डॉक्टरों की टीम को आते देखकर कदम्ब और वीथिका आगे बढ़े तो उन्होंने कदम्ब के कंधे पर हाथ रखा – “आपरेशन सफल रहा। अब चिन्ता की कोई बात नहीं है। बहुत उचित समय पर आपरेशन हो गया लेकिन बच्चे को होश में आने में अभी समय लगेगा। उसे वार्ड में शिफ्ट कर रहे हैं, आप लोग वार्ड ब्वाय के साथ वहॉ चले जाइये।”
कदम्ब दोनों डॉक्टरों के पैरों में झुक गया – ” आप दोनों को देने के लिये मेरे पास दुआओं के सिवा कुछ नहीं है। ईश्वर आप लोगों को हमेशा सुखी रखे और आप लोगों की हर इच्छा पूरी करे।” उसकी आंखें ऑसुओ से भीगी थीं।
” अब परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। ईश्वर को धन्यवाद दीजिये। चूॅकि बच्ची अभी बहुत छोटी है, इसलिये अभी उसका होश में आना ठीक नहीं है। दवाइयों द्वारा इसे अधिक से अधिक आराम दिया जायेगा। घबराइयेगा नहीं, जितनी अधिक देर सोती रहेगी, उसके लिये अच्छा रहेगा।”
कदम्ब के कंधे को थपथपाते हुये दोनों डॉक्टर आगे बढ़ गये। डॉक्टर के जाने के बाद दोनों आकर लकी के पलंग के पास बैठ गये और सामने बेहोश लेटी अपनी बेटी को देखने लगे। सुबह से दोनों के मुॅह में पानी की एक बूॅद तक नहीं गई थी।
अब जब लकी का आपरेशन सफलता से हो गया और डॉक्टरों ने उसे खतरे से बाहर बता दिया तो कदम्ब कैन्टीन से दो कप चाय ले आया। हालांकि वीथिका का चाय पीने का बिल्कुल मन नहीं था लेकिन वह जानती थी कि यदि उसने चाय पीने से मना कर दिया तो कदम्ब भी नहीं पियेगा। इसलिये उसने बिना कुछ बोले चुपचाप चाय पी ली।
शाम को करीब सात बजे एक वार्ड ब्वाय ने आकर कदम्ब से कहा – ” भइया जी, सुबह से अस्पताल के सामने चाय की टपरी पर एक हिजड़ा चुपचाप बैठा है। लोग उसे पैसे दे रहे हैं लेकिन वह न तो किसी से कुछ ले रहा है और न ही कुछ बोल रहा है। चाय वाला भी परेशान है, उसने उसे चाय, नाश्ता भी दिया लेकिन उसने वह भी नहीं लिया। उसने चाय वाले से इतना ही कहा कि जब इस अस्पताल का कोई कर्मचारी आये तो उसे बता दे। अभी मैं गया तो उसने मुझसे केवल इतना कहा है कि अगर बच्चे का आपरेशन हो गया हो तो आप या बच्चे की मॉ एक मिनट के लिये उससे मिल लीजिये। पता नहीं वह हिजड़ा आप लोगों को क्यों बुला रहा है? आपसे या किसी से क्या चाहता है ? क्या आप लोग उसे जानते हैं?”
सुनकर कदम्ब और वीथिका के होश उड़ गये। इतनी गर्मी और धूप में सुबह से रेशमा एक चाय की टपरी पर बैठी है। उसने वीथिका से कहा – ” मैं लकी के पास बैठा हूॅ। तुम जाओ और मौसी को कुछ खिला पिलाकर घर भेज दो। उन्होंने सुबह से कुछ खाया पिया नहीं होगा।”
वीथिका बाहर आकर रेशमा से लिपट गई। इस समय उसे इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी कि तमाम लोग उन्हें देख रहे हैं।
” पागल लड़की। यह क्या कर रही है? सब लोग हमें देख रहे हैं। ” रेशमा ने उसे प्यार से सहलाया – ” पहले बताओ, मेरी लकी कैसी है? आपरेशन कैसा रहा?”
” सब ठीक है मौसी। चौबीस घंटे बाद होश आयेगा लेकिन अभी दवाइयां देकर अधिकतर उसे सुलाये रखेंगे, जिससे लकी को अधिक हिलने डुलने से तकलीफ न हो। वैसे तो अभी बेहोश है लेकिन चाहो तो अन्दर चलकर देख लो।”
” नहीं, अब तुम जाओ। कदम्ब अकेला है। मुझे इतना ही जानना था। अब मेरे मन को तसल्ली मिल गई है। मेरा अस्पताल जाना ठीक नहीं है। मैं रोज फोन करूॅगी तो बस मुझे लकी के हालचाल बता दिया करना।”
वीथिका नम आंखों से जाती हुई रेशमा को देखती रही।
जितने दिन लकी अस्पताल में रही, डॉक्टर सौरभ और डॉक्टर नयन उसे रोज देखने आते थे। जब कदम्ब और वीथिका को पता चला कि लकी की देखभाल करने वाली नर्स और स्टाफ ने अपने काम का कोई पैसा नहीं लिया तो उन दोनों की आंखें भर आईं।
सचमुच क्या भगवान का कोई रूप नहीं होता है। वह जीवन में कभी भी किसी रूप में आकर व्यक्ति पर अपनी दया की बारिश कर देते हैं? ईश्वर की अपरम्पार महिमा के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता, वह कब और किस माध्यम से सहायता के रूप में प्रकट हो जायेगी, कह पाना असम्भव है। अगर रेशमा न होती तो उनकी वैदेही का पता नहीं क्या होता? इसके साथ ही उन दोनों ने मिलकर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया चाहे उसके लिये उन्हें कोई कुछ भी कहे।
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मंगला मुखी (भाग-12) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर