथ में दवाइयों और अस्पताल का खर्चा भी। जरूर उसने अपने मालिक विनय गुप्ता से पैसे मॉगे होंगे लेकिन वह भी कदम्ब को इतने पैसे कैसे दे सकते हैं ?” कदम्ब के बाबू भी हैरान थे।

” नहीं चाचा, उसके मालिक तो खुद बीमार हैं, उनसे तो मुन्ना ने कहा ही नहीं‌। मैंने पूॅछा भी तो उसने इतना ही कहा कि किसी ने भगवान बनकर उसकी सहायता की है। मैंने भी ज्यादा कुछ नहीं पूॅछा। हमें क्या करना है ? वह नहीं बताना चाहता तो न बताये। न बताने को कोई कारण होगा लेकिन उसकी बिटिया ठीक हो गई , यह बहुत खुशी की बात है। बेचारा बहुत परेशान रहता था।”

” हॉ ठीक है, सब खुश रहें, हमें क्या करना है ? ” अब अम्मा रमन के पास आ गईं – ” तुम क्या अस्पताल गये थे?”

” नहीं अम्मा, अस्पताल में तो मुन्ना और भाभी के अलावा किसी को जाने ही नहीं देते थे लेकिन जब वह घर आ गये तो मैं बिटिया को देखने घर गया था। भाभी ने मुझे बिटिया को दूर से दिखा दिया, छूने तक नहीं दिया। कह दिया कि अभी तीन महीने तक इंफेक्शन का बहुत डर है जबकि बिटिया को गोद में लिये एक किन्नर पलंग पर बैठा था।” वैदेही को दूर से देखने की बात से रमन की नाराजगी उसकी बातों से जाहिर हो रही थी।

” किन्नर? ” अम्मा और बाबू दोनों चौंक गये – ” मुन्ना के घर में उसके कमरे में किन्नर क्या कर रहा था, वह भी बच्चे को गोद में लिये हुये।”

” पता नहीं चाची। वह किन्नर कौन है? लेकिन मुन्ना और भाभी उसे ” मौसी ” कह रहे थे। मेरे पूॅछने पर उन दोनों ने बताया कि मौसी उनके परिवार की सदस्य हैं और उनके साथ ही रहती हैं।”

” किन्नर? मौसी? परिवार की सदस्य? एक किन्नर मेरे बेटे के परिवार का सदस्य कैसे हो सकती है? तुम्हारी कौन सी बहन किन्नर है? आज तक तो तुमने बताया नहीं।”

बाबू सीधे अम्मा से ही सवाल करने लगे तो वह बौखला गईं – ” अरे, मुझे क्या पता कि वहॉ कौन सी कहानी चल रही है? मैं तो ‌यहॉ तुम्हारे साथ हूॅ। ” उन दोनों को आपस में ही बहस करते देखकर रमन चुपचाप उठकर चला गया।

” तुम और तुम्हारे मायके वाले इतने सालों से मुझे धोखा दे रहे हो। शादी के इतने साल तक तुमने और तुम्हारे मायके वालों ने मुझसे छुपाकर रखा कि तुम्हारी एक बहन किन्नर है।” बाबू क्रोध से आग बबूला हो रहे थे और अम्मा पर इल्जाम लगाये जा रहे थे।

वैसे तो बाबू हमेशा अम्मा की बात का ही समर्थन करते रहते थे लेकिन आज शायद इतनी बड़ी बात उनसे हजम नहीं हो रही थी। वह गुस्से में अम्मा के मायके फोन मिलाने लगे – ” अब तुम्हारे माता-पिता तो हैं नहीं लेकिन तुम्हारे भाइयों से पूॅछता हूॅ इस बारे में।”

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मंगला मुखी (भाग-14) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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